भारतीय वायुसेना को और अधिक बल देने के लिए सरकार ने 100 से अधिक लड़ाकू विमान खरीदनें का फैसला लिया है. इसके लिए सरकार ने टेंडर प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. अगर यह डील हो जाती है तो यह दुनिया की सबसे बड़ी डिफेंस डील होगी.
भारत को लगभग 112 फाइटरजेट्स की जरूरत :
चीन और पाकिस्तान से घटते-बढ़ते तनावों के बीच भारतीय वायुसेना को जल्द ही 100 से अधिक लड़ाकू विमान की ताकत मिल सकती है. केंद्र की मोदी सरकार ने वायुसेना के लिए 114 लड़ाकू विमान खरीदने का फैसला किया है. इसके लिए रक्षा मंत्रालय ने टेंडर प्रक्रिया शुरु कर दी है. इसके लिए वायुसेना ने दुनियाभर की बड़ी एयरक्राफ्ट कंपनी से आवेदन मांगे हैं. आईएएफ ने वेबसाइट पर कंपनियों के लिए ‘रिक्वेस्ट फॉर इन्फॉर्मेशन’ (आरएफआई) जारी किए हैं.
बता दें कि बीते कुछ सालों में ये किसी भी देश की ओर से एयरक्राफ्ट्स का सबसे बड़ा ऑर्डर हैं. अगर ये सौदा होता है तो ये दुनिया का सबसे बड़ा रक्षा सौदा भी होगा.
बता दें कि भारत 15 फीसदी लड़ाकू विमान विदेशी कंपनियों से सीधे खरीदेगा और बाकी 85 प्रतिशत ‘मेक इन इंडिया’ के तहत देश में ही तैयार किए जाएंगे. इन्हें बनाने में विदेशी कंपनी के साथ कोई भी भारतीय कंपनी करार कर टेंडर प्रक्रिया में शामिल हो सकती है.
इन लड़ाकू विमानों में 25 प्रतिशत टू-इन सीटर जेट्स होगें यानि ट्रेनिंग के लिए और बाकी 75 प्रतिशत सिंगल-सीटर हैं. इस योजना के तहत भारतीय कंपनियों को विदेश से उच्च दर्जे की रक्षा तकनीक मिलने में आसानी होगी.
गौरतलब है की वायुसेना स्क्वाड्रन की कमी से जूझ रही है. एक स्क्वाड्रन में 16 से 18 विमान होते हैं. सेना के पास 42 स्क्वाड्रन रखने की स्वीकृति है लेकिन इस समय कुल 31 स्क्वाड्रन ही सक्रिय रूप में तैनात हैं. पिछले दिनों रक्षा संबंधी स्थायी समिति ने विमान की कमी पर चिंता जताई थी.
केंद्र की मोदी सरकार ने सितंबर 2016 में फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने का फैसला किया था. यह करीब 59,000 करोड़ का सौदा है. हालांकि इसमें देरी हो रही है. वहीं विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस ने इस डील में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं.