कपिल काजल
बेंगलुरु, कर्नाटक: दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे बड़ा और पुराना औद्योगिक क्षेत्र पीन्या शहर के प्रदूषण की बड़ी वजह बन कर उभर रहा है। कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (केएसपीसीबी) के अनुसार, यहां स्थित 2,101 इकाईयों में से 334 इकाइयों को लाल श्रेणी में रखी गयी है। इसका मतलब यह है कि इनसे प्रदूषण सबसे ज्यादा होता है। करीब 473 इकाई नारंगी श्रेणी के रखी गयी है। यहां स्प्रे पेंट करने की इकाई है, इसके साथ साथ कपड़ा रंगाई व धुलाई और प्रिंटिंग यूनिट है। जो भारी प्रदूषण की वजह माना जा रहा है। यहां प्रदूषण की स्थिति कितनी गंभीर है, इसका पता इसी से चल रहा कि गंभीर रुप से प्रदूषित क्षेत्रों में इसका स्थान 32वां है। पर्यावरण प्रदूषण सूचकांका में प्रदूषण का 50 से 70 का स्कोर बहुत ही गंभीर श्रेणी में रखा गया है। जबकि पीन्या में यह स्कोर 65.11 है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां प्रदूषण का स्तर क्या है? इस औद्योगिक क्षेत्र को 1970 के दशक के अंत में कर्नाटक लघु उद्योग विकास ने विकसित किया था। यहां दो हजार से अधिक उद्योग है, इसके चलते इसे पीन्या औद्योगिक क्लस्टर के रूप में भी जाना जाता है।
भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डाक्टर डॉक्टर टीवी रामचंद्रन ने बताया कि शहर में भी कई जगह पर औद्योगिक इकाइया विकसित हुई है। फिर भी पीन्या में क्योंकि प्रदूषण फैलाने वाली इकाईयों की संख्या ज्यादा है,इसलिए प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह बन रहा है। यहां का बढ़ता प्रदूषण सिर्फ इसलिए ही खतरनाक नहीं है, क्योंकि हवा में सुक्ष्ण कणों की मात्रा है, बल्कि इसके साथ ही इसमें जहरीली धातु भी मिल रही है। इस वजह से पूरे शहर का वातावरण प्रदूषित हो रहा है। जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक संकेत हैं।
राष्ट्रीय वायु निगरानी कार्यक्रम के तहत
कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से हवा की गुणवत्ता को आंकने के लिए स्वान सिल्क प्राइवेट लिमिटेड और इको पार्क में केंद्र स्थापित किये गये। इस केंद्र के आंकड़े बताते हैं कि 2015 से लेकर 2018 तक इस इलाके में प्रदूषण के स्तर में काफी वृद्धि दर्ज की है। दोनों केंद्रों से जो आंकड़े मिले हैं, इसके अनुसार हवा में नाइट्रोज डाइऑक्साइड और सुक्ष्ण कणों की मात्रा तय मानकों से बहुत ज्यादा मिली है। इसी तरह से हवा में सल्फर, शीशा, मीथेन भी मिली है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हवा में सुक्ष्म कणों की उपस्थित वायु प्रदूषण का सबसे सामान्य संकेत है। इस तरह का प्रदूषण सेहत के लिये बहुत ज्यादा हानिकारक होता है, क्योंकि इसमें सल्फेट, नाइट्रेट, अमोनिया, सोडियम क्लोराइड, कार्बन के कण के साथ धूल और पानी भी मिला होता है। क्योंकि इन कणों का आकार बहुत ही सुक्ष्म होता है, करीब 10 माइक्रोन का साइज होता है। यह सांस के साथ आसानी से फेफड़ों में प्रवेश कर खून में मिल जाते हैं। जो कि कई तरह की बीमारियों के साथ साथ सांस की समस्या और फेफड़ों के कैंसर की भी वजह बन सकते हैं। सेंटर फॉर साइंस स्पिरिचुअलिटी के डाक्टर शशिधर गंगैया ने बताया कि पीन्य के औद्योगिक क्षेत्र भारी धातुओं के प्रदूषण की चपेट में हैं, जो कि बच्चों की वंशानुगत वृद्धि पर भी विपरीत असर डाल सकता है।
कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक उनके पीन्या में प्रदूषण को कम करने के लिए एक कार्ययोजना पर जोर दिया जा रहा है। इसमें पेंट की फैक्टरी संचालकों को इस तरह के विकल्प अपनाने पर प्रेरित किया जा रहा है, जिससे प्रदूषण न हो। इसी तरह से धातु उद्योग संचालक भी इस तरह के कदम उठा रहे हैं, जिससे प्रदूषण न हो फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य डॉक्टर येलापा रेड्डी ने बताया कि प्रदूषण फैलाने के लिए खतरनाक मानी जाने वाली इकाईयों को या तो अब बंद करना होगा, या फिर यहां से दूसरी जह शिफ्ट करना होगा।
(कपिल काजल बेंगलुरू स्थित फ्रीलांस पत्रकार है। वह आलइंडिया ग्रासरूट पत्रकार संगठन 101.काम रिपोर्टर्स के सदस्य है।)