नई दिल्ली: मोदी सरकार का अंतिम पूर्णकालिक बजट एक फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली पेश करेंगे. अगले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर माना जा रहा था कि यह बजट लोकलुभावन हो सकता है. लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी ने टीवी इंटरव्यू में कह दिया कि लोगों को मुफ्त की चीजें नहीं बल्कि ईमानदार शासन पसंद है. ऐसे में अब कयास लग रहा है कि आखिर कैसा होगा यह बजट?
राजकोषीय घाटा
माना जा रहा है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली की सबसे बड़ी प्राथमिकता राजकोषीय घाटे का 3.2 फीसदी का लक्ष्य हासिल करना है. हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि चुनावी वर्ष में सरकार खजाना न खोले, ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं. ऐसे में जेटली के सामने एक बड़ी चुनौती राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को सामने रख महंगाई और विकास दर में संतुलन बिठाना होगा. एक दलील यह भी है कि पिछले बजट में राजकोषीय घाटा 3.5% था ऐसे में अगर सरकार चाहे तो इसे लक्ष्य के कुछ नजदीक यानी 3.4 या 3.3 फीसदी तक भी ला सकती है क्योंकि उसे अगले साल चुनावी वर्ष में इसे 3 फीसदी रखने के लक्ष्य के नजदीक लाने में आसानी हो सकती है. सरकार यह कतई नहीं चाहेगी कि चुनावी वर्ष में विपक्ष उस पर महंगाई बढ़ाने की तोहमत लगाए. ऐसे में सरकारी खर्च पर सबकी करीब से नजरें लगी रहेंगी. आकलन है कि इस साल के मध्य तक भारत की अर्थव्यवस्था चीन को पीछे छोड़ कर दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगी. चुनावी वर्ष में सरकार के लिए अपनी पीठ थपथपाने का यह एक बड़ा मौका हो सकता है. एक बड़ा सवाल यह भी है कि सरकार चुनावी वर्ष में खर्च करने के लिए पैसा कहां से लाएगी. कहा जा रहा है कि विनिवेश के नए मौके खोजे जाएंगे.
ग्रामीण खर्च में बढ़ोतरी
गुजरात चुनाव में ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की हार के बाद यह सवाल उठने लगा है कि देश भर में कृषि क्षेत्र में छाए संकट को दूर करने के लिए सरकार क्या उपाय कर रही है? स्वयं प्रधानमंत्री ने भी टीवी इंटरव्यू में इस संकट के बारे में स्वीकार किया है और इसके लिए आवश्यक उपाय उठाने का आश्वासन दिया है. याद रहे कि पिछले बजट में सरकार ने अगले पांच वर्षों में यानी 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है. लेकिन कृषि विकास दर में कमी इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य के पूरा होने पर सवालिया निशान लगा रही है. किसानों की आत्महत्या और उपज के सही दाम न मिल पाना राज्य सरकारों के सामने बड़ी चुनौती है. बीजेपी के लिए यह ज्यादा बड़ी परेशानी है क्योंकि सहयोगियों के साथ 19 राज्यों में उसकी सरकार है.
माना जा रहा है कि जेटली के बजट में ग्रामीण इलाकों में सरकारी खर्च में बढ़ोतरी का ऐलान किया जा सकता है ताकि वहां छाए संकट को दूर करने के लिए सरकार कोई ठोस पहल कर सके. इसके लिए एक उपाय मनेरगा जैसी रोजगार गारंटी योजना में राशि के आवंटन को बढ़ाना हो सकता है. सिंचाई की योजनाओं में केंद्रीय मदद का हिस्सा भी बढ़ाने का विकल्प है. इसके अलावा एक दूसरा उपाय मध्य प्रदेश सरकार की भावांतर योजना को पूरे देश में लागू करना हो सकता है जिसके तहत किसानों को उपज और बाजार के दामों में अंतर की भरपाई सरकार करती है.
युवाओं को रोजगार
युवाओं को रोजगार एक ऐसा मुद्दा है जिस पर मोदी सरकार को अगले चुनाव में कई सवालों के जवाब देने हैं. हालांकि पीएम मोदी कह रहे हैं कि रोजगार के आंकड़े जुटाने के तरीके ठीक नहीं हैं और वो स्वरोजगार के बढ़े अवसरों का जिक्र करते हैं. लेकिन बजट एक ऐसा अंतिम अवसर है जिसमें सरकार युवाओं के रोजगार को बढ़ाने के लिए कुछ बड़े ऐलान कर सकती है. इसके लिए कुशलता की योजनाओं में रकम का आवंटन बढ़ाने का विकल्प है. साथ निजी निवेश के लिए सरकार कुछ प्रोत्साहन के कदम घोषित कर सकती है.
मध्य वर्ग को राहत
हर चुनाव से पहले मध्य वर्ग बड़ी आस से सरकार की ओर देखता है. हालांकि जीएसटी लगने के बाद अप्रत्यक्ष कर अब बजट का हिस्सा नहीं होंगे. ऐसे में मध्य वर्ग की पूरी आशा प्रत्यक्ष कर यानी आय कर पर आकर टिक जाती है. वैसे इतिहास गवाह है कि चुनाव से पहले के अंतिम पूर्ण बजट में सरकारें मध्य वर्ग को आय कर की दरों में कोई बड़ी राहत देने से बचती रही हैं. बजट लोक लुभावन न होने के पीएम मोदी के इशारे से भी मध्य वर्ग की उम्मीदों को झटका लगा है. हालांकि जानकार कहते हैं कि हाल के सारे चुनावों में बीजेपी का मजबूती से साथ देने वाले मध्य वर्ग को दरकिनार करना सरकार के लिए थोड़ा मुश्किल होगा. इसलिए संभावना व्यक्त की जा रही है कि आय कर की दरों में मामूली राहत जरूर मिलेगी.
स्टॉक मार्केट
जीएसटी और नोटबंदी की चोट से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की शेयर बाजार एक अलग और सुनहरी तस्वीर पेश कर रहा है. बचत के पारंपरिक तरीकों में ब्याज दर गिरने के बाद छोटे निवेशकों ने म्यूचुअल फंड के जरिए या फिर सीधे, बड़े पैमाने पर स्टॉक मार्केट में निवेश करना शुरू किया है. ऐसे में क्या सरकार लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स (एलटीसीजी) और डिविडेंड टैक्स में कुछ बदलाव कर क्या शेयर बाजार को फौरी झटका दे सकती है? यह एक बड़ा सवाल है जिसके जवाब पर करोड़ों निवेशकों की नजरें टिकी हैं.