कपिल काजल
बेंगलुरु कर्नाटक
शहर के सही तरह से रखरखाव को लेकर कई स्थानीय निकाय मिल कर एक साथ काम करते है। बेंगलुरु में भी आधा दर्ज निकाय स्वतंत्र रूप से काम कर हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि वह एक दूसरे के काम को ही प्रभावित कर ही है। अब कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को ही ले लीजिए, कहने को तो यह स्वतंत्र निकाय है। लेकिन है पूरी तरह से शक्तिविहिन। अब बोर्ड नियम तो बना सकता है, लेकिन नियम को लागू कराने की शक्ति उनके पास नहीं है। शहर में कई निकाय, जैसे कि ब्रृहद बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) बेंगलुरु जला पूर्ति और सीवरेज बोर्ड (बीडब्ल्यूएसएसबी) बेंगलुरु महानगर परिवहन निगम (बीएमटीसी) के पास असिमित शक्तियां है। शहर में यदि इन निकायों को कोई नियम लागू करना है तो वह अपनी शक्तियों को प्रयोग करते हुए इसे लागू कर देते हैं। इसके साथ ही यह निकाय कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्यप्रणाली पर भी नियंत्रण रखते हैं। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंड के
सेंटर फॉर इकोलाॅजिकल साइंस के प्रोफेसर डाक्टर टीवी रामचंद्रन ने बताया कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास शक्तियां तो हैं, लेकिन वह मौजूदा शासन प्रणाली के सामने विवश हो जाता है। बीबीएमपी, बीडब्ल्यूएसएसबी, बीएसटीसी की एक कमेटी होती है,जिसका मुखिया आयुक्त या निकायों का अध्यक्ष होता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस कमेटी से ही निर्देश मिलते हैं।
कर्नाटक सरकार ने 21 सितंबर 1974 में केएसपीसीबी का गठन किया गया था। (पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण ) एक्ट, 1974 में बोर्ड गठन किया गया। इसके बाद वायु संरक्षण और प्रदूषण प्रदूषण नियंत्रण के लिए गठित अधिनियम, 1981 को लागू करने की जिम्मेदारी भी बोर्ड को सौंप दी थी।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कामकाज में वायु प्रदूषण को रोकना, हवा को संरक्षण देना,इसके लिए समय समय पर सरकार को सलाह देना। ऐसी नीतियाँ तैयार करना जिससे वायु प्रदूषण रोका जा सके। वायु प्रदूषण फैलाने वालों का समय समय पर निरीक्षण करना, जानकारी और डाटा जुटाना और इस बारे में जागरूकता लाना शामिल था।
अधिनियम के अनुसार बोर्ड को प्रदूषित क्षेत्र को कम करने या इसका दायरा बढ़ाने का अधिकार है। इसके साथ ही बोर्ड नए प्रदूषित क्षेत्र घोषित कर सकता है। वहां उन गतिविधियां पर रोक लग सकती है जिसे प्रदूषण के लिए जिम्मेदार माना जात है। ऐसे क्षेत्रों में सरकार प्रदूषण बोर्ड की सिफारिश पर इस तरह की चीजों का जलाने पर रोक लगा सकती है जिसे प्रदूषण के लिए जिम्मेदार माना जाता हो। बोर्ड के पास ऑटोमोबाइल और उद्योग को ईंधन के मापदंड तय कर उन्हें लागू करने के लिए दिशानिर्देश देने की शक्ति है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने समय समय पर सरकारी एजेंसियों को कई आदेश दिए हैं। इसी क्रम में बोर्ड ने बीएमटीसी को निर्देश दिए थे कि बसें के बेड़े में बीएस-III वाहनों को चरणबद्ध तरीके से हटा कर इसकी जगह बीएस-IV तकनीक की बस का प्रयोग किया जाए।
कचरा जलाने पर रोक लगाने के लिए बीबीएमपी को निर्देश दिए थे। इसी तरह से कई आदेश है जो समय समय पर बोर्ड ने प्रदूषण को रोकने की दिशा में दिए थे। लेकिन इन आदेशों के कुछ परिणाम निकल कर नहीं आ रहे हैं। अभी भी शहर में कई जगह कचरा जल रहा है, इसी तरह से बीएमटीसी अभी पूरानी तकनीक की बसों को चला रहा है।
केएसपीसीबी के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डॉक्टर एच लोकेश्वरी ने स्वीकार किया कि दसरे विभाग उनके निर्देशोें की ओर ध्यान नहीं देते हैं। हमने बीएमटीसी को सुझाव दिया था कि सीएनजी बस बेड़े में शामिल की जाए। लेकिन वह
उन्होंने कहा, ‘हमने बीएमटीसी को सीएनजी बसें लाने के लिए कहा है, लेकिन वे इलेक्ट्रिक बसें लेने के लिए उत्साहित है। लेकिन अभी तक उन्होंने नसीएनजी बस ली, नइलेक्ट्रिक बस ।्र यहां तक कि हमने बीबीएमपी को कचरा जलाने से रोकने के लिए कहा है, लेकिन उनकी ओर से इस पर रोक लगाने की िदशा में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया। दोनों ही निकाय बोर्ड ेके आदेशों को ठेंगे पर रखे हुए हैं। इसमें हम क्या करें?
अब बोर्ड के अधिकारी भले ही खुद को लाचार और शक्तिविहिनदिखाए। लेकिन विशेषज्ञ इस पर यकीन नहीं करते हैं। उनका कहना है कि बोर्ड के पास काफी अधिकारी है।केएसपीसीबी के पूर्व अध्यक्ष और फाउंडेशन ऑफ इकोलॉजी सिक्योरिटी ऑफ इंडिया के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य डाक्टर येलपा रेड्डी ने बताया कि यदि कोई केएसपीसीबी के निर्देशों की पालना नहीं करता तो बोर्ड को अधिकार है कि वह उसके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है। वह ऐसे विभागों व निकायों के मुखिया की जिम्मेदारी तय कर सकता है।
वायु (रोकथाम नियंत्रण नियंत्रण; प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम की धारा 21 और धारा 22 बोर्ड को अधिकार देती है कि उसके निर्देशों का पालन होनी चाहिए। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो धारा 31 के अनुसार कार्यवाही कर जिम्मेदार के खिलाफ मामला दर्ज कराया जा सकता है। इसमें उस पर जुर्माना और छह माह से एक साल से कम की जेल का प्रावधान है। लेकिन विशेष परिस्थितियों में जेल की अवधि छह साल तक भी हो सकती है। यह अधिनियम सिर्फ लोगों पर ही नहीं बल्कि उन सभी सरकारी विभागों व निकायों पर भी लागू होता है, जिन्हें बोर्ड के कोई निर्देश दिया, लेकिन उसकी पालना नहीं हुई। तब बोर्ड विभाग या निकाय के मुखिया की जिम्मेदारी तय कर सकता है।
डाक्टर येलपा ने बताया कि अब बोर्ड का चेयरमैन क्यों नहीं कार्यवाही करने की शक्तियों को प्रयोग करता, इसके पीछे एक वजह है। वह यह है कि क्योंकि अध्यक्ष कभी बोर्ड का तो कभी निकाय का चेयरमैन नियुक्त होता रहता है। आज जो बोर्ड का चेयरमैन है, वह कल बीबीएमपी का चेयरमैन नियुक्त हो जाता है। यहीं कारण है कि बोर्ड का अध्यक्ष कार्यवाही करने से बचते रहते हैं। इसी वजह से बोर्ड शक्तिहीन नजर आता है। अब भले ही प्रदूषण की वजह से आम नागरिकों की सेहत खराब होती रहे। इससे उन्हें कोई मतलब नहीं है। उनके एजेंडे में आम नागरिक नहीं बोर्ड या निकाय के अध्यक्ष होते हैं।
कपिल काजल बेंगलुरु के स्वतंत्र पत्रकार है, वह 101Reporters.comअखिल भारतीय ग्रासरुट रिपोर्टस नेटवर्क के सदस्य है। )