परमाणु तकनीकी के आपूर्तिकर्ता देशों के प्रतिष्ठित समूह एनएसजी की सदस्यता हासिल करने के लिए भारत ने अपनी जोर-आजमाइश तेज कर दी है। भारत ने औपचारिक तौर पर एनएसजी यानी न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप की सदस्यता हासिल करने के लिए आवेदन कर दिया है।
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भारत ने अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए वर्षों से लंबित बैलिस्टिक मिसाइलों की तकनीकी के हस्तांतरण से जुड़े समझौते पर अपनी सहमति दे दी है।
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प्रधानमंत्री मोदी की आज से शुरू हुई पांच देशों की यात्रा का मुख्य उद्देश्य भी एनएसजी की सदस्यता हासिल करने के लिए समर्थन जुटाने का रहेगा।
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उम्मीद की जा रही हैं कि प्रधानमंत्री अपनी यात्रा के दौरान अमेरिका, स्विटजरलैण्ड और मैक्सिकों में जोरशोर से इस मुद्दे को उठायेंगे।
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इससे पहले विदेश सचिव एस जयशंकर ने बताया कि भारत ने स्वच्छ ऊर्जा को तेजी से प्रोत्साहित करने की नीति लागू की है।
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हम 2030 तक अपनी कुल ऊर्जा क्षमता का 40 प्रतिशत भाग स्वच्छ स्त्रोतों से प्राप्त करेंगे। इस दिशा में परमाणु ऊर्जा अहम हो सकती है।
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भारत के एनएसजी का सदस्य बनने के प्रस्ताव का संयुक्त राष्ट्र सुऱक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में चीन को छोड़कर बाकी सभी ने किया है।
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अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पिछले वर्ष अपने भारत दौरे पर खुलकर इसका समर्थन किया था, वहीं अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने दो हफ्ते पहले ही फिर से इस समर्थन को दोहराया है।
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प्रधानमंत्री मोदी की स्विटजरलैण्ड और मैक्सिकों की यात्रा को इसी दिशा में देखा जा रहा है, मालूम हो कि ये दोनों देस परमाणु अप्रसार समझौते पर हस्ताक्षर किये बगैर किसी देश को एनएसजी में शामिल करने के सख्त खिलाफ हैं।
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बताया जा रहा है कि यदि अमेरिका की तरफ से दूसरे देशों पर दबाव नहीं बनाया जाता है तो भारत के एनएसजी में शामिल होने में काफी बाधाएं आयेंगी।
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माना जा रहा है कि अमेरिका की तरफ से पहल की जा सकती है क्योंकि भारत के एनएसजी में शामिल होने से अमेरिका के लिए भारत के साथ परमाणु ऊर्जा समझौता करना और कंपनियों के लिए यहां निवेश करना आसान हो जाएगा।