देश की सीमा पर जवान हंसते-हंसते अपने जीवन का बलिदान देने में भी पीछे नहीं हटते है। वह अपने परिवार, अपने बीवी बच्चे, किसी की भी भविष्य की परवाह किए बगैर देश के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर देते हैं। देश के लिए अपनी शहादत देने से पहले वह यह सोचता है कि मेरे परिवार के लिए सरकार जरूर कुछ करेगी। पर जरा सोचिए कि उनके परिवार को 20 सालों से कोई राहत या कोई सरकारी नुमाइंदा उनके घर नहीं पहुंचा हो तो उस परिवार का दर्द समझा जा सकता है। ऐसा ही एक मामला जम्मू-कश्मीर में शहीद परिवार का है, जहां शहीद का परिवार जीविका चलाने के लिए मजदूरी करने को विवश है।

डीजीपी को ट्वीट कर पुत्र ने मांगी मदद

तनवीर अहमद भट्ट ने जम्मू कश्मीर के डीजीपी और पुलिस को ट्वीट के माध्यम से अवगत कराया है कि पिछले 20 सालों से बदहाली की जीवन जीने को मजबूर हैं। हमारा परिवार को भारत सरकार ने सिर्फ आंसू बहाने के सिवा कुछ नहीं दिया है। आगे लिखा है कि 1998 से अब तक कोई भी व्यक्ति उनसे मिलने तक नहीं आया है।

https://twitter.com/Tanveer91118924/status/1009016123164160001

आईइडी ब्लास्ट में शहीद हुए थे पिता

जब इस संबंध में तनवीर से बात की गई तो बताया कि 20 वर्ष पहले 1998 में ही उनके सर से पिता का साया उठ गया था। उनके पिता शहीद अली मोहम्मद भट्ट जम्मू कश्मीर पुलिस के एसओजी में तैनात थे। तत्कालीन समय में उनकी ड्यूटी कैंप इंचार्ज के रूप में थी। आगे बताया कि पुलिस वाहन में सवार होकर ड्यूटी पर जा रहे थे। इसी दौरान आतंकियों द्वारा आईडी ब्लास्ट कर दिया गया जिससे गाड़ी चपेट में आ गई। इस हादसे के बाद उनके पिता शहीद हो गए।

पुत्र भी बनना चाहता है पुलिस आॅफिसर

बकौल तनवीर का कहना है कि वह भी अपने पिता की तरह पुलिस में भर्ती होकर देश के लिए कार्य करना चाहते है। इसके लिए बकायदा अपने ट्वीटर पेज के प्रोफाईल पर लिखा है कि ”Son of a Patriotic Person Martyred Ali Mohammad Bhat, J&KPolice . Social worker, Want to Become a Police Officer.”

इससे उसकी मंशा जाहिर होती है कि वह अपने पिता से कितना प्रेम करता है और उनकी तरह ही बनना चाहता है। तनवीर का कहना है कि सरकार ने उसके परिवार को नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन आज तक उसके परिवार में कोई भी नौकरी नहीं मिली। जिससे उसके परिवार को तंगहाली का जीवन गुजारना पड़ रहा है।

भाई भी छोड़ चुका है पढ़ाई

तनवीर का कहना है कि पिता के शहीद होने के बाद परिवार को मुश्किलों के दौर से गुजरना पड़ा। बताया कि परिवार में एक भाई नईम अहमद भट्ट (16) व एक बहन कुलसुमा (25) हैं। परिवार के तंगहाली के चलते भाई ने मैट्रिक की परीक्षा किसी तरह से पास किया और बहन ने भी मैट्रिक की ही पढ़ाई पूरी की, लेकिन परिस्थितियां खराब होने की वजह से हम तीनों भाई-बहन को पढ़ाई छोड़नी पड़ी। परिवार का भरण पोषण के लिए हम दोनों भाई मजदूरी का काम करते हैं।

6 साल से बीमार है मां

शहीद के पुत्र तनवीर अहमद बख्स का कहना है कि पिता के शहीद होने के बाद मां सिमिमा बेगम ने किसी तरह से हमें पाला पोषा, लेकिन पिछले 6 सालों से मां की तबीयत ज्यादा खराब चल रही है। बताया कि मां की तबीयत पिता के जाने के बाद से ही खराब होने लगी थी जिसको देखते हुए 2011 में मुझे शादी करनी पड़ी। जिसके बाद मेरा पुत्र रहत (7) की भी जिम्मेदारी मेरे ऊपर आ गई।

मजदूरी करने को विवश है परिवार

बताया कि कोई भी सरकारी मदद नहीं मिलने के कारण परिवार मजदूरी करने को विवश है। परिवार के पालन-पोषण के लिए पढ़ाई छोड़कर भाई और मुझे मजदूरी करना पड़ता है। इस बावत उसने सरकार का ध्यान इस तरफ आकृष्ट कराया है।

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