हाल ही में पुणे से करीब 47 किलोमीटर की दूरी पर दूरदराज इलाके गांव तेंभली में रहने वाली रंजना देश की सबसे पहली आधार कार्ड धारक थीं. परंतु उनके घर में न तो रसोई गैस है, न बिजली और नोटबंदी के बाद उन्हें अब काम भी नहीं मिल पा रहा है.
गरीब लोगों का होता है राजनीति में इस्तेमाल :
- वैसे तो आधार कार्ड उनकी और उनके जैसे लोगों की जिंदगी आसान बनाने.
- साथ ही बैंकिंग व फाइनेंस से जुड़ी सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से बनवाए गए थे.
- परंतु रंजना कहती हैं, ‘जीना मुश्किल हो गया है,
- इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हमें लगता है सरकारें गरीब लोगों को सिर्फ राजनीति में इस्तेमाल करती हैं.
- साथ ही कहा असल में अमीरों के लिए काम करती हैं.
- बता दें कि रंजना दिहाड़ी मजदूर हैं और गांव के मेले में खिलौने बेचती हैं.
- बताया जा रहा है कि काम मिलना उनके लिए मुश्किल हो रहा है,
- क्योंकि किसान कहते हैं उन्हें बैंकों से कैश नहीं मिल रहा और उन्हें काम नहीं दे सकते.
- वह कहती हैं, ‘मैं सारंगखेड़ा जाकर खिलौनों की दुकान लगाना चाहती थी,
- परंतु नहीं जा पाई क्योंकि मेरे पास जाने के पैसे नहीं हैं’.
- रंजना को देश का पहला आधार कार्ड मिलने के बाद उनका गांव सुर्खियों में आ गया था.
- उनसे मोदी सरकार की नोटबंदी के फैसले पर प्रतिक्रिया मांगने पर वह थकान भरी मुस्कान के साथ कहती हैं,
- ‘हम तो पहले ही कैशलेस हैं’ नोटबंदी के बाद गांव में कोई नोट जमा करने के लिए लाइनों में नहीं लगा,
- ऐसा इसलिए क्योकि उनके पास 500-1000 के नोट बदलने या जमा करने के लिए हैं ही नहीं.
- यहां ज्यादातर लेन-देन कैश में होते हैं और वह भी 50-100 के नोटों में होता है.
- वे कहती हैं कि आधार कार्ड बनवाने के बाद किसी ने उनकी सुध नहीं ली.
- उनके अनुसार उनका बिजली का मीटर निकाल लिया गया.
- साथ ही आधार कार्ड से लिंक किया गया बैंक खाता खाली पड़ा है,
- इतना ही नहीं अब तक उसमें सब्सिडी का एक पैसा तक नहीं आया है.
UTTAR PRADESH NEWS की अन्य न्यूज पढऩे के लिए Facebook और Twitter पर फॉलो करें