देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी JNU में चुनाव संपन्न हो गए हैं. इस चुनाव के परिणाम पर सभी की नजरें टिकी हुई थीं. अबकी बार यूनिवर्सिटी के तमाम लेफ्ट छात्र संगठन एक होकर चुनाव में उतरे थे. ये महज छात्रसंघ का चुनाव नहीं दो विचारधाराओं का टकराव था. लेफ्ट का वर्चस्व JNU में हमेशा से रहा है. 8600 वैध मतदाताओं वाले JNU में फिर से लेफ्ट ने झंडा फहराया है.
लेफ्ट ने किया क्लीन स्वीप:
- पहली बार भाकपा-माले की छात्र शाखा आइसा ने माकपा की एसएफआई के साथ गठबंधन किया.
- चारों प्रमुख पदों पर लेफ्ट ने कब्ज़ा कर लिया.
- पिछले साल चुनावों में ABVP को एक सीट मिली थी.
- लेकिन अबकी बार वो सीट भी हाथ से चली गई.
- कुल 31 में से 30 सीटों पर लेफ्ट ने कब्ज़ा जमकर अपने वर्चस्व को दिखाया.
- वहीँ ABVP को एक मात्र सीट संस्कृत विभाग में काउंसलर की मिली.
JNU में थी दो विचारधाराओं की लड़ाई:
- इस चुनाव में कन्हैया कुमार के छात्र संगठन ने चुनाव नहीं लड़ा था.
- ये चुनाव 9 फ़रवरी को कथित देश विरोधी नारों के बाद चर्चा का विषय बना हुआ था.
- कन्हैया कुमार और उमर खालिद को देशद्रोही नारे लगाने के कारण जेल भी जाना पड़ा था.
- ABVP ने उस घटना के बाद JNU में और बाहर लेफ्ट के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था.
- लेकिन ABVP को अभी भी JNU में पैर ज़माने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी.
- क्योंकि JNU के इस चुनाव में विचारों की इस लड़ाई में लेफ्ट के सभी छात्र संगठनों ने एकजुट चुनाव लड़ा है.
- ABVP को उनके राष्ट्रवादी छवि और RSS की इकाई होने का खामियाजा भी भुगतना पड़ा है.
- JNU हमेशा से वाम विचारों के गढ़ के रूप में जाना जाता है.
- कन्हैया कुमार के प्रकरण के बाद JNU में बीजेपी के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन भी हुआ था.
- हालाँकि ABVP ने दिल्ली युनिवर्सिटी में अपना दबदबा बरक़रार रखा.
- DU में लेफ्ट ने चुनाव नहीं लड़ा था.
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