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यूं तो हम सभी मदर टेरेसा के बारे में बचपन से सुनते आ रहे हैं. मगर आज हम आपको बताने जा रहे हैं वे खास बातें जिसकी वजह से साधारण सी दिखने वाली महिला मदर टेरेसा के नाम से जाने जाने लगीं.
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इन बातों ने खास बनाया मदर को-
- मदर टेरेसा बचपन से ही काफी धार्मिक विचारों वाली थीं.
- यही वजह था कि मात्र 16 साल की उम्र में मदर टेरेसा नन बन गईं थीं.
- मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी.
- इससे पहले मदर टेरेसा 1929 में कलकत्ता शिफ्ट हो गईं थीं.
- कलकत्ता में रहकर यहां मदर टेरेसा ने 15 तक टीचिंग का काम किया.
- मदर टेरेसा ने अपनी जिंदगी के 67 साल भारत में लोगों की सेवा में बिता दिए.
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जब पूरी दुनिया की मां कहलाईं मदर टेरेसा-
- उनकी इस सेवा के बदले उन्हें 1979 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया.
- जब वह इस पुरस्कार को लेकर वापस लौटीं तो उस समय के बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने उनसे कहा ‘अभी तक आप भारत की मां थीं. अब पूरी दुनिया की मां बन गई हैं.’
- इसके बाद मदर टेरेसा को 1980 में भारत सरकार ने देश के सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न से नवाजा गया.
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सादगी से जीना पसंद करती थीं मदर-
- मदर टेरेसा बड़ा ही सादा जीवन व्यतीत करती थीं और हमेशा ही साधारण नजर आती थीं.
- कहा यह भी जाता है कि मदर टेरेसा के पास सिर्फ 3 साड़ियां थीं.
- पूरी जिंदगी उन्होंने इसी से काम चलाया.
- मदर टेरेसा का निधन 5 सितंबर 1997 को कोलकाता में हुआ था.
- भारत सरकार ने मरणोपरांत मदर टेरेसा को 4 सितंबर 2016 को संत की उपाधि दे दी.
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धर्मांतरण कराने का लगाया गया आरोप-
- हालांकि, मदर टेरेसा के आलोचकों का कहना है कि उन्होंने मानव सेवा सिर्फ और सिर्फ धर्मांतरण के उद्देश्य से की थी.
- उनके सेवाभाव के पीछे धर्मांतरण का रहस्य छिपा था.
- कहा तो यह भी जाता है कि उन्हें ईसाई धर्म के प्रचार में अभूतपूर्व भूमिका निभाई और इसी उद्देश्य से वे भारत आयीं भी थीं.
- धर्मांतरण के आरोपों के चलते क्रिस्टोफ़र हिचेन्स, माइकल परेंटी और अरूप चटर्जी जैसे लोगों ने उनपर धर्मांतरण को लेकर हमला भी किया.
- बता दें कि कोलकाता में स्थापित उनकी संस्था ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ आज भी दुनियाभर में सेवाकार्य कर रही है.
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