अदम्य साहस और युद्धकौशल के लिए मशहूर, भारतीय सेना के इतिहास में स्वर्णिम दस्तखत करने वाले सबसे ज्यादा चर्चित और कुशल सैनिक कमांडर सैम मानेकशॉ की आज 9वीं पुण्यतिथि है। इनके नेतृत्व में भारत ने सन् 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध में विजय प्राप्त किया था, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ था।
जीत के ज़ज्बे का नायक सैम मानेकशॉ :
- फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने भारत के लिए कई महत्त्वपूर्ण जंगों में निर्णायक भूमिका निभाई थी।
- 17वीं इंफेंट्री डिवीजन में तैनात सैम मानेकशॉ ने पहली बार द्वितीय विश्वयुद्ध के जंग में हिस्सा लिया।
- इसके बाद उन्होंने 1962 में हुए भारत चीन युद्ध में विजय प्राप्त किया था।
- उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि मानी जाती है- 1971 में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ जीत, जिसका सेहरा उनके सिर ही बाँधा जाता है।
- इस युद्द के बाद से ‘सैम बहादुर‘ के नाम से मशहूर फ़ील्ड मार्शल मानेकशॉ राष्ट्रीय महानायक के रूप में देखे जाते हैं।
राष्ट्रीय महानायक का जीवन परिचय :
- सैम मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को अमृतसर में एक पारसी परिवार में हुआ था।
- इनका पूरा नाम ‘सैम होर्मूसजी फ़्रेमजी जमशेदजी मानेकशॉ’ है।
- मानेकशॉ ने प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में की और बाद में वे नैनीताल के शेरवुड कॉलेज में दाखिल हो गए।
- वे देहरादून के इंडियन मिलिट्री एकेडमी के पहले बैच के लिए चुने गए 40 छात्रों में से एक थे।
- वहां से वे कमीशन प्राप्ति के बाद भारतीय सेना में भर्ती हुए।
- सैम मानेकशॉ ने 7 जून 1969 को जनरल कुमारमंगलम के बाद भारत के 8वें सेना प्रमुख का पद ग्रहण किया
- सैम मानेकशॉ भारत के पहले फ़ील्ड मार्शल थे।
- उन्हें 1 जनवरी 1973 को फ़ील्ड मार्शल का सम्मान प्रदान किया गया।
- उन्होंने अपने 40 साल के सैनिक जीवन को जिस तरह से निभाया, उसे जीत के ज़ज्बे का नायक कहें या जिंदादिल इंसान, हर रूप से खरे उतरते हैं।
- नागालैंड समस्या को सुलझाने के अविस्मरणीय योगदान के लिए 1968 में पद्म भूषण से नवाजा गया।
- उनके देशप्रेम व देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें 1972 में पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया।
- 94 वर्ष की आयु में देश के राष्ट्रीय महानायक सैम मानेकशॉ ने तमिलनाडु के सैन्य अस्पताल में आखिरी सांस ली।
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