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मुंशी प्रेमचंद: धर्म सेवा का नाम है, लूट और कत्ल का नहीं!

munshi premchand

“कोई वाद जब विवाद का रूप धारण कर लेता है, तो वह अपने लक्ष्य से दूर हो जाता है”। यह शब्द भारत के उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने कहे थे। उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद(munshi premchand) का जन्म 31 जुलाई को 1880 को वाराणसी के लमही गाँव में हुआ था। मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। मुंशी जी एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, जिम्मेदार संपादक और सामाजिक मुद्दों के संवेदनशील रचनाकार थे। मुंशी प्रेमचंद ने बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में तकनीकी सुविधाएँ न होने के बावजूद हिंदी भाषा के लिए जितना काम किया है, उतना किसी अन्य लेखक ने नहीं किया है।

137वीं जयंती पर मुंशी प्रेमचंद के कुछ अनमोल वचन(munshi premchand):

अधिकार में स्वयं एक आनंद है(munshi premchand):

आशा उत्साह की जननी है(munshi premchand):

क्रांति नई सभ्यता को जन्म देती है(munshi premchand):

वीरता भी संक्रामक होती है(munshi premchand):

संतान सबसे कठिन परीक्षा(munshi premchand):

मनुष्य बराबर वालों की हंसी नहीं सह सकता है(munshi premchand):

विचार और व्यवहार में सामंजस्य न होना ही धूर्तता है(munshi premchand):

धर्म सेवा का नाम, लूट और क़त्ल का नहीं(munshi premchand):

न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं(munshi premchand):

ये भी पढ़ें: कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्‍द की 136वीं जयंती पर गूगल ने बनाया डूडल

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