दुर्बा घोष
बेंगलुरु: अनुष्का गौड़ा एक साल पहले अपनी दो बेटियों के साथ अमेरिका से बेंगलुरु चली आईं। कुछ समय बाद उनकी बच्ची को एलर्जिक राइनाइटिस हो गई जो कि अस्थमा का एक मामूली रुप है।
एलर्जिक राइनाइटिस को परागज ज्वर भी कहते हैं। यह वातावरण में मौजूद पराग, धुल के कण और यहाँ तक की बिल्ली के बाद से भी हो जाता है। इसके लक्षण है बहती हुई नाक से लेकर आँखों में घरघराहट या सूजन।
इसके कारण नींद और एकाग्रता प्रभावित हो सकती है जिसमे अनुष्का की बेटी भी कोई अपवाद नहीं है। डॉक्टर फेफड़ों को मजबूत करने के लिए दवाइयां एवं सही खुराक की सलाह देते हैं, एक बार हो गया तो फिर बच्चो को इस समस्या के साथ ही ज़िंदगी भर रहना पड़ता है।
पर इसकी ज़िम्मेदार बेंगलुरु की गार्डन सिटी की हवा नहीं है बल्कि बेंगलुरु के सुहाने मौसम में मौजूद प्राकृतिक प्रदूषक जिसके वजह से दो साल की बच्ची को या तकलीफ झेलनी पड़ रही।
पराग मुख्य रूप से पोलिनोसिस के लिए जिम्मेदार है, जो अस्थमा, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, एलर्जी राइनाइटिस और डर्मेटाइटिस जैसे विभिन्न त्वचा रोगों के कारण होता है, डॉ रवींद्र खलीवाल जो पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (PGIMER) में पर्यावरण अध्ययन के लिए अतिरिक्त प्रोफेसर हैं बताते हैं।
“हवा में मौजूद जैव-प्रदूषक, वातावरण का एक हिस्सा हैं। चूँकि यह काफी सूक्ष्म होते हैं इसलिए स्वांश के रस्ते में आ सकते हैं जिससे सांस की बीमारी, स्ट्रोक या दिल की बीमारी हो सकती है।” उन्होंने बताया।
कोई पक्का इलाज न होने के कारण सावधानी ही इसको रोकने का एक मात्र तरीका है। “चूँकि बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है इसलिए उनमें ये आगे चलकर अस्थमा या ब्रोंकाइटिस का भी रूप ले सकता है।” डॉ रिंकू रॉय का कहना है जो लाइफ स्पैन इंडिया में सलाहकार मधुमेह विशेषज्ञ और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के पूर्व चिकित्सा अधिकारी रहे हैं।
ए बी सिंह जो की एक वैज्ञानिक है उनके मुताबिक पराग नमी से आकर्षित होते है इसलिए सावन के वक़्त एलर्जी होने की सम्भावना सबसे ज़्यादा हैं।
दोहरी मार
“पिछले कुछ सालों से वायु प्रदुषण बढ़ने से दिक्कतें बढ़ी हैं। प्रदूषक, पराग से मिल जाते हैं और उनके आकार में बदलाव आ जाता है जिसकी वजह से एक सब-पॉलेन तत्व बनता है।” डॉ खलीवाल समझते हैं।
इन सबकी वजह से जैव-प्रदूषकों से होने वाली एलर्जी बढ़ी है। “अध्यन में पता चला है की बंगलोरे किस हवा में एक घंटा सांस लेने से होने वाले नुक्सान को सही होने में महीना भर लग सकता है। खून में घुल जाने पर इससे नर्वस डैमेज या दिल का दौरा भी पड़ सकता है,” बेंगलुरु में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ परमेश का कहना है। डॉ परमेश के ही मुताबिक लेकसाइड हॉस्पिटल एक अध्ध्यन अनुसार 1979 में 9 प्रतिशत, 2009 में 25 प्रतिशत और अब 35 प्रतिशत बच्चों को स्वांश से जुडी एलर्जी है। एक रिपोर्ट अनुसार कणिक तत्व पीएम-10 की मात्रा हवा में 74 प्रतिशत हो जाएगी 2030 तक जिसमे पराग भी मिला हुआ है।
बचाव
पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर नंदिनी का कहना है कि जैविक प्रदूषक फूल पौधों के पराग हैं और यह खास किस्म के फूल जैसे कि गुलमोहर से निकलते हैं और बाद में जाकर हवा में मिल जाते हैं।
डॉक्टर खलीवाल सलाह देते हैं कि, “सबसे पहले उन पौधों की पैदावार कम करनी चाहिए जो पराग उत्पादित करते हैं। शहर के लिए एक पालन कैलेंडर बनाना चाहिए और पहले ही अधिसूचना जारी कर देनी चाहिए जिससे शहरवासी अपना ख्याल रख सके। जरूरत पड़ने पर लोग बचाव के लिए मास्क वगैरा जैसी चीजें भी इस्तेमाल कर सकते हैं उन मौसम में जिसमें पराग ज्यादा पैदा होते हैं।”
(दुर्बा, बेंगलुरु में स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101Reporters.com कि सदस्य हैं।)