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कर्नाटक का नाटक : कल जो हारा वही चमकेगा

floor test karnataka assembly on saturday at 4 PM

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कर्नाटक की सियासत किस करवट बैठेगी? शनिवार की शाम, चार बजे के बाद, कर्नाटक विधानसभा के दरवाजे से कौन जीत कर निकलेगा? यही वह सवाल है जो कर्नाटक में होने जा रहे फ्लोर-टेस्ट से पहले ख़बरों की दुनिया में छाया रहेगा.
शुक्रवार और शनिवार, इन दो दिनों में सुप्रीम-कोर्ट ने जो फैसला उसने पूरे देश को को यह सन्देश जरूर दे दिया कि वह भारतीय संविधान का सबसे वफादार रखवाला है. एक तरफ उसने राज्यपाल के पद का और उनके फैसले का सम्मान रखते हुए उनके द्वारा यदुरप्पा की ताजपोशी के फैसले को भी बरकरार रक्खा तो दूसरी ओर सरकार बनाने के दावे के रूप में यदुरप्पा द्वारा राज्यपाल को लिखे पत्र की भाषा और दावे का संज्ञान लेते हुए राज्यपाल द्वारा यदुरप्पा को बहुमत सिद्ध करने के लिए दिए गए 15 दिन को ख़ारिज करते हुए निर्देश दे दिया कि यदुरप्पा शनिवार 4 बजे तक अपना बहुमत साबित करें. सरकार किसी की हो, संविधान की रखवाली अदालत के ही जिम्मे
पिछले 48 वर्षों में भारतीय राजनीति ने सत्ता पाने की रस्साकशी में (जिसकी शुरुआत इंदिरा गांधी ने की) अपने किरदार को इतना गन्दा कर लिया है कि उससे संविधान को बार-बार खतरा महसूस होता रहा है, और हर घटने वाली सियासी घटना के साथ यह खतरा बढ़ता ही जा रहा है. इसलिए जब-जब सियासत ने संविधान को दलदल में घसीटा, सुप्रीम-कोर्ट ने ही उसे बचाया है.

अब ज़रा देखिये कर्नाटक की रस्साकशी को

कर्नाटक में कुल विधायकों की संख्या है 224. लेकिन वर्तमान चुनाव हुआ 222 पर. चूँकि कुमारस्वामी दो सीटों से जीते हैं और एक ही विधायक के रूप में शपथ ले सकते हैं इसलिए सदन में विधायकों की संख्या 221 ही मानी जाएगी. अब 221 के सदन में बहुमत साबित करने के लिए 111 विधायकों की जरूरत होगी. इसका मतलब यह हुआ कि भाजपा जो विधान-सभा में 104 विधायकों के साथ सबसे बड़ा दल है उसे 7 विधायकों की जरूरत है. वह जीते 2 निर्दलीय विधायकों के साथ होने का दावा कर रही
है और अपनी संख्या 106 बता रही है. इसके अलावा उसने दावा किया है कि कांग्रेस और जद(स) के करीब 6 विधायक उसके संपर्क में हैं और उसे ही समर्थन देंगे. दूसरी ओर कांग्रेस और जद(स) के 115 विधायक हैं जिनके पास सरकार बनाने का पर्याप्त बहुमत है. दोनों ही अपने विधायकों को लेकर बंगलुरु से ग़ायब हो गए हैं ताकि भाजपा उनके
विधायकों के साथ खरीद फरोख्त न कर सके. हम पहले ही कह चुके हैं कि वर्तमान सियासत से किसी नैतिकता की उमीद रखना, अपने आपको धोखे में रखने जैसा है. अब बचने के लिए इधर- उधर भाग रहे विधायकों का एक विधायक (कांग्रेस का) कहीं छूट गया है. यह बिलकुल ऐसा ही है जैसे भेड़ों के झुण्ड से एक भेड़ ग़ायब हो जाए और चरवाहे के कुत्ते उसे ढूंढ न पाएं. ऐसे में चरवाहे की चिंता बढ़ जाती है कि कहीं कोई भेड़िया उसे न खा जाए. अब शनिवार को सब एक जगह इकट्ठे होंगे तो पहले सारे विधायकों को शपथ दिलाई जाएगी.
सारी भेडें एक जगह आएँगी. दोनों ओर के चरवाहे पैनी निगाह रक्खेंगे कि कहीं बेध्यानी में कोई भेड़ इधर से उधर न हो जाए. एक ओर हरी घांस ज्यादा है, कहीं भूख से बिलबिलाकर कोई उधर न चला जाए. इसी बेचैनी के बीच नाटक का मंचन किया जाएगा.

यदुरप्पा ने दी अंतरात्मा की दुहाई

पहली बात क्या सियासी नेताओं में अंतरात्मा जैसी कोई चीज़ होती भी है. फिर भी शुक्रवार को अकेले शपथ लेकर कर्नाटक के 23वें मुख्यमंत्री बने यदुरप्पा ने कांग्रेस और जद से चुनकर आये लिंगयात विधायकों से अपील की है कि कल चार बजे वोट देने से पहले वे अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनें. निष्पक्षता और समानता की पहरेदारी करने वाले संविधान के मंदिर में किसी एक समुदाय से ऐसी अपील, उस संविधान के साथ कितना बड़ा मजाक है जिसकी कल कर्नाटक में
सब शपथ लेंगे.
कुल मिलाकर आज की बात की जाए तो कागज़ पर कांग्रेस+जद के पास ही वह आंकड़ा है जिससे सरकार बन सकती है और बाकी सब कुछ संभावनाओं पर आधारित है. और संभावनाएं हैं जो ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही हैं. अब एक समीकरण यह भी है कि कांग्रेस और जद के पास ऐसे पांच विधायक हैं जो बेल्लारी क्षेत्र से जीत कर आये हैं. बेल्लारी का मतलब है रेड्डी बंधुओं का इलाक़ा. इन पाँचों विधायकों पर येदुरप्पा और भाजपा की पैनी नज़रें हैं. माना जा रहा है कि अगर टूट हुई तो यही 5 विधायक भाजपा की ओर जा सकते हैं. इसके अलावा 2 निर्दलीय उम्मेदवार भी बीजेपी के मायाजाल में फंस सकते हैं. इसके अलावा 2 विधायक ऐसे भी हैं जो जद(स) से टूट कर कांग्रेस के टिकट पर जीते हैं. माना जा रहा है कि इन्हें मुख्यमंत्री के रूप में कुमारस्वामी शायद नामंज़ूर हों, इसलिए ये बीजेपी के खेमे में जा सकते हैं. इनके अलावा दो विधायक ऐसे भी हैं जो ईडी की जांच के घेरे में हैं और बचने के लिए पाला बदल लें. इस तरह यह गिनती 11 की होती है. अगर यह 11 विधायक कल बीजेपी के हक में नज़र आये तो भाजपा ही वह पार्टी होगी और येदुरप्पा ही वह मुख्मंत्री होंगे जो कल शाम मुस्कुराते हुए कर्नाटक सदन से बहार निकलेंगे.

लेकिन इस मुस्कराहट की कीमत क्या होगी?

दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट द्वारा 15 दिन की मोहलत को ख़ारिज करते हुए, शनिवार को ही बहुमत साबित करने के निर्देश के बाद कर्नाटक में कांग्रेस और जद कार्यकर्ताओं ने इस तरह जश्न मनाना शुरू कर दिया है जैसे उनकी सरकार बन गयी हो. सरकार किसकी बनेगी यह तो अभी निश्चित नहीं है लेकिन बीजेपी और कांग्रेस+जद, दोनों ही सरकार बनाने की लड़ाई में जी जान से लगे हुए हैं और किसी भी सीमा तक जा सकते हैं. इनके बीच नैतिकता, मर्यादा और संविधान की गरिमा, यह सारे शब्द केवल भाषणों तक ही सीमित हैं. अब इस संकट से उबार कर जो जीता, उसके हाथ आएगी सरकार और जो हारा उसे मिलेगी जनता की सहानुभूति. क्योंकि पूरा देश इस नाटक को देख रहा है और आने वाले समय में अभी तीन राज्यों के चुनाव के साथ-साथ लोकसभा का महा-रण भी शामिल है. यदि कांग्रेस हारती है तो जनता की सहानुभूति उसे मिलेगी और उसका आधार और बढ़ेगा क्योंकि देश जानता है कि भले ही उसे 78 विधायकों से संतोष करना पड़ा हो लेकिन उसका वोट शेयर 38% था. साथ ही
गठबंधन की राजनीति में उसकी भागेदारी को इसलिए कोई चैलेंज नहीं कर पायेगा क्योंकि उसके बिना गठबंधन की विजय महज एक चुनावी कवायद के सिवा कुछ भी नहीं होगी, जिसके कोई परिणाम नहीं निकलेंगे.

यदि शनिवार को बीजेपी सरकार बनाने के बाद भी सरकार नहीं बना पाती तो संवेदनाएं उसके हक में होंगी क्योंकि उसने सरकार बनाने का दावा ही इस आधार पर पेश किया था कि उसके पास सबसे ज्यादा सीटें हैं. ऐसे में पिछले दिनों में उसकी लोकप्रियता में जो कमी आई है उसकी क्षतिपूर्ति में जनता की यही भावना उसके साथ जुड़ जायेगी. कुलमिलाकर जो भी होगा, बहुत दिलचस्प होगा.

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