आर्थिक मोर्चे पर केंद्र की मोदी सरकार कुछ हद तक सफल होती दिख रही है। बीते साल चौथी तिमाही में विकास दर 8 फीसदी के करीब पहुँच गई है जो कि एक अच्छा संकेत माना जा रहा है। वहीँ सरकारी खजाने में भी नुकसान अनुमान से कम होना भी राहत की बात है।
इस बीच आठ प्रमुख उद्योगों की विकास दर साढ़े 8 फीसदी दर्ज की गई है। मैन्युफैक्चरिंग के साथ कृषि में भी बेहतर होती स्थिति के बाद चौथी तिमाही में विकास दर 7.9 फीसदी बताई गई है। इस दौरान खेती बाड़ी की विकास दर 2.3 फीसदी रहने का अनुमान बताया गया जबकि मैन्युफैक्चरिंग की विकास दर 9.3 फीसदी रही। अन्य सेक्टरों में भी विकास दरों में कोई विशेष गिरावट नहीं आई है।
चारो तिमाही के प्रदर्शन के आधार पर सालाना विकास दर 7.6 रही जो कि पिछले साल के विकास दर 7.2 से ज्यादा है। ये घाटा संशोधित अनुमान से भी कम हो गया।
- 2015-16 के दौरान संशोधित अनुमान 5 लाख 35 हजार करोड़ रुपये से कुछ अधिक का था, जबकि वास्तविक में घाटा 5 लाख 32 हजार करोड़ रुपये के करीब ही रहा।
- नुकसान पर अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियां पैनी नजर रखती हैं और उतार-चढ़ाव पर ध्यान देती रहती हैं।
- टैक्स के साथ-साथ दूसरे साधनों से कमाई कम होने के बावजूद घाटा घटा है, यानी सरकार अपने खर्चों पर लगाम लगाने में कामयाब रही है।
- रेटिंग के आधार पर विदेशी निवेशक यहां पैसा लगाते हैं और इस समय भारत की रेटिंग ‘बीबीबी माइनस’ है जो निवेश के लिहाज से आखिरी रेटिंग मानी जाती है। ये एक चिंता का विषय माना जा रहा है।
पूरे औद्योगिक उत्पादन में 38 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले 8 कोर सेक्टर से भी अच्छी खबर है। अप्रैल के महीने में ये कोर सेक्टर के विकास दर साढ़े आठ फीसदी रही जबकि पिछले साल अप्रैल में ये निगेटिव 0.2 फीसदी थी। कोर सेक्टर की बेहतर प्रदर्शन में बिजली, सीमेंट, स्टील और रिफाइनरी की अहम भूमिका रही।
बता दें कि केंद्र सरकार देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की बात कर रही है और वित्तमंत्री जेटली भी विकास दर को लेकर खासे गम्भीर हैं। हालांकि देश के बाहर से निवेशकों का ना आना अभी भी चिंता का सबब बना हुआ है और कई मुख्य प्रोजेक्ट इन निवेशकों की राह देख रहे हैं। सरकार का दावा है कि आने वाले समय में विदेशी निवेशक भारत में निवेश करेंगे और सरकार उन्हें लुभाने का कोई मौका नहीं गंवाना चाहती है।