आज वर्ल्ड टाइगर डे है। भारत में बाघों की संंख्या में लगातार कमी होती जा रही है जो कि एक ऐसे देश के लिढ चिन्ता का विषय है जहां का राष्ट्रीय पशू ही बाघ को माना गया है। अगर बाघों की कम होती संंख्या को आकड़ो के आइने में देखा जाये तो पिछले कुछ सालों से भारत में बाघों की संख्या लगातार कम होती जा रही है। बेहद तेजी से भारत में विलुप्त होने की कगार पर खड़े बाघों के बचाव के लिए समय समय पर सरकारों द्वारा कदम तो उठायें जाते रहे लेकिन इसके बावजूद भी बाघों का शिकार करने वाले शिकारी इन्हें खत्म करने में कामयाब होते रहे है।
अगर 2016 में मरने वाले बाघों की संख्या पर ही गौर किया जाये तो जो आकड़े सामने आये है वो बेहद खराब है। इस वर्ष अब तक 70 से ज्यादा बाघ मर चुके है जिनके तकरीबन 21 से ज्यादा बाघों को तस्करों द्वारा मारा गया है। इस लिहाज से इस वर्ष हर महीनें तकरीबन 10 बाघों की मौत हुई है।
आज पुरे विश्व में जंगल के राजा टाइगर को बचाने के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. आज विश्व के 80 फ़ीसदी टाइगर भारत में पाए जाते हैं। आज से सौ साल पहले जहां इस बेहतरीन शिकारी की संख्या लाखों में थी, लेकिन आज वह घटकर महज तीन हजार के आस-पास रह गई हैं. इन बचे हुए बाघों में से भी 80 फ़ीसदी भारत में ही है।
अगर उत्तर प्रदेश में बाघों की संंख्या पर बात की जाये तो उत्तर प्रदेश टाइगर रिजर्व से खुशखबरी है। पिछले छ सालों में यूपी के टाइगर रिज़र्व में 19 नए बाघ बढ़े हैं। 2010 के बाघों की गणना में प्रदेश में 117 बाघ थे लेकिन 2016 में टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या 136 हो गई।