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आईये सरकारी नौकरी को लेकर इन गलतफहमियों को मिटाया जाए!

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वैसे तो भारत में सभी लोग सरकारी नौकरी की चाह रखते हैं परंतु सरकारी दफ्तरों की बुराईयाँ भी वही लोग करते हैं. भारत में ज़्यादातर लोग यह मानते हैं की सरकारी नौकरी से ज्यादा आसान नौकरी और कोई नहीं है क्या वाकई ऐसा है या यह केवल एक मिथ्या है.

जाने कौन सी हैं यह गलतफहमियाँ :

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देश में ज़्यादातर लोगों का यह मानना है कि कोई भी सरकारी नौकरी 6-7 घंटे से ज्यादा की नहीं होती है. यही नहीं कुछ लोग यह भी मानते हैं कि सरकारी नौकरी में आसानी से छुट्टियाँ उपलब्ध होती हैं. परंतु यह सच नहीं है क्योकि सरकारी कर्मचारियों को अपने काम को बहुत व्यवस्थित रखना होता है. यही नहीं कई बड़े अवसरों को काम के चलते सुबह 8 बजे से पहले दफ्तर पहुँचना होता है और कई बार उन्हें देर रात तक भी अपना काम पूरा करना होता है.

जी हाँ बहुत से लोग यह भी मानते हैं कि कोई भी सरकारी मीटिंग निर्धारित समय पर शुरू नहीं होती है ना ही मीटिंग करने वाले अधिकारी इसके लिए समय से पहुँचते हैं जबकि वास्तविक्ता इससे बिलकुल विपरीत है. हाल ही में किये गये एक सर्वे के अनुसार यह पाया गया कि मीटिंग भी समय पर हुई व मीटिंग करने वाले भी समय पर पहुंचे अगर विशवास नहीं आता तो इस ग्राफ को देखें.

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जैसा की माना जाता है कि सरकारी नौकरी में आपको सिर्फ सप्ताह के 5-6 दिन काम करना होता है. सप्ताहांत में कभी किसी कर्मचारी को जाने की जरूरत नहीं होती है परंतु यह गलत सोच है आज के समय में सरकारी नौकरी करने वाले लोग भी सप्ताहांत में काम करते हैं.

पिछले 6 महीने में सप्ताहांत में हुई 13 मीटिंग :

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ऐसा माना जाता है कि सरकारी काम बहुत धीमी गति से होता है परंतु जैसा की समय में परिवर्तन आया है सरकारी कामों ने भी गति पकड़ ली है. आज कोई भी सरकारी दफ्तर तकनीक में पीछे नहीं है यहाँ तक की हर दफ्तर तकनीक से लैस हो चुका है जिसके बाद धीमी गति का तो सवाल ही नहीं उठता है. इसके अलावा सरकारी कामों में कर्मचारियों को समयसीमा भी दी जाती है.

ऐसा माना जाता है कि सरकारी दफ्तरों में अपनी राय या मत रखने के लिए आपको अनुभव की जरूरत होती है. बिना अनुभव के आप किसी भी मामले में अपनी राय रखने में असमर्थ होते हैं परंतु इसके विपरीत सरकारी दफ्तरों में नए लोगों से उनके विचार पूछे जाते हैं और कई बार उनके विचार संस्थाओं को लाभ भी पहुंचाते हैं.

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लोगों को एक ऐसी मिथ्या भी है जो सरकारी दस्तावेजों पर सवाल उठाती है. जैसा कि माना जाता है सरकारी दस्तावेज़ कभी भी पूरी जानकारी नहीं देते हैं परंतु यह आज के समय में सच नही है. जैसा कि सब जानते हैं आज के समय में सरकारी दफ्तर भी तकनीकीकरण में पीछे नहीं हैं. जिसके बाद जानकारियों को संभालना आसान हो जाता है और सभी जानकारियाँ आसानी से ढूंढी जा सकती हैं.

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