कपिल काजल

बेंगलुरु: खराब हो रही हवा की गुणवत्ता से सामान्यता मध्यम वर्ग के लोगों की सोच पर ज्यादा असर ही नहीं पड़ रहा है। शायद वह इसी मुग़ालता में हैं कि प्रदूषण से मजदूरों की सेहत को दिक्कत आएगी, वह प्रदूषण की जद से परे हैं। क्योंकि वह यहीं सोचते हैं कि वातानुकूलित आँफिस में काम करते हुए, एक पॉश इलाके में रहते हैं, कार से ऑफिस आते जाते हैं, इसलिए प्रदूषण के संपर्क में तो आएंगे ही नहीं। लेकिन उनकी यह सोच गलत है। प्रदूषण किसी को नहीं छोड़ता, हर कोई इसकी जद में हैं। यकीन नहीं आता तो

कैलिफ़ोर्निया के विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट का अध्ययन कर लें। इससे पता चल जाएगा कि जिसे प्रदूषण से आप खुद को सुरक्षित समझ रहे हो, वह आपकी कार में ही आपको अपने चपेट में ले रहा है। इस अध्ययन के मुताबिक प्रदूषित वातावरण में यदि एक कार चल रही है तो इसके भीतर प्रदूषण का स्तर कुछ ज्यादा ही होता है। क्योंकि कार के आगे और पीछे चल रहे वाहनों से निकलने वाले धुएं का असर गाड़ी के अंदर प्रदूषण को बढ़ावा दे रहा है। यह प्रदूषण तब और बढ़ जाता है, जब डीजल से चलने वाले वाहन खासतौर पर ट्रक आदि तो प्रदूषण के स्तर को कई गुणा तक बढ़ा देते हैं। यहीं वजह है कि कई बार तो गाड़ी के अंदर, बाहर की तुलना में प्रदूषण और जहरीले तत्व दस गुणा ज्यादा तक बढ़ जाते हैं।

आमतौर पर इस प्रदूषण की वजह

गैसोलीन और डीजल इंजन से निकलने वाले धुआँ है। इसके शामिल कार्बन कण,

बेंजीन, कार्बन

मोनोऑक्साइड , नाइट्रोजन

ऑक्साइड, धुल आदि शामिल होते हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के (आईआईएससी) के इकॉलोजिकिल साइंस केंद्र के प्रोफेसर

डॉक्टर टीवी रामचंद्र ने कहा कि अक्सर कार और हवादार कमरे में रहने वाले लोग लगातार धूल कणों को सांस के माध्यम से अपने अंदर खींच रहे हैं।

इसके अलावा, अगर एसी का रखरखाव सही नहीं है तो उस कमरे में फफूंद और बैक्टीरिया की

वृद्धि हो जाती है। जो प्रदूषण की बड़ी वजह माना जाता है।

नेशनल सेंटर फॉर बायो टेक्नोलॉजी इन्फॉर्मेशन (एनसीबीआई) के एक अध्ययन के मुताबिक

कारों के अंदर मौजूद प्रदूषण कई तरह की गंभीर बीमारियों की वजह बन सकता है। इसमें दिल, दौरा पड़ना, फेफड़े का कैंसर, सांस की बीमारी,गले की बीमारी,

निमोनिया , अस्थमा और सांस नली में संक्रमण तक हो सकता है।

इंडोर कार एयर प्रदूषक (स्रोत- एनसीबीआई स्टडी)

https://www.datawrapper.de/_/YFrTy/

प्रदूषण मुक्त नहीं होते वातानुकूलित कमरे

अगर कोई यह सोच रहा है कि

वातानुकूलित कार्यालय में प्रदूषण नहीं होता, या वह कमरा प्रदूषण के असर से सुरक्षित है तो यह सोच भी गलत है।लांसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार कार्य स्थल पर खराब हवा हर साल 8 लाख लोगों की मौत की वजह बन रही है।

शहर के सांस व छाती रोग विशेषज्ञ (पल्मोनोलॉजिस्ट) डॉ शशिधर गंगैया ने सलाह दी घर के अंदर हवा का आवागमन सुगम होना चाहिए। इसके साथ ही समय समय पर घर के अंदर की हवा की गुणवत्ता की जांच होती रहनी चाहिए। घर के अंदर धूल न हो, इसी तरह से पराग आदि नहीं होने चाहिए, जो सांस के माध्यम से शरीर के अंदर न जाए। इसका विशेष तौर पर ध्यान रखना चाहिए। अक्सर लोग घरों में कालीन का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन यह प्रदूषण की बड़ी वजह बन जाता है, क्योंकि इसमें भारी मात्रा में धूल कण मौजूद होते हैं। डाक्टर

गंगैया ने सुझाव दिया कि इसकी जगह टाइल का उपयोग किया जा सकता है। जो धूल से निजात दिलवा सकते हैं। घरों के अंदर अच्छी और मजबूत लकड़ी के फर्श से भी घर के अंदर के वातावरण को शुद्ध व साफ रखा जा सकता हैै। यह प्रयोग घर के भीतर की हवा को साफ रखने में मदद देंगे, इस तरह का वातावरण फेफड़ों की कार्यकुशलता को बढ़ाता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में 30 प्रतिशत तक नए बनाए गए या दोबारा तैयार किए गए घरों में हवा की गुणवत्ता खराब है, जो घर के अंदर प्रदूषण को बढ़ावा दे सकते हैं।

इसकी बड़ी वजह यह है कि नए बनाए गए या फिर से तैयार किए गए घरों के डिजाइन में इस बात का ध्यान ही नहीं रखा जाता कि कैसे अंदर का वातावरण शुद्ध और साफ रह सकता है। अब यदि किसी घर में हवा के आवागमन को सही तरह से नहीं किया गया तो जाहिर है खराब हवा कमरे के अंदर ही रहेगी, जो सांस के माध्यम से शरीर के भीतर जाएगी। इसी तरह से घर को सुंदर दिखाने के लिए कालीन का प्रयोग, लकड़ियों से बने साज सज्जा का सामान, , कॉपी मशीन, कीटनाशक, फर्श साफ करने वाले रसायन, घर के अंदर फफूंदी के साथ साथ बाहर से वाहनों का धुआँ जैसी चीजे घर के अंदर प्रदूषण की बड़ी वजह बन सकते हैं।

आईआईसीएस के डाइचेचा सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज के

प्रोफेसर और बाल रोग विशेषज्ञ डाक्टर एच. परमेश ने बताया कि अब कोई आदमी भले ही घर , कार और कार्यालय के अंदर अपने दिन का 90 प्रतिशत वक्त बिता रहा हो, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह प्रदूषण की चपेट में नहीं है। प्रदूषण से होने वाली बीमारी उसे भी हो सकती है। उन्होंने बताया कि बेंगलुरु इसका उदाहरण है, एक अध्ययन से पता चलता है कि यहां के लोग घर और आँफिस के भीतर होने वाले प्रदूषण की वजह से बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। इसलिए यह कहना कतई सही नहीं कि वायु प्रदूषण सिर्फ उन लोगों को प्रभावित करता है जो खुले में रह रहे या काम कर रहे हैं, यह किसी को छोड़ने वाला नहीं है। इसलिए जो लोग एसी कारों में यात्रा करते हैं या एसी कार्यालयों में काम करते हैं वें भी प्रदूषण से सुरक्षित नहीं है। यदि वह खुद को सुरक्षित सोच रहे हैं तो यह उनकी बड़ी

गलतफहमी है । इसलिए यदि बाहर प्रदूषण है, ऐसा हो ही नहीं सकता वह कार और कमरों के अंदर आए। फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल के गवर्निंग काउंसिल सदस्य

डॉक्टर येलापा रेड्डी ने कहा कि आप इस सोच को छोड़ दे कि आप क्योंकि वातानुकूलित आँफिस में काम करते हैं, कार से आँफिस तक आते जाते हैं, इसलिए प्रदूषण से आपको कोई नुकसान नहीं है। इसलिए आप भी अधिक से अधिक पेड़ लगाने, प्रदूषण को कम करने के उपायों पर आज से ही काम करना शुरू कर दें, क्योंकि तभी हम स्वच्छ वातावरण बना सकते हैं जब हर कोई इसमें अपनी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करेगा। इसलिए ज्यादा पौधे लगाना, प्रदूषण मुक्त वाहनों से सफर कर हम इस काम को आराम से अंजाम दे सकते हैं।

(कपिल काजल बेंगलुरु के स्वतंत्र पत्रकार है, वह  101Reporters.comअखिल भारतीय ग्रासरुट रिपोर्टस नेटवर्क के सदस्य है। )

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