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वाहनों की बढ़ती संख्या बेंगलुरु को धकेल रही प्रदूषण की गर्त में

 कपिल काजल
बेंगलुरु, कर्नाटक:
इसमें कोई दो राय नहीं है कि परिवहन के बिना विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती।  आर्थिक गतिविधियों में परिवहन की अहम भूमिका है। वाहनों के माध्यम से  तैयार माल एक जगह से दूसरी जगह जाता है। फिर भी पर्यावरण को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। क्योंकि डीजल से चलने वाले यह वाहन वायु प्रदूषण का कारण बनते हैं। अब भारत की  सिलिकॉन वैली का उदाहरण ही ले लिजिये,यहां  83 लाख से अधिक पंजीकृत वाहन है।   वायु प्रदूषण की बड़ी वजह बन रही कार्बनडाईआक्साइड की आधी मात्रा तो इन  वाहनों से निकलने वाले धुए से होती है।
सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंस  (सीइएस) की एक रिपोर्ट के मुताबिक वाहनों से निकलने वाले कार्बन डाइआक्साइड के मामले में बेंगलुरु हैदाराबाद के बाद दूसरे नंबर का शहर है।

सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंस आईआईसीएस के डाक्टर टीवी रामचंद्र ने बताया कि वाहनों की बढ़ती संख्या बेंगलुरु के प्रदूषण की बहुत बड़ी वजह बन रही है। इससे कार्बनडाइआक्साइड का स्तर भी बढ़ रहा है। उन्होंने बताया कि इसके लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम  काफी हद तक जिम्मेदार है। इसी तरह से बेतरतीब तरीके से बढ़ रहा शहरीकरण दूसरी बड़ी वजह है। इसके चलते लोगों को एक जगह से दूसरी जगह तक जाने के लिए अपने निजी वाहन  का प्रयोग करना पड़ रहा है। अब इससे कितना प्रदूषण होता है, इसका पता

कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) के एक  अध्ययन से चलता है। इस अध्ययन के अनुसार अधिक संख्या में वाहन सड़क पर आने से लगने वाले जाम के वक्त धूल कणों की मात्रा 62 प्रतिशत तक पहुंच जाती है। इसमें वाहनों से निकलने वाला धुये का योगदान लगभग 30% है।
क्योंकि जितने अधिक वाहन सड़क पर आयेंगे, जाम उतना ही ज्यादा लगेगा। इससे दो तरह से प्रदूषण होगा। एक तो वाहनों से निकलने वाले धुए से दूसरा क्योंकि जाम लग गया, बड़ी संख्या में वाहन फंस जाते हैं । इस तरह से ऐसी जगह पर प्रदूषण का स्तर बहुत उंचा चला जाता है।

कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुख्य वैज्ञानिक अधिकारी डाक्टर ए लोकेश्वरी ने बताया कि इससे बचने के लिए ही  बोर्ड की ओर से एक 44 सूत्री कार्ययोजना तैयार की है। इसका उद्देश्य यहीं है कि प्रदूषण का स्तर कम किया जाए। उन्होंने बताया कि बेंगलुरु मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन को निर्देश दिए गए कि वह अपनी बसों के इंजन को सीएनजी इंधन आधारित सिस्टम में तब्दील कराये। दूसरी ओर  नम्मा मेट्रो को काम पूरा करने के लिए बोला गया है। इसका जो भी  काम बाकी रह गया है, उसे जल्दी पूरा किया जाए। मैट्रों का संचालन होने से लोग अपने निजी वाहनों को छोड़ सकते हैं। क्योंकि तब उनके पास आने जाने के लिए अच्छा और किफायती विकल्प होगा।

फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी ऑफ इंडिया के गवर्निंग काउंसिल मेंबर डॉ. येलापा रेड्डी ने सुझाव दिया कि शहर में चल रही फैक्ट्रियों को दूसरे क्षेत्रों में शिफ्ट कर दिया जाए। इससे शहर में यातायात कम हो सकता है।
पर्यावरण के लिए यह कदम उठाने क्यों जरूरी है? इसके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन की इस  रिपोर्ट का आंकलन करना जरूरी होगा। इस रिपोर्ट के मुताबिक वाहनों से निकलने वाले धुएं से बढ़ रहा प्रदूषण हर किसी की सेहत के लिये बड़ा खतरा बना हुआ है। इस तरह के प्रदूषण  से दिल की बीमारी, दौरा पड़ने,  फेफड़े का कैंसर, बच्चों और वयस्कों में सांस की नली का संक्रमण बढ़ रहा है।

वाहनों के धुए से शहर में हो रहे प्रदूषण पर 2012 में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक
कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा, कार्बन मोनोऑक्साइड, 80% से अधिक नाइट्रोजन ऑक्साइड,  सल्फर डाइऑक्साइड  20% और शहर सुक्ष्म कणों की मात्रा  35% पायी गयी है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि शहर में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। इसकी बड़ी वजह वाहनों की बढ़ती संख्या बन कर उभर रही है।
अब इससे बचने का एक ही तरीका है। वह यह है कि शहर के लोगों को आने जाने के लिए सस्ते और तेज सार्वजनिक यातायात व्यवस्था उपलब्ध करायी जानी चाहिए। इसके लिए एलिवेटेड रेल सिस्टम, , मेट्रो रेल, मोनोरेल,  स्काई बस और सीएनजी या फिर इलेक्ट्रोनिक बस सुविधा प्रमुख विकल्प हो सकते हैं।

अध्ययन में यह भी बताया गया कि आम आदमी को भी पर्यावरण के प्रति जागरूक करना होगा। बच्चें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बने, इसके लिए स्कूल स्तर पर इसकी शिक्षा देना  जरूरी करना चाहिए। जिससे सभी में यह समझ विकसित हो कि क्यों पर्यावरण की ओर ध्यान देना जरूरी है।
इसके साथ ही शहर में यातायात व्यवस्था को नियमित किया जाना चाहिए। यदि कोई तय नियमों का उल्लंघन करता है तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जाना चाहिए। इसमें वाहन को जब्त करने का भी प्रावधान होना चाहिए।

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