नई दिल्ली : अयोध्या मामले की सुप्रीम कोर्ट में चल रही है सुनवाई के 27वें दिन आज गर्मागर्म बहस हुई. मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने विवादित इमारत की मुख्य गुंबद के नीचे गर्भ गृह होने के दावे को बाद में गढ़ा गया बताया. जजों ने इस पर उनसे कुछ सवाल किए. धवन ने सवाल कर रहे जज के लहजे को आक्रामक बता दिया. हालांकि, बाद में उन्होंने अपने बयान के लिए माफी मांगी.
धवन की दलील
- धवन की मुख्य दलील इस पर आधारित है कि विवादित इमारत के बाहर बना राम चबूतरा वह जगह है
- जिसे भगवान राम का जन्म स्थान कहा जाता था.
- उनका कहना था कि 1885 में महंत रघुवरदास की तरफ से दाखिल मुकदमे में यही कहा गया था.
- मुख्य गुंबद के नीचे असली गर्भगृह होने की धारणा को बाद में बढ़ाया गया.
- इसी वजह से 22-23 दिसंबर, 1949 की रात वहां गैरकानूनी तरीके से मूर्तियां रख दी गई.
कोर्ट के सवाल
- कल कोर्ट ने धवन से सवाल किया था कि 1855 के बाद जब चबूतरा और इमारत के बीच रेलिंग लगा दी गई,
- तब भी लोग रेलिंग के पास जा कर पूजा क्यों करते थे?
- क्या उनका विश्वास इस बात पर था कि रेलिंग के दूसरी तरफ भगवान राम का वास्तविक जन्म स्थान है?
- धवन कल इस बात का कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे सके थे.
- आज उन्होंने कहा कि रेलिंग के पास जाकर लोगों के पूजा करने का कोई प्रमाण नहीं है.
- धवन की दलीलों के दौरान उन्हें रोकते हुए 5 जजों की बेंच के सदस्य जस्टिस अशोक भूषण ने उनका ध्यान राममूरत तिवारी नाम के गवाह के बयान की तरफ दिलाया.
- तिवारी ने हाई कोर्ट में बयान दिया था कि 1935 में वह 13 साल की उम्र में पहली बार विवादित इमारत में गए थे.
- वहां उन्होंने इमारत के भीतर एक मूर्ति और भगवान की तस्वीर देखी थी.
- धवन ने तिवारी की गवाही को अविश्वसनीय बताते हुए कहा कि उस पर चर्चा नहीं होनी चाहिए.
- उनका कहना था कि गवाह के पूरे बयान को देखें तो ऐसा लगता है उसे बातें ठीक से याद नहीं थी.
- इसलिए हिंदू पक्ष ने भी उसकी गवाही का हवाला नहीं दिया.
जज के जवाब पर भड़के
- जस्टिस भूषण ने कहा, “चर्चा हर बात पर हो सकती है.
- किसी तथ्य को कैसे देखना है, यह कोर्ट का काम है.
- किसी पक्ष ने किसी गवाही का जिक्र नहीं किया, इसका यह मतलब नहीं कि कोर्ट भी उस पर सवाल नहीं कर सकता है.”
- इस पर धवन ने कहा, “आपका लहजा आक्रामक है.
- मुझे यह डराने वाला लग रहा है.”
- धवन के इस रवैये का रामलला विराजमान पक्ष के वकील सीएस वैद्यनाथन ने कड़ा विरोध किया.
- उन्होंने कहा, “जज से इस तरह बात नहीं की जा सकती.”
धवन ने माफी मांगी
- वैद्यनाथन के बाद बेंच के सदस्य जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने भी धवन को टोका.
- उन्होंने कहा, “कोर्ट का काम सवाल उठाना है.
- हम सवाल इसलिए करते हैं ताकि मुकदमे को किसी निष्कर्ष तक पहुंचाने में मदद मिले.”
- इसके बाद धवन ने अपनी गलती महसूस की और तुरंत कोर्ट से माफी मांगी.
- उन्होंने कहा, “जब सुनवाई लंबी चल रही हो तो कभी-कभी मुंह से ऐसी बात निकल जाती है.
- कोर्ट कृपया इस पर ध्यान न दे.”
- बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने मामले को हल्का करते हुए कहा, “पूर्वोत्तर से आने वाले लोग किसी के लहजे से नहीं डरते.”
- गौरतलब है कि जस्टिस गोगोई असम के रहने वाले हैं.
रामलला पक्ष पर सवाल
- धवन ने बहस के दौरान एक बार फिर रामलला विराजमान की तरफ से याचिका दाखिल करने वाले रिटायर्ड जज देवकीनंदन अग्रवाल पर सवाल उठाए.
- उन्होंने कहा, “अग्रवाल 1986 में राम जन्मभूमि न्यास के सदस्य बने.
- 1989 में उन्होंने खुद को भगवान का नेक्स्ट फ्रेंड बताते हुए याचिका दाखिल कर दी.
- सवाल यह है कि भगवान की तरफ से कौन याचिका दाखिल कर सकता है?
- जो उनकी पूजा कर रहा है या कोई भी?
- हाई कोर्ट ने अग्रवाल की याचिका स्वीकार कर ली.
- उनसे सवाल नहीं पूछे गए.
- असल में इस याचिका पर सुनवाई ही नहीं होनी चाहिए थी.”
गवाहियों को काल्पनिक बताया
- धवन ने हाई कोर्ट में हिंदू पक्ष की तरफ से पेश दूसरे गवाहों के बयानों पर भी सवाल उठाए.
- उन्होंने कहा कि ज़्यादातर गवाहियां कल्पना पर आधारित हैं.
- हाई कोर्ट के जज बी डी अग्रवाल ने इन्हीं काल्पनिक कहानियों को सैंकड़ों पन्नों में जगह दी और उनके आधार पर फैसला दे दिया.
श्राप देने वाले प्रोफेसर का मामला बंद
- आज कोर्ट ने राजीव धवन को श्राप देने वाले प्रोफेसर के खिलाफ मामला बंद कर दिया.
- धवन ने चेन्नई के रहने वाले 88 साल के प्रो. षणमुगम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की शिकायत की थी.
- षणमुगम ने धवन को भगवान के काम में अड़चन डालने के लिए चिट्ठी भेज कर श्राप दिया था.
- आज उनकी तरफ से पेश वकील ने बयान पर खेद जताया.
- इसके बाद कोर्ट ने मामला बंद कर दिया.
- कोर्ट ने उम्मीद जताई कि भविष्य में इस तरह की घटना नहीं होगी.
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