भाजपा के चाणक्य, संगठन व्यक्तित्व के धनी और युवा हृदय सम्राट प्रमोद महाजन को उनकी 10वीं पुण्यतिथि पर देश के कोने-कोने से लोग श्रद्धासुमन अर्पित कर रहे हैं। भाजपा के संकटमोचक कहे जाने वाले प्रमोद महाजन गतिशील, बुद्धिमान और दूरदर्शी व्यक्तित्व के धनी थे। दूरसंचार मंत्री बनने के बाद समूचे भारत में दूरसंचार की अभूतपूर्व क्रांति लाने वाले युवाओं के प्रेरणास्त्रोत को आज पूरा देश नमन कर रहा है।
जानिए “प्रमोद महाजन” के जीवन के कुछ खास लम्हेः
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30 अक्तूबर, 1949 को महबूबनगर (आंध्र प्रदेश) में जन्मे प्रमोद महाजन का जीवन संघर्ष और सफलताओं का परिचायक रहा है, वे अक्सर कहते थे कि प्रमोद और पेप्सी अपना फार्मूला किसी को नहीं बताते हैं।
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1974 में प्रमोद ने स्कूल टीचर की नौकरी छोड़कर पूरी तरह से संघ का प्रचारक बनने का फैसला किया। यह उनके जीवन का निर्णाय मोड़ रहा।
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प्रमोद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में बचपन से ही सक्रिय थे, वह 1970 में संघ के अखबार “तरूण भारत” में बतौर सब एडिटर भी रहें हैं।
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अपनी प्रतिभा के बल पर वह महाराष्ट्र भाजपा के महासचिव बने। 1983 में ही उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय सचिव भी बनाया गया और 1984 की इंदिरा लहर के दौरान उन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा।
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1986 में प्रमोद को भारतीय जनता युवा मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया।
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प्रमोद महाजन 1986 में पहली बार बतौर राज्यसभा सदस्य संसद पहुंचे और 1996 में मुंबई नॉर्थ ईस्ट सीट से वह लोकसभा में भी शामिल हुए।
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भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनी सरकार में प्रमोद महाजन को देश के रक्षा मंत्री का महत्वपूर्ण कार्यभार सौंपा गया था।
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1998 में वह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सलाहकार बने, इसके एक साल बाद वह जल संसाधन और संसदीय कार्यमंत्री बनाये गए।
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वर्ष 1999 में प्रमोद महाजन पर इंडियन एक्सप्रेस अखबार की पत्रकार शिवानी भटनागर की हत्या के मामले की छीटें जरूर पड़ी। लेकिन उनकी सत्यनिष्ठा के आगे वह ज्यादा समय टिक नहीं पायी। इस प्रकरण पर प्रमोद ने अपने डीएनए टेस्ट की मांग भी कर डाली थी।
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2001 में दूरसंचार मंत्री बनने के बाद, 2001 में उन्हें पार्टी संगठन में महासचिव की जिम्मेदारी दी गई।
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2003 में चार राज्यों (दिल्ली, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान) के हुए विधानसभा चुनावों में प्रमोद महाजन ने अपने रणनीतिक कौशल का परिचय दिया। जिसके बाद 2004 के लोकसभा चुनावों की रणनीति का जिम्मा भी प्रमोद महाजन को दिया गया।
22 अप्रैल 2006 का दिन भारतीय इतिहास में विश्वासघात के लिए याद किया जाता है। लोग समझ ही नहीं पाये कि कैसे एक भाई अपने भाई के खून का प्यासा हो गया। प्रमोद महाजन अपने मुंबई स्थित अपार्टमेंट में परिवार के साथ थे। तभी उनके छोटे भाई प्रवीण महाजन वहां आए। उन्होंने अपनी पिस्टल से प्रमोद पर चार गोलियां दागीं। पहली गोली प्रमोद को नहीं लगी, लेकिन बाकी तीन उनके के लीवर और पैनक्रिअस में जा धंसी। उन्हें हिंदुजा अस्पताल ले जाया गया जहां 13 दिन के संघर्ष के बाद दिल का दौरा पड़ने से 3 मई 2006 को उनका निधन हो गया। 4 मई 2006 को मुंबई के दादर इलाके में स्थित शिवाजी पार्क में उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
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