देशभर में आजादी के सत्तर साल पूरे होने का जश्न मनाया जा रहा है. ऐसे में यह जानना भी जरूरी है कि इन सत्तर बरसों में भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में कई उतार-चढ़ाव आये. इनमें वर्ष 1966, 1981 तथा 1991 में कई तरह की परिस्थिति देखने को मिली. हालाँकि, तमाम दिक्कतों से उबरते हुए भारत आर्थिक संकटों से उबरते हुये सबसे पहले विश्व के सबसे तेजी से बढ़ी अर्थव्यवथा का हिस्सा बना. आइये आज़ादी का जश्न मनाने से पहले हम देश की ऐसी ही उपलब्धियों के बारे में भी जानें…
भारतीय अर्थव्यवस्था की कहानी-
- वर्ष 1965 में भारत के भुगतान संतुलन की स्थिति दबाव में थी.
- 1966 के आते-आते हमारा विनिमय भंडार निचले स्तर पर आ गया था.
- मार्च 1966 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के लिए 200 मिलियन डॉलर का प्रबंध किया.
- अंतरराष्ट्रीय मूल्यों के अनुरूप घरेलू मूल्यों को लाने के लिए 36.5 प्रतिशत रुपये का अवमूल्यन किया गया ताकि निर्यात स्पर्द्धा बढ़ सके.
- इससे अमरीकी डॉलर जो 4.75 रुपये के बराबर था वह 7.50 रुपये बढ़ गया और पाउंड स्टर्लिंग की कीमत 13.33 रुपये से बढ़कर 21 रुपये हो गई.
- सरकार ने पंचवर्षीय योजना में अवकाश की घोषणा की.
- दो वर्षों के सूखे, दो युद्ध और रुपये के अवमूल्यन के कारण अर्थव्यवस्था को लड़खड़ाता देख तीन वार्षिक योजनाओं के पक्ष में चौथी पंचवर्षीय योजना का परित्याग कर दिया गया.
- वार्षिक योजनाओं का निर्देश विकास था.
- इनमें निर्यात को बढ़ावा देने और औद्योगिक परिसंपत्तियों के कारगर उपयोग की तलाश पर बल दिया गया.
- अवमूल्यन असफल रहा, उसे लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं हुई.
- अपेक्षित विदेशी सहायता नहीं मिली.
- 1979-80 में नाटकीय तरीके से भुगतान संतुलन की स्थिति में परिवर्तन आया.
- जो मुद्रास्फीति 1978-79 में तीन प्रतिशत थी वह 1979-80 में 22 प्रतिशत हो गई.
- आयातित पेट्रोल और उर्वरकों की ऊंची कीमतों के कारण व्यापार की बाहरी शर्तें खराब हो गईं.
- व्यापार घाटा बढ़ गया.
- सरकार ने अप्रत्याशित रूप में घाटे का वित्तपोषण किया.
- 1981 में लघु अवधि के चक्रीय संतुलन को पूरा करने के लिए भारत ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से पूरक वित्तीय सुविधा (सीएफएफ) के अंतर्गत स्वीकृत 500 मिलियन एसडीआर में से 266 मिलियन एसडीआर प्राप्त किया.
सरकार की रणनीति-
- सरकार ने पेट्रोल तथा पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, खाद्य तेल, अलौह धातु के घरेलू उत्पादन में वृद्धि के कारण भुगतान संतुलन की स्थिति बहाल करने की रणनीति अपनाई.
- निर्णय लिया कि वह अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष की विस्तारित कोष सुविधा के अंतर्गत 1.1 बिलियन एसडीआर का लाभ नहीं उठायेगी.
- उस समय की ऊंची मुद्रास्फीति और भुगतान संतुलन की स्थिति से निपटने में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के 1966 और 1981 के कार्यक्रमों ने मदद दी.
- इससे भारत को काफी मदद मिली.
- भारत ने 1990 के दशक में ढांचागत जटिलताओं और अर्थव्यवस्था में संतुलन के साथ प्रवेश किया
- इसके साथ ही पांच प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि के बावजूद वृहद आर्थिक असंतुलन की घोषणा कर दी.
- 1991 में भुगतान संतुलन संकट में अनेक प्रतिकूल घरेलू बाहरी घटनाओं ने योगदान दिया.
- इस संकट से व्यापक सुधार का कार्यक्रम उभरा.
- इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष कार्यक्रम का समर्थन था और इसे कारगर तरीके से लागू किया गया.
- 27 अगस्त, 1991 को भारत ने अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से 18 महीने के लिए 1656 मिलियन एसडीआर के बराबर राशि की मांग की.
- समायोजन की इस रणनीति से जुलाई 1991 में स्थिरता के कदम उठाये गये.
- इन कदमों में विनिमय दर का 18.7 प्रतिशत अवमूल्यन और ब्याज दरों में वृद्धि सहित मौद्रिक नीति को कठोर बनाना शामिल है.
- इस बीच अनेक प्रकार से 1991/92 के आईएमएफ कार्यक्रम ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत के एकीकरण को सुनिश्चित किया.
वैश्विक वित्तीय संकट-
- वर्ष 2007 में आए वैश्विक वित्तीय संकट ने 2008 में विकराल रूप ले लिया.
- अनेक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान धराशायी हो गए.
- भारतीय स्टॉक बाजार में मूल्य की दृष्टि से 60 प्रतिशत का नुकसान हुआ.
- विदेशी पोर्टफोलियों निवेश में कमी आई.
- उस समय डॉलर के 50 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंचने के साथ रुपये के मूल्य में 20 प्रतिशत की कमी आई.
- यह धारणा गलत साबित हुई कि भारतीय अर्थव्यवस्था पश्चिम से कोई जुड़ाव नहीं रखती.
- 7 दिसम्बर 2008 और 2 जनवरी 2009 दो पैकेजों के माध्यम से वित्तीय गति प्रदान की गई.
- भारतीय रिजर्व बैंक ने मौद्रिक सहजता और तरलता बढ़ाने के अनेक कदम उठाये.
- वैश्विक संकट से विश्व में सबसे पहले उभरने वाली अर्थव्यवस्थाओं में भारतीय अर्थव्यवस्था थी.
- वित्तीय और मौद्रिक नीतियों से अर्थव्यवस्था को गति दी गई और विकास दर संकट पूर्व स्तर पर आ गई.
- इससे आवक पूंजी बढ़ने लगी और वित्तीय बाजारों की सेहत अच्छी होने लगी.
भारतीय अर्थव्यवस्था की 70 वर्ष की कहानी यह बताती है कि भारत आईएमएफ कार्यक्रम वाले देश से आगे बढ़कर विश्व की सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था वाला देश बनने की राह पर अग्रसर है.