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तीन साल पहले कचरा प्रबंधन का दावा: हकीकत अभी भी लगायी जा रही कूड़े में आग

कपिल काजल

बेंगलुरु, कर्नाटक:

कर्नाटक सरकार ने 2017 में कूड़ा जलाने पर रोक लगा थी। लेकिन प्रदेश की राजधारी बेंगलुरु में अभी भी कूड़े को जलाया जा रहा है। कूड़े के निपटरा के लिए
जिम्मेदार एजेंसी, बृहत बेंगलुरु महानगर पालिक (बीबीएमपी) के अधिकारी दावा कर रहे हैं कि अब शहर में कचरा नहीं जलाया जा रहा है। उनके दावे के विपरीत शहर भर में कई जगह पर कूड़ा जलते हुए देखा जा सकता है।

शहर के जीवन भीम नगर निवासी ने बताया कि उन्हें सभी भी कचरे को जलाना पड़ता है। क्योंकि शिकायत के बाद भी उनके घर के सामने पड़े कचरे को उठाने के लिए बीबीएमपी ने कुछ नहीं किया। उनके घर के सामने गंदगी फैल रही थी। जो कि मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियों की वजह बन सकती थी।

साइनस की समस्या से पीड़ित निहाल (27)
ने बताया कि कचरा जलाने से पर्यावरण प्रदूषित हो जाता है। इस वजह से उसे सांस लेने में खासी दिक्कत आती है।
जीवन भीम नगर में तैनात बीबीएमपी फील्ड मार्शल विश्वनाथ एम ने दावा किया कि तीन महीने पहले उसने जब से फील्ड मार्शल के तौर पर यहां का काम संभाला है, तब से में कचरा जलाने के कोई मामला सामने नहीं आए हैं। उन्होंने कहा कि हालांकि, कभी-कभी सड़क किनारे जली हुई पत्तियां जरूर देखने को मिली।

कूड़ा जलाने के पीछे कचरा माफिया

बीबीएमपी ने घर घर से कूड़े को इक्ट्ठा करने का काम ऑटो टिपर्स को सौंप रखा है। ऑटो चालक घरों से कचरा लेकर ड्राई वेस्ट कलेक्शन सेंटर (डीडब्ल्यूसीसी) में एकत्रित करते हैं। बीबीएमपी ने सभी वार्डों में ड्राई वेस्ट कलेक्शन सेंटर (डीडब्ल्यूसीसी) बना रखा है। यहां कचरे को अलग अलग कर उसे निपटान केंद्र तक पहुंचा जाता है।
पर्यावरण कार्यकर्ता जगदीश रेड्डी ने बताया कि कचरा इक्ट्ठा करने की इस प्रक्रिया में ठेकेदार पैसा बचाने के लिए इसे किसी एकांत स्थान पर फेंक देते हैं।

रेड्डी ने बताया कि स्थानीय कचरा माफिया नहीं चाहता कि कूड़ा अलग अलग किया जाए। क्योंकि इस तरह से वह बहुत सा पैसा बचा लेता है। दूसरी ओर स्थानीय निकाय के पास ऐसा कोई सिस्टम् ही नहीं है कि माफिय की इस करतूत पर रोक लगा सके। कई बार निगम के संयुक्त आयुक्त माफिया की कारगुजारी पर रोक लगाने की कोशिश करते हैं। पर क्योंकि कचरा माफिया को राजनेताओं का संरक्षण प्राप्त है, इसलिए अधिकारियों की कार्यवाही बेअसर साबित होती है।

हालांकि राज्य सरकार ने सभी शहरी स्थानीय निकाय सीमा में

वायु संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम,1981 की धारा 19 (5) के तहत खुले स्थानों में कचरा जलाने पर पूरी तरह से रोक लगा रखी है। यह रोक पेड़ों की पत्तियों और टहनियों पर भी है। यदि कोई ऐसा इसका उल्लंघन करता है तो पहली बार 1,000-2,000 रुपये और दूसरी बार इसका उल्लंघन करने पर 5,000 रुपये तय जुर्माना लगाया जाने का प्रावधान भी किया गया है।

कचरा जलाने के शहरवासियों के आरोपों को बीबीएमपी (पूर्व) के संयुक्त आयुक्त के आर पल्लवी ने सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने यह भी दावा किया कि कुछ शहरवाही खुद ही कचरे में आग लगा देते हैं।

उन्होंने तो यहां तक दावा किया कि अब न तो बीबीएमपी के कर्मचारी और न ही ठेकेदार कचरे को जलाते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले साल डंपिंग ग्राउंड पर्याप्त नहीं थे, फिर भी इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि कोई कचरे को जलाये नहीं। उन्हें हिदायत दी गयी थी कि यदि कचरा जलाया तो हर हालत में जुर्माना लगाया जायेगा।

ठूंठ जलने से ज्यादा हानिकारक कचरे का धुआं

कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) के एक शोध किया था, इसमें पाया था कि शहरी क्षेत्र में ठोस कचरे और प्लास्टिक को जलाने से जहरीला धुआं हवा में मिलता है। इसमें सल्फर डाइऑक्साइड ( एसओ 2 ), कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2), कार्बन मोनोऑक्साइड (सीओ) जैसे हानिकारक गैस निकलती हैं। ),यह जहरीली गैस और कार्बन कण हवा में मिल कर प्रदूषण को बढ़ा देते हैं। इस तरह की हवा में सांस लेना सभी की सेहत के लिए हानिकारक है।

केएसपीसीबी के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डॉ एच लोकेश्वरी ने कहा कि यदिर प्लास्टिक और अन्य कचरे को जलाया जाता है तो यह कैंसर का भी कारण बन सकता है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि कचरा जलाना ठूंठ जलाने से ज्यादा नुकसानदायक है। भारतीय विज्ञान संस्थान में सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज के एक प्रोफेसर डॉ। टी। वी। रामचंद्र ने कहा कि कचरे में आमतौर पर धातु, प्लास्टिक और एरोसोल शामिल होते हैं, और इसे जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, हाइड्रोकार्बन और डाइऑक्सिन जैसी बहुत जहरीली गैसें निकलती हैं।

लेकसाइड सेंटर फॉर हेल्थ प्रमोशन के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ एच परमेश ने बताया कि कचरा जलाने से जहरीले तत्व हवा में मिल जाते हैं। इसमें कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसें सांस की बीमारियों की वजह बन सकती है। यहां तक की इससे दिल का दौरा तक पड़ सकता है। इस तरह की गैसों में शामिल हाइड्रोकार्बन, ्र बेंजीन और डाइऑक्सिन त्वचा और मूत्राशय के कैंसर का कारण भी बन सकता है। इस तरह की प्रदूषित हवा में लगातार सांस लेने से प्रजनन क्षमता पर भी प्रभाव पड़ता है। फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी ऑफ इंडिया के गवर्निंग काउंसिल मेंबर डॉ येलपा रेड्डी तो यहां तक कहते हैं कि कचरा जलाने से होने वाला प्रदूषण सिर्फ इंसानों को ही अपने चपेट में नहीं ले रहा है, इसका असर पेड़, पौधे और जल स्त्रोत पर भी प्रतिकूल असर डालता है।

उन्होंने कहा कि पारा जैसे भारी धातुओं के जलने से जहरीले तत्व मिट्टी में मिल जाते हैं, जो धीरे धीरे रिस कर भूजल में मिलते रहते हैं। इससे भूजल प्रदूषण तेजी से बढ़ता है। इसी तरह से जहरीले कण पौधों को भी प्रभावित करते हैं। प्रकाश की किरण उन तक पूरी मात्रा में नहीं पहुंच पाती। इससे पौधों की वृद्धि प्रभावित होती है। उन्होंने कहा कि कचरा जलाने वाले ठेकेकार पूरी तरह से लापरवाह है। वह कचरा इकट्ठा करने के काम को सही तरह से नहीं कर रहे हैं। जो कि पर्यावरण, मानव और प्राकृतिक हर किसी के लिए भारी नुकसान की वजह बन रहा है। इसलिए ऐसे ठेकेदारों के खिलाफ हत्या जैसे संगीन धाराओं के तहत मामला दर्ज कर उन्हें सजा दी जानी चाहिए।

डॉ रेड्डी ने कहा कि कचरे को सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के मुताबिक अलग अलग किया जाना चाहिए। निगम को चाहिए कि वह ऐसा करे। क्योंकि यह कचरा बेकार नहीं है, इसका यदि सही तरह से प्रयोग किया जाये तो इससे बहुत कुछ तैयार किया जा सकता है। जैसा कि जैविक कचरे से बायोगैस तैयार हो सकती है। इससे वर्मीकम्पोस्ट तैयार किया जा सकता है। ऐसा ठोस कचरा जिसे गला कर दूसरी सामग्री तैयार हो सकती है। जो बाकि कचरा बचता है, जिसका कोई उपयोग नहीं हो सकता, उसे हम उबड़ खाबड़ जमीन को समतल करने में प्रयोग कर सकते हैं।

फ़ोटो द्वारा: तेजस दयानंद सागर

(लेखक मुंबई स्थित स्वतंत्र पत्रकार है, वह 101 रिपोर्टर्स जो भारत में ग्रासरूट रिपोर्टर्स नेटवर्क है, के सदस्य है।

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