विजयदशमी का त्योहार रावण वध के साथ ही बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है परंतु इससे जुड़ी और भी रोचक कथाएँ हैं
पर्व से जुड़ी रोचक कथाएँ :
- देश में रामायण से जुड़ी कथाएं तो सब जानते है परंतु इस पर्व को मनाने के कारण और भी हैं
- जैसा की सब जानते हैं विजयदशमी रावण वध के साथ ही बुराई पर अच्छाई के रूप में मनाया जाता है
- इस दिन भगवान राम ने रावण को मारकर माता सीता को मुक्ति दिलाई थी
- इसके अलावा बंगाल में माना जाता है की जब राक्षस महिषासुर के अत्याचार से मनुष्य बेहाल थे
- तब तीन देवो द्वारा माँ शक्ति को महिषासुर का वध करने हेतु अवतरित किया गया था
- इसके अलावा एक और रोचक कथा विजयदशमी से जुड़ी है जिसे बहुत कम लोग जानते हैं
- माना जाता है कि जब पांडव कौरवो द्वारा हराए गये थे तब उन्हें वनवास की सज़ा मिली थी
- नियम के अनुसार उन्हें अपने 13 वर्ष के वनवास में आखरी वर्ष अज्ञातवास में काटना था
- अज्ञातवास के वर्ष में उन्होंने अपना वेश बदला था और अपने शस्त्र शामी के पेड़ के नीचे छुपाये थे
- माना जाता है की अज्ञातवास समाप्त होने के बाद पांडवो को इसी दिन अपने शस्त्र यथा स्थान मिले थे
- इसी कारण देश के कुछ भागों में विजयदशमी के दिन लोग एक-दूसरे को शामी के पत्ते भेट करते हैं
- इसके साथ ही इस दिन शामी के पेड़ की पूजा करने का भी रिवाज़ है
- इसके अलावा देश में विजयदशमी से जुड़ी एक कहानी और भी है
- यह कहानी अयोध्या में रहने वाले मुनि देव्दत्त के पुत्र कौत्य से जुड़ी है
- माना जाता है कि कौत्य ने अपनी शिक्षा ऋषि वरह्तलतू से प्राप्त की थी
- जब उसकी शिक्षा समाप्त हुई तो उसके गुरु ने गुरुदक्षिणा में 140 सोने की मौहरे माँगी
- अपने गुरु की इच्छा पूर्ण करने में असमर्थ कौत्य ने राजा से मदद मांगी थी
- परंतु कौत्य की यह मांग धन के भगवान् कुबेर द्वारा पूरी की गयी
- बताया जाता है की आक के पेड़ के नीचे आसमान से मौहरो की वर्षा हुई
- इन मौहरो को जमा कर कौत्य ने अपनी गुरुदक्षिणा अपने गुरु को दी
- जिसके बाद से आक के पत्तों को सोना मानकर लोग एक-दूसरे को भेट करते हैं
- शासक इसी त्योहार के समय अपने विरोधियों को युद्ध के लिए ललकारते थे
- इसके साथ ही वे युद्ध के लिए सीमा उल्लंघन भी करते थे
कब से शुरू हुई यह प्रथा :
- माना जाता है कि विजयदशमी का यह पावन त्योहार 17वीं सदी से शुरू हुआ
- इस त्योहार को बड़े पमाने पर मनाना तब शुरू हुआ जब मैसूर के राजा ने इसे मनाने का आदेश दिया
- जिसके बाद से विजयदशमी का यह त्योहार लोगों द्वारा बड़े ही हर्षौल्लास के साथ हर साल मनाया जाता है
- इससे यह सिद्ध होता है की विजयदशमी का यह त्योहार केवल बुराई पर अच्छाई का प्रतीक नहीं है
- यह त्योहार लोगों को एकजुट होकर खुशियाँ बांटने का अवसर भी प्रदान करता है