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सुखों की रात्रि महाशिवरात्रि : 12 साल बाद हुआ ऐसा संयोग, बाबा अपने भक्तों पर करेगे विशेष कृपा

इस बार शिवरात्रि का पर्व बाबा के भक्तों के लिए बहुत विशेष है, सोमवार को होने की वजह से इस शिवरात्रि महत्व अधिक है और करीब 12 साल बाद यह संयोग हुआ है। इसलिए आज का दिन अपने आप में श्रेष्ठ है। एक संयोग और भी हैं कई सालों बाद सिंहस्थ योग निर्मित हुआ है। जिससे इस महाशिवरात्रि के महत्व को कई गुना बढ़ा दिया है। इस दौरान महाशिवरात्रि की पूजा करने से भोले प्रसन्न होंगे, और  भक्तों पर विशेष कृपा करेंगे।

भगवान शिव की भूमि हरिद्वार के गंगा घाटों में भक्तों का जमावड़ा लगा हुआ। भोर से पहले ही भक्त घाटों पर पहुँच गए। राज्य के लोगों के साथ ही दूसरे प्रदेशों के लोगों ने गंगा स्नान कर भगवान शिव की स्तुति की। हरिद्वार धरती का कण-कण भगवान शंकर के चिन्हों से भरा पड़ा है। कनखल के दक्षेश्वर मंदिर में साक्षात शिव विराजमान हैं।

पार्वती से विवाह के पूर्व कनखल नगरी में ही शिव का विवाह राजा दक्ष की पुत्री सती से हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में पूजा से दो महारात्रियों का फल भक्तों को मिलता है। देवभूमि हरिद्वार के सभी पौराणिक मंदिर भगवान शिव के अध्यात्म से जुड़े हुए हैं। सभी मंदिरों में लाखों श्रद्घालु भगवान शंकर का अभिषेक करने को तैयार हैं। भगवान शिव इस पुण्य भूमि को अपने कृपा से आच्छादित करने के लिए शिवालयों में साक्षात् विराजमान हैं। शिव जटाओं से निकली पवित्र गंगा का जल लेकर लाखों शिव भक्त अपने गांव-शहरों के शिवालयों में अभिषेक करेंगे। देश के सभी शिवालयों सुबह से ही भगवान आशुतोष के पूजन-अर्चन के लिए बाबा के भक्तों की लम्बी कतार लगी हुई है।

पुराणों के अनुसार, अध्यात्म में तीन महारात्रियों का वर्णन किया गया है। कालरात्रि, महारात्रि और महोरात्रि। दीपावली और होली की रात्रि को कालरात्रि कहा गया है। नवरात्र की रात्रि को महोरात्रि कहा जाता है। और शिवरात्रि की रात्रि महारात्रि कही गई है। इन तीनों रात्रियों का विशेष महत्व है। पूजा, अनुष्ठान और साधना की महारात्रि आज पड़ रही है। इस रात्रि में भगवान शिव चारों पहर पूजे जाएंगे। ऐसा मानना है कि शिवरात्रि के दिन भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। उनके मिलन की रात्रि महारात्रि बन गई। पौराणिक ग्रथों में अनेक प्रकार की शिव पूजा का विधान है। रात के चारों पहर शिव पूजा के लिए अति विशिष्ठ हैं। चार पहर की यह पूजा सायं सूर्यास्त के बाद प्रारंभ होती है, और अगले दिन सवेरे सूर्योदय तक अनिष्ठान चलता है। इन चार पहरों में अर्द्घ रात्रि में पड़ने वाले मध्य पहर और सवेरे के प्रदोष पहर का अति विशेष महत्व है। विधिपूर्वक भगवान शिव का पूजन करने से भोलेनाथ अवश्य प्रसन्न होगें और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करेंगे।

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