कपिल काजल
बेंगलुरु, कर्नाटक:
शहर के बाहर रिंगरोड (ओआरआर)बनाया तो इसलिए गया था कि इससे शहर के अंदर के यातायात को कम किया जा सके। अब हुआ यह शहर से यातायात तो बाहर आ गया, लेकिन वह अपने साथ भारी प्रदूषण भी लेकर आया। क्योंकि वाहनों की बढ़ती भीड़ की वजह से हाइवे के साथ जुड़ने वाला साठ किलोमीटर लंबा यह रोड रिंग रोड प्रदूषित और जाम में तब्दील हो गया है। यह रोड सिल्क रोड, केआर पुरम और इलेक्ट्रॉनिक सिटी को जोड़ता है। इन क्षेत्रों में आईटी कंपनियां है, 15 लाख से अधिक लोग इन क्षेत्रों में काम करते हैं। भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. टीवी रामचंद्र ने बताया कि शहर के अलग अलग हिस्सों में रहने वाले लोग जो कि यहां काम करते हैं, रिंड रोड से होकर अपने कार्यस्थल तक पहुंचते हैं। इसमें से ज्यादातर वह लोग है जो अपने वाहन पर ही आते हैं।
रोड पर जब बड़ी संख्या में वाहन आ जाते हैं तो इससे निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण को 45 प्रतिशत तक बढ़ा देता है। धुएं में कार्बन कार्बन ऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड छोटे कण होते हैं, जो प्रदूषण के स्तर को बढ़ा देते हैं। इसके साथ ही रही सही कसर यहां लगातार चल रहा निर्माण कार्य पूरी कर देता है।
बाहरी रिंग रोड के वाहनों से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव का आंकलन करने के लिए दस निगरानी स्टेशन बनाये गये हैं। यहां की एक रिपोर्ट के मुताबिक पीएम 10 ( क्करू10 वो कण हैं जिनका व्यास 10 माइक्रोमेटर होता है पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि पीएम 10 को रेस्पायरेबल पर्टिकुलेट मैटर भी कहते हैं, इसमें धूल, गर्द और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं) की मात्रा 80.5 से 89.0 तक हो जाती है। जबकि पीएम 2.5 (पीएम 2.5 हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ है। इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है। मनुष्य के एक बाल की चौड़ाई पर इसके 40 कण आ सकते हैं)
की मात्रा 40.4 से 46.8 तक हो जाती है। यह
विश्व स्वास्थ्य संगठन ( डब्ल्यूएचओ ) की सिफारिश से बहुत ज्यादा है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि वाहनों से निकलने वाले धुएं से नाइट्रोजन ऑक्साइड सल्फर डाइऑक्साइड का स्तर भी तेजी से बढ़ जाता है। जो हवा की गुणवत्ता के साथ साथ स्वास्थ्य पर भी हानिकारक प्रभाव डालता है। सड़क के आस पास निर्माण चलता रहता है, इससे उड़ रही धूल, निर्माण सामग्री , क्रशर का संचालन, और निर्माण संबंधित गतिविधियों का सीधा असर काम करने वाले कामगारों के साथ साथ अन्य लोगों और सड़क से गुजरने वालों पर भी पड़ता है। रिपोर्ट में बताया गया कि प्रदूषण के बढ़ते स्तर का अंदाजा इसी से लग सकता है यह पेड़ों तक को प्रभावित कर रहा है। पत्तियों पर धूल जम गई, इससे पौधो की वृद्धि प्रभावित हो रही है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार हवा में शामिल यह सुक्ष्म कण सांस के माध्यम से फेफड़ों में अंदर तक जा सकते हैं। यहां तक की यह रक्त में भी मिल सकते हैं। जो कि दिल की बीमारी, सांस से जुड़ी बीमारी के साथ साथ फेफड़ों के कैंसर की भी वजह बन सकते हैं।
फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य डॉ. येलापा रेड्डी ने बताया कि वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर प्रतिकूल असर यातायात में फंसे लोगों पर होता है। उन्होंने बताया कि इस सब के लिए अधिकारी जिम्मेदार है।
हालांकि इस समस्या का अभी भी एक समाधान है, और वह यह है कि ईको ड्राइविंग। इससे यहां के वायु प्रदूषण का कम किया जा सकता है। रिंग रोड पर पर्यावरण को लेकर किये गए अध्ययन के अनुसार इको ड्राइविंग ड्राइवर के लिए किफायती होने के साथ साथ इससे ध्वनि प्रदूषण कम होगा। सड़क हादसों में इससे कमी आ सकती है।
(लेखक बेंगलुरू स्थित फ्रीलांस पत्रकार है। वह आलइंडिया ग्रासरूट पत्रकार संगठन 101 रिपोर्टर्स के सदस्य है।