हाल ही में अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अगले साल जनवरी से व्हाइट हाउस में अपना कामकाज संभालेंगे. जिसके बाद उनकी प्राथमिकताओं में एच1-बी वीजा को लेकर कड़ा रुख अपनाना शामिल होगा.
संरक्षणवादी नीति अपना सकते हैं ट्रम्प :
- हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में जीते ट्रंप के एच1-बी वीजा को लेकर कड़े कदम उठाने की आशंका है.
- ऐसा माना जा रहा है कि ट्रम्प इस वीजा के मामले में संरक्षणवादी नीति अपना सकते हैं.
- इस आशंका के मद्देनजर भारतीय कंपनियों ने स्थानीय अमेरिकियों की भर्ती भी शुरू कर दी है.
- खबर है कि दिग्गज भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिका में अपना अधिग्रहण करेंगी
- साथ ही कॉलेजों से नए कर्मचारियों की भर्ती में इजाफा करेंगी.
- आपको बता दें कि अमेरिका में भारतीय आईटी कंपनियों का कारोबार 150 अरब अमेरिकी डॉलर है.
- जिसे भारतीय रूपये में गिना जाए तो करीब10 लाख 28 हजार करोड़ रुपये का है.
- TCS, infosys और wipro जैसी कंपनियां इस वीजा के जरिए भारत से कर्मचारियों को ले जाती रही हैं.
- अमेरिकियों के अपेक्षाकृत कम वेतन के चलते कंपनियां भारतीय कम्प्यूटर इंजिनियरों को तवज्जो देती रही हैं.
- 2005 से 2014 के दौरान इन तीन कंपनियों के कर्मचारियों का आंकड़ा 86,000 से अधिक था.
- इनमें 65 हजार के करीब अस्थायी नौकरीपेशा लोग हैं
- जबकि 20-21 हजार अमेरिका के विश्वविद्यालयों में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में एडवांस डिग्रियां लेने जाते हैं.
- इस तरह अमेरिका हर साल इतने लोगों को एच1-बी वीजा देता है.
- आपको बता दें कि वीजा दिए जाने का यह काम लॉटरी सिस्टम पर आधारित होता है.
- ट्रंप अपने चुनाव प्रचार के दौरान कई बार अमेरिकी वीजा नीति को कड़ा किए जाने की वकालत कर चुके हैं.
- ऐसा माना जा रहा है कि इस कदम पर अमेरिका में अब भारत से जाने वाले इंजिनियरों में काफी हद कमी आयगी.
- अमेरिका का सिलिकॉन वैली स्थित बिजनेस भारत के सस्ते आईटी और सॉफ्टवेयर सल्यूशंस पर निर्भर रहा है.
- ट्रम्प के इस निर्णय के बाद भारतीय आईटी कंपनियां अमेरिका में कम डेवेलपर्स और इंजिनियरों को ले जाएंगी
- बल्कि वहीं के कॉलेजों से कैंपस प्लेसमेंट पर जोर दे सकती हैं.