हाल ही में रेल मंत्री सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में सांसदों की रेलवे की कंसल्टेटिव कमेटी की बैठक हुई.जिसमे रेल मंत्री प्रभु ने भारतीय रेलवे की बायो टॉयलेट कचरे का रीसाइक्लिंग वॉटर बॉडीज का कंजर्वेशन और रेलवे पटरियों के किनारे-किनारे वृक्षारोपण के उपाय पर प्रकाश डाला.
सांसदों की थी कुछ और ही मांग :
- रेल मंत्री ग्रीन डेवलपमेंट को बढ़ावा देने की बात कर रहे थे और सांसद उनको सुन रहे थे.
- परंतु जब सांसदों ने बोला तो ग्रीन एनर्जी की बात तो एक तरफ ही रह गयी
- इसके साथ ही सभी अपने-अपने इलाकों में नई लाइनें बिछाने के लिए आग्रह करने लगे.
- कुछ सांसदों ने अपने इलाके में यात्रियों को सुविधा प्रदान करने और नई रेल गाड़ियां चलाने का आग्रह भी किया.
- जिसके बाद ग्रीन डेवलपमेंट, इको फ्रेंडली रेलवे की बात दरकिनार हो गयी
- यही नही सांसदों ने अपने रिजर्वेशन और सुविधाओं के बारे में भी रेलमंत्री प्रभु से सिफारिश भी कर डाली.
- कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है की ग्रीन एनर्जी पर कंसल्टेटिव कमेटी की बैठक महज खानापूर्ति ही रही.
- कंसल्टेटिव कमेटी की बैठक में रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने सभी सांसदों को बताया रेलवे में अच्छी खासी बिजली का खर्चा है.
- इसके साथ ही चलने के लिए गाड़ियाँ डीजल का भी इस्तेमाल करती है जिससे प्रदूषण फैलता है
- मौजूदा परिप्रेक्ष्य में यह बात बहुत जरूरी हो गई है कि रेलवे को कैसे इको-फ्रेंडली बनाया जाए.
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