कपिल काजल
बेंगलुरु, कर्नाटक: बेंगलुरु के लोग प्रदूषण के तय मापदंड से औसतन तीन से 12 गुणा अधिक प्रदूषित हवा में सांस लेते हैं। तेजी से बढ़ रहे वाहनों की संख्या, , इसमें भी ज्यादातर में डीजल के इंजन से निकलने वाला धुआं हवा को जहरीला कर रहा है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने 2015 की अपनी रिपोर्ट में बताया कि चार सालों में हवा में सुक्ष्ण कणों की मात्रा मेें 57% की वृद्धि हुई है।
सीएसई की कार्यकारी निदेशक और वायु प्रदूषण नियंत्रण अभियान मुख्य अधिकारी
अनुमिता रॉयचौधरी ने बताया कि बेंगलुरु ने प्रदूषण को कम करने की दिशा में कुछ कदम तो उठाये हैं, लेकिन स्थिति इतनी खराब हो गयी है कि यह कदम ज्यादा कारगर साबित नहीं हो रहे हैं। उन्होंने बताया कि स्टडी से पता चला रहा है कि यहां के वातावरण में जहरीला धुआं बड़ी मात्रा में मिल रहा है जो प्रदूषण की बड़ी वजह बन रहा है। हालांत इतने खराब हो गये हैं, अब तो बहुत ही तेजी से चीजों में बदलाव करना होगा। इसलिए यहां सबसे पहले तो ऐसे उपाय करने होंगे कि वाहनों की संख्या कम हो। इसका एक ही उपाय है, तेजी से सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को मजबूत करना होगा। सार्वजनिक परिवहन की तकनीक पर्यावरण के अनुकूल होनी चाहिए।
उन्होंने सुझाव दिया कि लोगों की एेसी आदत विकसित होनी होगी कि वह कार न चलाये, इसकी जगह वह याताया के लिए इस तरह के साधन अपनाये जो पर्यावरण के लिए अनुकूल हो।
कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने शहर में 11 स्टेशन स्थापित किये हैं, जो प्रदूषण की मात्रा का आंकलन कर रहे हैं। शहर में प्रदूषण के 11 हॉटस्पॉट हैं इसमें मैजेस्टिक, मैसूर रोड, येलहंका,
पीन्या, केआर मार्केट, यशवंतपुरा, डोम्लुर, होसुर रोड, जयनगर, सिल्क बोर्ड और
व्हाइटफील्ड शामिल है।
प्रदूषण के हॉटस्पॉट के इलाके की हवा में कार्बन डाइऑक्साइड ,
सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, ब्लैक कार्बन, मीथेन जैसी जहरीली गैस और कार्बन कण मौजूद है। पर्यावरण कार्यकर्ता संदीप अनिरुद्धन ने बताया कि हम सभी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है, क्योंकि शहर के लोग वाहनों का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। इससे वायु प्रदूषण हो रहा है। रही सही कसर यहां का उद्योग पूरी कर रहा है, इसके बाद कूड़े और कचरे को जलाया जा रहा है। इस पर यहां पीन्या और राजसी उद्योग केंद्र ने शहर में एक भी कोना एेसा नहीं छोड़ा जहां अच्छी हवा मिल सके।
कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से 2017-18हवा की गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए स्थापित 15 स्टेशन में से मात्र एक स्टेशन पर ही अच्छी हवा के संकेत मिल रहे हैं। जबकि 10 क्षेत्र संतोषजनक श्रेणी में और चार क्षेत्र मध्यम श्रेणी में आते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार प्रदूषण लोगों के स्वास्थ्य के लिहजा से चिंता का विषय बना हुआ है। क्योंकि प्रदूषित हवा में ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड मात्रा काफी ज्यादा है। जो दौरे
क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, फेफड़े का कैंसर, और सांस की बीमारियों के साथ साथ संक्रमण की वजह बन सक ती है। इस तरह की हवा में सांस लेने का असर बच्चों व व्यस्क दोनों की सेहत पर प्रतिकूल पड़ता है। इसके प्रतिकूल प्रभाव ऐसे है जो कुछ समय में ही सामने आ जाते हैं, लेकिन कुछ प्रभाव तो काफी समय बाद सामने आते हैं।
पल्मोनोलॉजिस्ट और भारतीय विज्ञान संस्थान के प्रोफेसर डॉ। एच परमीश ने बताया कि शहर की फिजा बुरी तरह से प्रदूषित होती जा रही है। इससे शहर के लोगों की सेहत दांव पर लगी हुई है।
तो क्या इससे बचाव संभव है?
विशेषज्ञों का कहना है कि, इससे बचने उपाय तो हैं, लेकिन इस पर बड़ी तेजी से अमल करना होगा। इसके लिये सबसे पहले तो शहर की सड़कों के डिजाइन को दोबारा करने के लिए खर्च करना होगा। इसके साथ ही लोगों को आने जाने के अपने तरीके को बदलना होगा। मसलन हर कुछ दूरी तक जाने के लिए अपना वाहन या कार निकालने से बचना होगा। इसकी जगह उन्हें प्रशासन की ओर से आने जाने के लिए सस्ता और तेज विकल्प उपलब्ध कराना होगा। इससे लोग अपने व्यक्तिगत वाहन की बजाय इस से यात्रा कर सके।
सीएसई की
रॉयचौधरी ने कहा कि यदि शहर के लोग चाहते हैं कि उनके गले में खराब न हो, उनका गला बंद न हो और उन्हें छींके न आय तो उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना योगदान देना होगा। कुछ ऐसे उपाय करने होंगे जिससे प्रदूषण से बचा जा सके। शहर के लोगों का अपने निजी वाहन छोड़ने होंगे।
सार्वजनिक वाहनों का इस्तेमाल करना होगा। लोगों को पैदल चलने की आदत डालनी होगी। साइकिल को अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा। इसके साथ ही वाहनों के इंजन और इसमें इस्तेमाल होने वाला इंधन यूरो VI होना चाहिए।
(लेखक बेंगलुरू के स्वतंत्र पत्रकार है । वह 101Reporters.com अखिल भारतीय ्रग्रासरूट पत्रकार नेटवर्क के सदस्य है। )