कपिल काजल
बेंगलुरु कर्नाटक
बेंगलुरु देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल है। इसके बाद भी कनार्टक स्टेट प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से हवा की गुणवत्ता के आंकलन के लिए स्थापित किए गए 20 स्टेशन में से पांच ही सही तरह से काम कर रहे हैं। वह भी तब जबकि बोर्ड का मुख्य काम ही हवा की गुणवत्ता पर नजर रखना है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक आठ बिंदुओं पर हवा की गुणवत्ता का आंकलन किया जाता है। इसमें पीएम 10 पीएम 2.5और अन्य तरह वह कारक शामिल है जिससे प्रदूषण होता है। कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के 13 स्टेशन ऐसे है जिन पर हवा की गुणवत्ता का आंकलन कर्मचारी करते हैं। इसमें से दो में कोई डाटा प्रसारित नहीं किया जा रहा है। जबकि अन्य पांच में प्रदूषण के चार कारणों का ही डाटा लिया जा रहा है। इसमें भी पीएम 2.5 का डाटा नहीं जुटाया जा रहा है, जबकि पीएम 2.5 प्रदूषण की बड़ी वजह है।
हवा की गुणवत्ता की 24 घंटे निगरानी करने वाले सात केंद्र में से दो केंद्र ही चार तरह के प्रदूषण का ही आंकलन कर रहे हैं, इसमें भी प्रदूषण का मुख्य कारक पीएम 2.5 का आंकलन ही नहीं किया जा रहा है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के इकोलॉजिक केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डाक्टर डीवीरामचंद्रा ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड औसतन डाटा दे रहा है। यह बहुत ही गलत बात है। जब तक हमारे पास प्रदूषण का सही सही डाटा नहीं होगा तो सुधार के लिए सही और सटीक योजना कैसे बन सकती है? आधे से ज्यादा प्रदूषण के कारकों का तो डाटा ही जुटाया नहीं जा रहा है। औसतन डाटा स्थिति की सही तस्वीर पेश नहीं कर सकता है। जब भी हम औसतन आंकड़ा लेते हैं तो इसमें वह केंद्र जो कम प्रदूषित इलाकों में स्थापित है, उनका डाटा भी जोड़ा जाता है। इस तरह का डाटा भ्रम पैदा करता है।
फाउंडेशन ऑफ इकोलॉजिकलसिक्युरिटी ऑफ इंडिया के गर्वनिंग काउंसिल मैंबर
डॉ येलपा रेड्डी101Reporters से कहा, “मैं सरकारी आंकड़ों पर विश्वास नहीं करता क्योंकि उन्हें सही तरह से जुटाया नहीं गया हैं।
यह आंकड़ा शहर के साल भर के प्रदूषण के डाटा को जोड़ कर तैयार किया जाता है। इसके साथ ही हम यह भी जानते हैं कि 20 में से 15 निगरानी केंद्र तो काम ही नहीं कर रहे हैं। इसलिए कैसे इस डाटा पर यकीन कर लियजाए?
उन्होंने बताया कि शहर के कुछ सबसे प्रदूषित हिस्सों जैसे कि पीन्या इंडस्ट्रियल का डाटा उपलब्ध ही नहीं कराया जाता है। जबकि यहां प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा है। अब जब यहां का डाटा ही नहीं होगा तो पता ही नहीं चल पाएगा कि समस्या कितनी बड़ी है। जब हमें समस्या की गंभीरता का ही पता नहीं होगा तो उसे दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे। इस तरह से कुछ भी हल होने वाला नहीं है। इसलिए होना तो यह चाहिए कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को डाटा जुटाने की अपनी कार्यप्रणाली में पूरी तरह से बदलाव करना चाहिए। वह बीस साल पूरानी मशीनों से डाटा जुटा रहे हैं, जो कि अब कारगर नहीं है। इसलिए मशीन और काम का तरीका दोनो ही बोर्ड को बदलने होंगे।
केएसपीसीबी के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डॉ एच लोकेश्वरी ने बताया हवा की गुणवत्ता की निगरानी करने वाले कुछ पूराने केंद्रों की मरम्मत की जा रही है। उन्होंने दावा किया कि पीएम 2.5 का डेटा जारी किया है,क्योंकि इस बारे में
2009 में अधिसूचना जारी हुई थी। कुछ स्टेशन क्योंकि पुराने हैं, इसलिए वहां से पीएम 2.5 का डाटा नहीं मिल रहा है।“हमने मशीनों को बदलने या फिर इनकी मरम्मत करने के लिए निर्माताओं के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। यह काम पूरा होते ही हमें सारा डाटा मिलना शुरू हो जाएगा।