कहते हैं पेड़ कितना भी बड़ा हो जाये, अपनी जड़ों से जुड़ा रहता हैं. हम कितने भी मॉडर्न क्यों न हो जाएँ कुछ चीजें कभी नहीं भूलते. 3D और 4D के जमाने में भी हम शक्तिमान और विक्रम बेताल को नहीं भूले.
1959 में 15 सितंबर को हुआ था दूरदर्शन:
जी हाँ वहीं शक्तिमान जिसे हमने अपने बचपन में अपना सुपर हीरो मान लिया था, तब ये सुपर मैन, बैट मैन और कृष नहीं हुआ करते थें तब तो बस एक ही था बच्चों के लिए सुपर मैन.
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वैसे ही जैसे हमारे बड़ों के लिए तब श्री राम तो बस एक ही थे, अरुण गोविल. क्या दिन थे वो, जब सब छोड़ छाड़ कर हम टीवी के सामने दूरदर्शन खोल कर बैठ जाते थे.
59 साल पहले आधे घंटे का पहला कार्यक्रम हुआ था प्रसारित:
आज उसी दूरदर्शन का Happy BirthDay है. यानी की 59 वीं सालगिरह.. जी हाँ आज ही के दिन पहली बार दूरदर्शन पर कार्यक्रम का प्रसारण हुआ था. उस दिन पहली बार आधे घंटे के लिए शैक्षिक और विकास कार्यक्रम दिखाए गये थे.
साल 1959 में 15 सितंबर को सरकारी प्रसारक के तौर पर दूरदर्शन की शुरुआत हुई थी. छोटे से पर्दे पर चलती बोलती तस्वीरें दिखाने वाला, बिजली से चलने वाला यह डिब्बा लोगों के लिए कौतुहल का विषय था.
1982 में हुई राष्ट्रीय प्रसारण की शुरूआत:
जिसके घर में टेलीविजन होता था, लोग दूर दूर से उसे देखने आते थे. छत पर लगा टेलीविजन का एंटीना मानो प्रतिष्ठा का प्रतीक हुआ करता था और देश की कला और संस्कृति से जुड़े कार्यक्रम इस सरकारी प्रसारण सेवा का जरुरी हिस्सा थे.
दूरदर्शन लोगों के दिल में इस कदर छाया हुआ था कि लोग हिंदुस्तान और पाकिस्तान के मैच प्रसारण के समय, रामायण और महाभारत के प्रसारण के समय काम छोड़ कर टीवी के सामने बैठ जाया करते थे. सड़कें खाली हो जाती थी और जिनके पास टीवी होती थी उनके घर में महफ़िल.
ये थे वो शो जिन्हें आज भी करते हैं लोग याद:
[penci_blockquote style=”style-3″ align=”none” author=”” font_style=”italic”]उस दौरान दूरदर्शन कर कुछ प्रसिद्ध और लोकप्रिय टीवी शो थे : हम लोग, ये जो है जिंदगी, बुनियाद, रामायण, महाभारत, शक्तिमान, भारत एक खोज, चित्रहार, करमचंद, ब्योमकेश बख्शी, विक्रम और बेताल, मालगुडी डेज, ओशिन (एक जापानी टीवी सीरीज), जंगल बुक, द पीकॉक कॉल्स और यूनिवर्सिटी गर्ल्स। [/penci_blockquote]
अब भले ही हमारे पास सैकड़ों टीवी चैनल्स, जियो टीवी और हॉट स्टार जैसे तकनीक हो, लेकिन दूरदर्शन का अस्तित्व और उसकी भूमिका तो आज भी हैं.
आज भी दूरदर्शन हमे भारतीय संस्कृति, देश की कला और उन तमाम चीजों से हमे जोड़ कर रखता है जिसे कहीं न कहीं हम पीछे छोड़ते जा रहे हैं.
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