भारत में हर साल 13 अगस्त को अंगदान दिवस मनाया जाता है. मगर क्या आप जानते हैं कि अंगदान को लेकर व्याप्त भ्रम के कारण लोग इस पवित्र कार्य में बढ़-चढ़कर भाग नहीं लेते हैं. नतीजतन, बड़ी संख्या में लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है.
अंगदान दिवस आज-
- विश्व में वर्ष 1954 में पहली बार अंगदान करने का मामला सामने आया था.
- उस समय एक आदमी ने अपने जुड़वाँ को किडनी दान की थी.
- वह ऑपरेशन भी सफल रहा था.
- उस प्रकरण के बाद से अंगदान से लोगों के जीवन को बचाने की सोच को मजबूती मिली थी.
- साथ ही, समय के साथ ही इस दिशा में कई सकारात्मक कदम भी उठाये गये थे.
- चिकित्सा विज्ञान में अंगदान के जरिये लोगों के जीवन को बचाना एक महत्वपूर्ण कार्य माना गया है.
- इस दिशा में निरंतर शोध आदि होते रहते हैं.
- वर्ष 1994 में भारत के संविधान में मानव अंगों के प्रत्यर्पण के संदर्भ में (THO) एक्ट को जोड़ा गया था.
- इसके तहत दिमागी रूप से मृत मानव के शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रत्यर्पण करके दूसरे मरीज की जिन्दगी को बचाने का रास्ता खुल गया था.
- इसे भारतीय चिकित्सा विज्ञान में मील का पत्थर सरीख फैसला मन जाता है.
- इसी क्रम में हर साल 13 अगस्त को अंगदान दिवस मनाकर इस बारे में लोगों को जागरूक किया जाता है.
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एक शख्स बचा सकता है आठ लोगों की जिन्दगी-
- एक स्वास्थ्य रिपोर्ट के मुताबिक, हर वर्ष पांच लाख भारतीयों की मौत इस कारण हो जाती है.
- अंगदान करने वाला एक शख्स अपनी मर्जी देकर अपने शरीर के सुचारू रूप से कार्य करने वाले आठ अंगों के जरिये आठ लोगों की जिन्दगी को बचा सकता है.
- बता दें कि अंगदान के लिए प्रत्यारोपण का प्रयोग किडनी, लीवर, बॉन मेरो, हृदय, फेंफड़े, कॉर्निया, पैनक्रियाज, छोटी आंत, त्वचा के उतकों आदि पर किया जाता है.
- भारत में अंगदान को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां हैं.
- कहा जाता है कि इस जन्म में अंगदान कर देने पर अगले जन्म में शरीर का वही अंग गायब हो जाता है.
- इसके मतलब है कि इंसान दिव्यांग पैदा होता है.
- साथ ही, अंगदान करने के लिए परिवार के लोगों का साथ नहीं मिल पाने के कारण भी बहुत से लोग अंगदान नहीं कर पाते हैं.
- ऐसे में डॉक्टर्स की तमाम कोशिशें बेकार चली जाती हैं.
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