कम उम्र में बालिकाओं के गर्भधारण करने से प्रसव के दौरान जटिलता का खतरा रहता है। यही वजह है कि बाल विवाह पर रोक भी लगायी गयी है। बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली अग्रणी संस्था ‘क्राइ’ का कहना है कि जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2011 में 10-19 आयुवर्ग की 1.3 करोड़ लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी गई। हालांकि, अशिक्षित लड़कियों की तुलना में बाल विवाह की शिकार होने वाली या कम उम्र में मां बनने वाली शिक्षित लड़कियों की संख्या कम रही।
ये भी पढ़ें :लविवि : छात्रावास की बढ़ी हुई फीस वापस!
कम उम्र में माँ बनना हो सकता है खतरनाक
- बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली ये संस्था मुंबई का एक गैर सरकारी संगठन है।
- इस संस्था के विश्लेषण में कहा है कि 2011 के बाद से बाल विवाह का शिकार होने वाली लड़कियों की संख्या में खास कमी नहीं आई है।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 के आकड़ों में इसका पता चलता है।
- 2015-16 में 15 से 16 वर्ष की आयु के बीच मां बन चुकीं लड़कियों की संख्या 45 लाख रही।
- बचपन में ही विवाह हो जाने के चलते लड़कियों पर सामाजिक दबाव बढ़ जाता है।
- और उनसे नई भूमिका में परिवार की जिम्मेदारियों को वहन करने की उम्मीद भी बढ़ जाती है।
- जिसके चलते या तो वे अपनी शिक्षा पर ध्यान नहीं दे पातीं या उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ता है।
- इसके अलावा दुर्व्यवहार और एचआईवी/एड्स और अन्य यौनजनित बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है।
- इतना ही नहीं, उनके कम उम्र में मां बनने का भी जोखिम होता है।
- डब्ल्यूएचओ के अनुसार, कम उम्र में गर्भधारण से एनीमिया, मलेरिया, एचआईवी का भी खतरा होता है।
- वही यौनजनित बीमारियों, प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव और मानसिक विकारों से ग्रस्त होने का खतरा रहता है।
- जनगणना के मुताबिक, 2011 में भारत में किशोर लड़कियों की संख्या 38 लाख थी।
- इनमें से 14 लाख लड़कियां किशोर अवस्था पार करने से पहले ही दो या अधिक बच्चों की मां बन चुकी थीं।
ये भी पढ़ें : तस्वीरें: CREDAI के कार्यक्रम में CM योगी आदित्यनाथ!
शिक्षा का पड़ता है प्रभाव
- शिक्षा के जरिए कम उम्र में गर्भधारण की संभावना पर लगाम लगाई जा सकती है।
- आकड़ों के मुताबिक, कम उम्र में गर्भधारण करने वाली अशिक्षित लड़कियों का प्रतिशत 39 रहा।
- वहीं 26 फीसदी शिक्षित किशोरियों ने ही गर्भधारण किया।
- उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल में 2011 में विवाहित 13.5 लाख किशोरियों में से 50 फीसदी अशिक्षित लड़कियां मां बन चुकी थीं।
- जबकि किशोरावस्था में मां बनने वाली शिक्षित लड़कियों का प्रतिशत 37 ही रहा।
- अपने विश्लेषण में ‘क्राइ’ का कहना है कि अगर बाल विवाह और कम उम्र में मां बनने पर लगाम लगाई जाए।
- तो भारत अगले सात वर्षो के दौरान स्वास्थ्य कल्याण पर 33,500 करोड़ रुपयों की बचत कर सकता है।
- आईसीआरडब्ल्यू द्वारा बाल विवाह को खत्म करने के लिए कई समाधान दिए हैं।
- इसमें कहा गया है, “बाल विवाह के चलते लड़की की शिक्षा रुक जाती है।”
- शिक्षित महिलाओं के स्वस्थ मां बनने की संभावनाएं भी अधिक रहती हैं।
- उदाहरण के लिए माध्यमिक शिक्षा प्राप्त 63 फीसदी महिलाएं प्रसव से पहले चार बार परामर्श लेने पहुंचीं।
- जबकि अशिक्षित महिलाओं में सिर्फ 28 फीसदी ने तथा प्राथमिक शिक्षा प्राप्त 45 फीसदी महिलाओं ने ही ऐसा किया।
- अशिक्षित महिलाओं में से सिर्फ 62 फीसदी महिलाएं ही बच्चे के जन्म के लिए अस्पताल या प्रसूती विशेषज्ञ के पास पहुंचीं।
ये भी पढ़ें : योगी सरकार 5 साल तक नहीं देगी मान्यता!