देश में आजकल चल रही दलित उत्पीड़न, गौ-रक्षा, कश्मीर और कश्मीरियत, राष्ट्रवादी और देशद्रोही, वामपंथी और बुद्धजीवी विचारधारा के समर्थन में खड़े होने पर जो डिबेट चल रही है उसी कड़ी में एक और खुला पत्र सामने आया है। ये खुला ख़त एक रिपोर्टर ने अपने संस्थान के संपादक को लिखा है और उनसे जुड़े वरिष्ठ पत्रकार जो खुद को बुद्धजीवी कहते हैं।
NDTV मुंबई के लिए वर्षों के काम कर रहे अनुराग द्वारी ने अपने सम्पादक महोदय से एक सवाल किया है।
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एक ख़त मेरी तरफ से भी, जो चारों तरफ से खुला है …
हे संपादक जी,
गंभीर संकट है। इस देश में सरकार का मतलब लोकतंत्र है, मोदी समर्थन का मतलब राष्ट्रधर्म है, दलित-मुस्लिम समर्थन का मतलब प्रगतिशीलता-धर्मनिरपेक्षता है !!!
सर, आप तो आप-कांग्रेस-बीजेपी-सपा-बसपा-आरपीआई के समर्थन में तो उतर जाते हैं, हम कहां जाएं??? आपका मन हो नाग-नागिन चलाएं, हम प्यादों को बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनवा दें, हाथी का मनोचिकित्सक ढूंढ लाने पर लगा दें फिर जब जी भर आये तो टीवी पर बैठकर बड़ी परिचर्चा में उतर आएं … हमारा क्या सर ???
डेढ़ दशक हो गये सर. जब पढ़ाई की तो यही पढ़ा था कनफिल्क्ट में … जात, धर्म की पहचान ना करें … लेकिन सर पता नहीं बलात्कार के बाद आगे दलित लिखने से मामला कैसे ज्यादा संजीदा हो जाता है। क्या बलात्कार अपने आप में जघन्य नहीं है.???
सर अभी महाराष्ट्र में निर्भया जैसा अपराध हुआ है, ये बिटिया छोटे से ज़िले अहमदनगर की थी लोग पूछ रहे हैं क्या उसके नाम के आगे जात लिखोगे …. सर हम क्या जवाब दें कृप्या बता दें ???
सर कुछ दिनों पहले पुणे में एक दलित युवक को 4 आरोपियों ने मार डाला, मोबाइल पर रिकॉर्ड अपने आखिरी पलों में उसने कहा कि उससे आरोपियों ने धर्म पूछा, जवाब मिला तो पेट्रोल छिड़कर आग लगा दी … सर यहां भी आरोपियों के धर्म को बताने के लिये हमसे सवाल पूछे गये … सर हम क्या जवाब दें कृप्या बता दें ???
तकलीफ है सर, हम चांदी के चम्मच वाले पत्रकार नहीं है … स्थितियां कभी बनेंगी भी नहीं हम औसत हैं, लेकिन ये बता दें सर अपनी तटस्था का क्या करें
सर जब शिवसेना जैसे हिंदूवादी ( जो कम से कम खुलकर अपना परिचय देते हैं )
उनकी हिंसा को हम गुंडागर्दी कहते हैं, फिर फिज़ूल की तोड़-फोड़ अंबेडकर-पेरियार के नाम पर हो तो उसे हम क्या कहें, प्रगतिशीलता????
सर कन्हैया जब मुंबई आकर, एनसीपी में कई आरोपों से घिरे जीतेन्द्र आव्हाड के करोड़ी कार में घूमे फिर भी उसे हम क्या माने वामपंथी???
जब हमारे सामने सबूत हों कि अंबेडकर भवन ट्रस्ट और परिवार के झगड़े का नतीजा हो फिर भी हम क्या करें सरकार को कठघरे में खड़ा कर दें …
सर जवाब दें, सवाल हमारी तटस्था का है !!!!
चाहता तो इस खत को फ्रॉयड, कीन्स, चोमेस्की, ब्रेख्त, कॉमरेड, श्रीमंतों जैसे भारी भरकम नामों, उद्धरणों से भर देता, शायद “बुद्धिजीवी” लगने की पहली शर्त है !!
लेकिन क्या करें, हम तो सवाल उठाते हैं वामपंथ पर भी, दक्षिणपंथ पर भी !!
मैं तो कबीर की तरह अपनी नज़रों से दुनिया देखता हूं … एक ही बात समझता हूं
“” पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया ना कोय “”
उपरोक्त पोस्ट अनुराग के फेसबुक वाल से लिया गया है और जिस प्रकार से देश में राष्ट्रवाद और देशद्रोह पर चर्चा छिड़ी और दलित हितैषी या दलित विरोधी होने की बातें कहीं जा रही है, उसी सन्दर्भ में ये पत्र NDTV के संपादक सहित वरिष्ठ पत्रकारों के लिए भी उचित लगता है।
देश में आज जिस प्रकार से देश से ऊपर जाति और धर्म को बताकर डिबेट चल रही है, उसे देखते हुए इस पत्र का महत्व अपने आप में बहुत मालूम पड़ता है।