मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश की हर विधानसभा में ओपिनियन पोल किया गया। तमाम वोटर्स से राय ली गयी. चुनाव, सियासत और सरकार से जुड़े सवाल पूछे, जिस पर प्रदेश की जनता ने अपनी राय दी.51 जिलों के 230 विधानसभा में हुए इस सर्वे में आगामी विधानसभा चुनाव की तस्वीर साफ हो गई है। वोटर्स से पूछा गया कि, इस बार एमपी में किसकी सरकार होनी चाहिए और जो जवाब आएं वो चौंकाने वाले थे।
दलितों से होगा बीजेपी को नुकसान:
एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और बीते दिनों हुए भारत बंद का असर मध्यप्रदेश के विधान सभा चुनावों में साफ़ देखने को मिलगा. भाजपा को दलितों का समर्थन मिलना काफी मुश्किल है. पोल से यह साफ़ है कि दलितों में भाजपा के प्रति खासी नाराजगी है. यूपी सरकार में जिस तरह दलित सांसदों कि अनदेखी की खबरे आये है, उससे मध्य प्रदेश भी अछूता नहीं रहेगा . बता दे कि मध्य प्रदेश में एससी की 35 सीटें आरक्षित है और एसटी के लिए 47 सीटों की व्यवस्था है. जिन पर भाजपा प्रत्याशी से ज्यादा अन्य दलों को फायदा होने की सम्भावना है. ओपिनियन पोल के आधार पर भाजपा को इस बार 153 सीटें मिलने की सम्भावना है. जो की 2013 में में मिली सीटों से काफी कम है. बता दें कि भाजपा को पिछलें चुनावों में 165 सीटें मिली थी.
कांग्रेस नही बसपा को मिल सकता है फ़ायदा:
हालाँकि प्रदेश में भाजपा के बाद सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है पर आगामी चुनावों में मतदाताओं का रुझान भाजपा से इतर कांग्रेस पर ना होकर बसपा पर होगा. नाराज दलित बसपा कि तरफ हो सकते है. यानी भले ही प्रदेश में बसपा सभी सीटों पर चुनाव ना लड़े पर जीतने में भी अपने उम्मीदवार उतारेगी, उसमें लगभग अच्छी खासी सीट पर कब्जा जमा सकती है. हाल में हुए मध्य प्रदेश निकाय चुनावों से यह पहले ही स्पष्ट हो गया था कि नाराज मतदाता बसपा को दूसरे विकल्प के तौर पर देख रहे हैं. इस बार बसपा को प्रदेश में 12 सीटें मिलने कि उम्मीद है, जो कि पिछले दो बार के चुनावों कि तुलना में अधिक है. 2008 में बसपा को 7 सीटें मिली थी और बता दें कि 2013 में 4 सीटों पर बसपा उम्मीदवार ने जीत दर्ज करवाई थी.
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सपा की भी बढ़ोतरी:
सपा पिछले मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में 1 सीट पर ही जीत पायी थी. पर इस बार सपा की सीटों में कुछ बढ़ोतरी की सम्भावना है. बता दें कि 2013 के विधानसभा चुनाव में सपा ने एक भी सीट हासिल नही की थी. हालाँकि 2008 के चुनाव में समाजवादी पार्टी को 1 सीट मिली थी. पर इस बार सपा मध्य प्रदेश में अपने खाली पड़े खाते को खोलेगी. ना केवल सपा का उम्मीदवार जीतेगा बल्कि 2008 की तुलना में इस बार उसको अधिक वोट मिलने की भी आशंका है. सपा को इस बार एमपी में 3 सीटें मिलने की उम्मीद है.
कांग्रेस की स्थिति और ढीली:
राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस भले ही जोरो शोरों से विधानसभा चुनावों में अधिक से अधिक सीटों पर काबिज होना चाहती है पर इस बार उनको पिछली बार से भी कम सीट मिलने के आसार है. भाजपा से नाखुश मतदाताओं के लिए बसपा और सपा विकल्प के तौर पर रहेंगे इसलिए कांग्रेस को इन मतदाताओं से ज्यादा फायदा मिलने कि उम्मीद कम है. गौरतलब है कि कांग्रेस की सीटें मध्य प्रदेश में लगातार कम हो रही है. जहाँ 2008 के चुनाव के दौरान कांग्रेस को 71 सीटें मिली थी वहीं 2013 के चुनावों में यह आकंडा गिर कर 58 पर आ गया था. इस बार के चुनावों में कांग्रेस को कुछ और सीटों के नुकसान हो सकता हैं. पोल के अनुसार तो कांग्रेस को इस बार एमपी में 51 सीटें ही मिल पाने की सम्भावना है. जिससे साफ़ है कि कांग्रेस का ग्राफ एमपी में गिरता ही जा रहा है.
निर्दलीय और अन्य दल भी काटेंगे वोट:
पिछले दो बार से मध्य प्रदेश विधान सभा चुनावों में निर्दलीय केवल 3 सीटें ही जीत सके हैं. इस बार निर्दलीय उम्मीदवार और अन्य लोकल पार्टी भी बड़ी पार्टियों के वोट काट सकते है. निर्दलीय उम्मीदवार जहाँ 4 सीटें जीतेंगे. वही एक अन्य दल 7 सीटों पर जीत दर्ज करवाएगा. इससे भी भाजपा कांग्रेस को नुकसान होगा.
2018 में एमपी में कुल विधानसभा सीटे क्षेणी वार:
पार्टी 2018
भाजपा 153
कांग्रेस 51
बसपा 12
समाजवादी पार्टी 03
अन्य 11