कपिल काजल
बेंगलुरु, कर्नाटक:
शहरों का बेतरतीब बढ़ना, इंधन का अंधाधुंध प्रयोग और उद्योगों से निकलने वाली जहरीली गैस मिल कर शहर में कई तरह के प्रदूषण को बढ़ावा दे रही है। शहर की हवा में भारी धातुओं से हो रहे प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है। जो कि निश्चित ही स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक साबित हो सकता है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ प्योर एंड एप्लाइड रिसर्च (आईजेएआर ) के एक अध्ययन में बेहद चौंकाने वाली बात सामने आयी है। वह यह है कि लोहे और केडमियम पक्षियों के पंखों और इंसानों के बालों के साथ जानवरों के फर में भी मिला है। इसका मतलब यह है कि प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि वह पक्षियों, हमारे बाल और जानवरों के फर को भी अपनी चपेट में ले रहा है। अब सोचिए यह प्रदूषण हमारी सांसों के साथ शरीर के भीतर भी प्रवेश कर रहा है। यह हमारे लिए कितना नुकसानदायक हो सकता है, इसकी कल्पना मात्र से ही शरीर में सिहरन होने लगती है।
क्रोमियम, तांबा, पारा, आर्सेनिक, कोबाल्ट, मैंगनीज, सेलेनियम जैसे तत्वों को भारी धातु माना जाता है, इसी के साथ
जस्ता और सीसा भी इसी श्रेणी में आते हैं। हवा में इनसे होने वाला प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है, जो कि हमारे
केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर सीधा प्रतिकूल प्रभाव डालता है। यह प्रदूषण हमारे लिए कितना नुकसानदायक है, इसका अंदाजा इसी से लग सकता है कि हवा में इनकी थोड़ी सी भी मात्रा जहरीले तत्व पैदा करने के लिए काफी है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेस के इकोलॉजिकल केंद्र के प्रोफेसर
डॉ टीवी रामचंद्र ने बताया कि जब कचरे को जलाया जाता है तो इसमें प्लास्टिक, धातु और ऐसे कई तत्व होते हैं जो जलने पर जहरीली गैस पैदा करते हैं। रही सही कसर यातायात से निकलने वाला धुआँ और उद्योगों से निकलने वाली ज़हरीली गैस पूरी कर देती है।
इस तरह से हवा में
हवा में तांबा, पारा और सीसा का स्तर तेजी से बढ़ रहा है जो प्रदूषण को और ज्यादा नुक़सानदेह बना रहा है। आईजेपीएआर के अध्ययन में यह बात भी सामने आयी है कि मुर्गी के पंख सभी सात भारी धातुओं मिली है। मुर्गी क्योंकि जमीन पर रहती है, इसलिए वह प्रदूषण के संपर्क में ज्यादा रहती है। इसी तरह से बाज के पंखों में कम से कम चार भारी धातु मिली है, जबकि, जबकि कबूतर और कौवा
पाँच भारी धातु मिली है। कोवा और कबूतर भी आमतौर पर आबादी के बीच रहते हैं। इसलिए मुर्गी की तरह वह भी प्रदूषण के संपर्क में ज्यादा है।
ऐसे में प्रदूषण से जोखिम दोहरा हो जाता है। क्योंकि पोल्ट्री और कबूतर का मांस इंसान भी खाते हैं। इस तरह से एक तो वह प्रदूषित हवा में सांस लेकर जहरीले तत्वों को अपने फेफड़ों में धकेल रहे हैं, दूसरा ऐसा मांस खा रहे हैं, जिसमें भारी धातुओं और जहरीली गैस भी मिली हुई है। इस तरह से प्रदूषण की यह दोहरी मार है। जो कि खाने वाले के लिए जोखिम की दोहरी वजह बन रही है।
हालांकि जब भेड़, बकरी, बिल्ली और कुत्ते के फर का अध्ययन किया गया तो भेड़ के फर से प्रदूषण फैलने वाले कण मिले हैं। इंसानों बालों का अध्ययन किया गया तो इसमें लोहे, कैडमियम, मैग्नीशियम और सोडियम जैसे सामान्य भारी धातु के कण मिले हैं।
महिलाओं के बालों में पारा भी पाया गया है।, जबकि जस्ता पुरुष के बालों में पाया गया है।
इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम कितने प्रदूषित वातावरण में रह रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, भारी धातु कैडमियम, सीसा और पारा
आम वायु प्रदूषक हैं, जो मुख्य रूप से उद्यागों से निकलने वाले कचरे और धुएं के साथ साथ गैसों से वायुमंडल में मिलते हैं। इसमें मौजूदा जहरीले तत्वा मिट्टी के माध्यम से जमीन के अंदर तक भी पहुंच जाते हैं। इसी तरह से उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषित जल से भूजल प्रभावित होता है। इसका असर अनाज और उन वनस्पति यों पर भी पड़ता है, जिन्हें हम खाते हैं। इस तरह से प्रदूषण हमारी फूड चेन में भी शामिल हो जाता है।
इतने ज्यादा प्रदूषण का सीधा सा मतलब यह है कि हम न सिर्फ जहरीले वातावरण में सांस ले रहे हैं, बल्कि जो हम खा रहे हैं वह भी शरीर के अंदर जहरीले तत्वों को लेकर जा रहा है। जो कि गुर्दे की दिक्कत, कैंसर की वजह तो बन ही सकता है। इसके साथ ही इससे कैंसर जैसी बीमारी होेने का भी अंदेशा भी कई गुणा बढ़ जाता है।
https://www.datawrapper.de/_/
सेंटर फॉर साइंस स्पिरिचुअलिटी के बालरोग विशेषज्ञ डॉ शशिधारा गंगैया ने बताय कि सीसा, जस्ता, पारा, आर्सेनिक और क्रोमियम जैसी भारी धातुओं से होने वाला प्रदूषण यूं तो सभी के लिए बहुत हानिकारक है, लेकिन बच्चों के लिए तो यह बेहद खतरनाक माना जा सकता है। बैंगलुरु के पास राजाजी नगर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में रह रहे बच्चों को इससे कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के साथ बच्चों के विकास पर इसका असर पड़ रहा है।
औद्योगिक क्षेत्र पीन्या इसके साथ ही शहर के आस पास पनप रहे उद्योगों से बेंगलुरु में भारी धातुओं से होने वाला प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ रहा है।
फ़ाउंडेशन ऑफ इकोलॉजिकल सिक्योरिटी ऑफ इंडिया के गर्वनिंग काउंसिल के सदस्य
डॉ। येलपा रेड्डी ने बताया कि पारा और सीसा से होने वाला प्रदूषण पौधों, जानवरों, पानी के स्त्रोत के साथ साथ
मिट्टी को भी प्रभावित करता है। इसलिए होना तो यह चाहिए कि हमेशा ही उद्योगों को आवासीय क्षेत्रों की दूर हो।
(कपिल काजल बेंगलुरु के स्वतंत्र पत्रकार है, वह ,अखिल भारतीय ग्रास रुट रिपोटर्स नेटवर्क 101Reporters.com के सदस्य है। )