सौमिक दत्ता
- बेंगलुरु/कर्नाटक: साइकिल पर्यावरण अनुकूल है जो प्रदूषण नहीं फैलाती।
- साइकिल का प्रयोग हमारी सेहत के लिए भी अच्छा है।
- कम दूरी तक जाने के लिए साइकिल का प्रयोग किया जा सकता है।
- जब भी प्रदूषण के बारे में बात होती है, तो साइकिल के प्रति लोगों में रुझान पैदा करने की बात भी होती है,लेकिन इसके बाद होता कुछ नहीं।
- वाहनों से निकलने वाले धुएं से भारी प्रदूषण से दो चार हो रहे बेंगलुरु शहर में में साइकिल का प्रयोग न सिर्फ जरूरी है, बल्कि इसे हम आने जाने का प्रमुख साधन भी बन सकता है।
- लेकिन शहर में हो यह रहा है कि लोगों में साइकिल का रुझान तेजी से कम हो रहा है।
- एक दशक से यदि साइकिल के प्रयोग को देखा जाए तो इसमें तेजी से गिरावट आई है।
- वायुमंडलीय प्रदूषण अनुसंधान पत्रिका में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ दशकों में बेंगलुरु के यातायात में साइकिलों की हिस्सेदारी में भारी गिरावट आई है।
- द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई)के जर्नल एटमॉस्फेरिक पॉल्यूशन रिसर्च में 2014 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार,1965 में, बेंगलुरु के यातायात में 70% साइकिल थी 1988 में संख्या 20% तक फिसल गई और 1998 में 5% की गिरावट।
- 2002 में तय किया गया कि साइकिल के प्रयोग को बढ़ावा देना है, लेकिन इसमें सुधार की दिशा में कुछ नहीं हुआ।
- जर्नल एटमॉस्फेरिकपॉल्यूशन रिसर्च में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, बेंगलुरु मेंकुल प्रदूषण का आधा हिस्सा तो यातायात से निकलने वाले धुएं का है।
- इसमें यदि सुधार नहीं किया गया तो 2030 तक वायु प्रदूषण से स्थिति बहुत खराब हो जाएगी।
- इससे निपटने के लिए जहां हमें वाहनों की तकनीक में सुधार करना होगा, जिससे इनके संचालक से प्रदूषण नहो।
- इसके साथ ही साइकिल के प्रयोग को बडे पैमाने पर करना होगा।
- क्योंकि तभी वाहनों से होने वाले प्रदूषण से शहर को बचा सकते हैं।
- काबिल ए जिक्र है कि बेंगलुरु उन शहरों में है, जहां साइकिल-शेयरिंग सेवाओं की शुरुआत हुई थी।
- लेकिन साइकिल के लिए शहर में ढाँचागत सुविधाएं न होने की वजह से इसका प्रयोग शहर के कुछ हिस्सों तक ही सीमित रहा।
- सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि साइकिल के लिए अलग से ट्रैक नहीं है।
- मेट्रो स्टेशन के आस पास भी ऐसी ढांचागत सुविधाएं नहीं है।
- जिससे हर कोई साइकिल के उपयोग के लिए उत्साहित हो सके।
सड़क पर सुरक्षित नहीं साइकिल सवार
- शहर के उत्तरी भाग में रहने वाले कालेज के छात्र रवनाक अहमद ने बताया कि साइकिल से सड़क पर उतरते वक्त बहुत डर लगता है।
- क्योंकि अनियंत्रित वाहन किस वक्त आपको अपनी चपेट में ले ले कुछ पता नहीं चलता।
- वह इस तरह से वाहनों को चलाते हैं कि उन्हें साइकिल सवार की सुरक्षा की कतई चिंता नहीं होती।
- इसलिए बिना हेलमेट के साइकिल चलाना यहां बेहद जोखिम भरा है।
- अहमद की चिंता निराधार भी नहीं है।
क्योंकि आंकड़े भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
- सड़क परिवहन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2011 और 2015 के बीच के बीच पांच साल की अवधि में सड़क हादसों में 25,000 से अधिक साइकिल चालकों ने अपनी जान गंवा दी है।
- बेंगलुरु में एक प्रौद्योगिकी पार्क में काम करने वाली शारदा के ने बताया कि वह कई बार मीडियो रिपोर्ट में पढ़ चुकी है कि शहर में साइकिल साइिकल संचालन का बढ़ावा देने के लिए सरकार योजना बना रही है।
- वह और उसके कई दोस्त साइकिल चलाने के शौकीन है, सरकार की साइकिल को लेकर कई गयी घोषणाएँ उन्हें उत्साहित भी करती है।
- लेकिन समय के साथ होता कुछ नहीं। क्योंकि सरकार जो घोषणा करती है,।
- उसे अमली जामा पहनाने की दिशा में ज्यादा प्रयास नहीं होता।
- शहर में हर रोज सफर करने वाली बड़ा तबका चाहता है कि वह साइकिल से आवाजही करे।
- बेंगलुरु की प्रौद्योगिकी आधारित कंपनियों ने तो अपने कर्मचारियों ाके इसमें बॉश, क्वालकॉम सिस्को और जुनिपर नेटवर्क ने तो अपने यहां काम करने वाले कर्मचारियों को साइकिल के प्रति प्रोत्साहित किया जा रहा है।
- इनके कर्मचारी काम पर साइकिल से आते, जाते हैं।
साइकिल के लिए अलग से ट्रैक ही नहीं है।
- कर्नाटक शहरी विकास के पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव महेंद्र जैन के अनुसार सरकार ने साइकिल के लिए अलग से ट्रैक के लिए 80 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है।
- इस राशि से नए सिरे से साइकिल के लिए ट्रैक विकसित किया जाएगा।
- हालांकि साइकिल को लेकर देश भर में यहीं हाल है, ट्रैक उपलब्ध ही नहीं है।
- कुछ राज्यों में साइकिल ट्रैक है भी तो उनका होना न होना एक बराबर है।
- क्योंकि इनका रखरखाव सही से नहीं हो रहा है।
- यह इतने जर्जर है कि इन पर साइकिल चलाना
- वर्तमान में, भारत में कुछ ही साइकिल ट्रैक हैं और यहां तक कि जो हैं भी वे नहीं हैं निरंतर।
- इनकी हालत इतनी जर्जर है कि साइकिल चालक अक्सर यहां चलने की बजाय मुख्य सड़क से चलते हैं।
- जहां हर वक्त उन्हें वाहन की चपेट में आने का अंदेशा बना रहता है।
- 2012 में, बेंगलुरु के जयनगर क्षेत्र में 22 सड़कों के साथ अपनी पहली साइकिल ट्रैक मिला था।
- इस पर तब रु .2.5 करोड़ की लागत आई थी। लेकिन हुआ क्या? समय के साथ यह ट्रैक अब अवैध कार पार्किंग के तौर पर प्रयोग हो रहा है।
- इसकी बड़ी वजह यह है कि विभागों के बीच तालमेल ही नहीं है।
- बृहद बेंगलुरु महानगर पालिक (बीबीएमपी) ने 2013 एक साइकिल ट्रैक की योजना तैयार की थी।होसुर रोड के साथ मड़ीवाला क्षेत्र में बनने वाले इस ट्रैक पर 3.6 करोड़ रुपये खर्च करने का बजट रखा गया था।
- लेकिन अभी तक इस योजना पर काम शुरू ही नहीं हुआ है।
- साइकिल पर्यावरण और स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी लाभदायक है।
- टीईआरआई की एक रिपोर्ट के अनुसार यदि शहर में छोटी दूरी तक जाने के लिए कार की बजाय साइकिल का प्रयोग किया जाए तो 1.8 ट्रिलियन का वार्षिक लाभ हो सकता है।
- जो कि 2015-16 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद के 1.6 प्रतिशत के बराबर है।
- टीईआरआई ने अपनी यह रिपोर्ट भारत में साइकिल चलाने के लाभ: एक आर्थिक, पर्यावरणीय और सामाजिक शीर्षक से प्रकाशित की है।
- साइकिल के प्रयोग के लाभ पर किए गए शोध से पता चलता है कि इसके प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ है।
- यह सिफारिश की कि साइकिल को प्रोत्साहित करने के लिए साइकिल विकास परिषद की स्थापना की जानी चाहिए।
(लेखक बेंगलुरू के स्वतंत्र पत्रकार है। वह 101Reporters.com अखिल भारतीय ग्रासरुट रिपोर्टर्स नेटवर्क के सदस्य है। )
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