राजस्थान में अलवर लोकसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार करण सिंह यादव ने बीजेपी के डॉक्टर जसवंत यादव को 1 लाख 96 हजार 496 वोटों के से हरा दिया तो अजमेर में बीजेपी के रामस्वरूप लांबा कांग्रेस के रघु शर्मा से 84 हजार 162 वोटों से हार गए, जबकि मांडलगढ़ से कांग्रेस उम्मीदवार विवेक धाकड़ ने 12 हजार 976 वोटों से जीत का परचम लहराया. कांग्रेस ने राजस्थान में अपनी खोयी हुई जमीन तलाश ली है और लोकसभा चुनाव में मिली करार के बाद दो सीटों पर बड़ी जीत कर जोरदार वापसी करते हुए ये संकेत दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं होने वाला है.
कांग्रेस को मिली उपचुनाव में बड़ी जीत
राजस्थान के अजमेर और अलवर लोकसभा सीट के साथ-साथ मांडलगढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव कांग्रेस ने 3-0 से जीत दर्ज की है. चुनाव से पहले भी माना जा रहा था कि राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार के लिए ये सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, लेकिन इस रिजल्ट की कल्पना शायद बीजेपी ने भी नहीं की होगी क्योंकि राजस्थान में इसी साल चुनाव होने वाले हैं और ऐसे ये परिणाम बीजेपी के लिए शुभ संकेत नहीं माने जा रहे हैं, हालाँकि बीजेपी नेतृत्व इसे स्थानीय मुद्दों पर लड़ा गया चुनाव कहकर पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहा है लेकिन इस हार से पल्ला झाड़ना इतना आसान नहीं क्योंकि कांग्रेस ने इस जीत का सेहरा राहुल गाँधी के सर बांधते हुए जश्न मनाया है.
जश्न में यूपी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष भी शामिल
राजस्थान में हुए लोकसभा की दो सीटों एवं एक विधानसभा सीट पर उपचुनाव में कांग्रेस की भारी विजय मिली है. यूपी कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर ने राजस्थान की जनता को धन्यवाद दिया है.प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि राजस्थान के उपचुनाव में कांग्रेस की जीत कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की नीतियों की जीत है. वहीं केन्द्र की मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी की नीतियां खोखली साबित हुई हैं.
राजस्थान में बीजेपी की बड़ी हार का ठिकरा किसके माथे?
राजस्थान की दो लोकसभा (अलवर एवं अजमेर) और एक विधानसभा क्षेत्र (मांडलगढ़ ) में संपन्न हुए उप चुनाव में कांग्रेस ने तीनों सीटों पर कब्जा करते हुए भाजपा को कड़ी शिकस्त दी है. अलवर में कांग्रेस प्रत्याशी कर्ण सिंह यादव ने बीजेपी प्रत्याशी जसवंत यादव को डेढ़ लाख से भी अधिक मतों से हराया है. जसवंत सिंह राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री भी हैं. मांडलगढ़ की विधानसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी विवेक धाकड़ ने बीजेपी प्रत्याशी शक्ति सिंह को हराया. इसके पहले ये तीनों सीट बीजेपी के पास थी. पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में मुंह की खाने वाली कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी करते हुए तीनों सीटों पर बड़ी जीत हासिल की है. वहीँ बीजेपी ने जनता के फैसले का स्वागत करने और आत्ममंथन करने की बात तो कही है लेकिन इस चुनाव में हार की जिम्मेदारी कौन लेगा, ये सीधे तौर पर अभी कोई नहीं बोलने को तैयार है.
वसुधंरा राजे के नेतृत्व को लेकर परेशान बीजेपी
बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को आरएसएस ने पहले ही आगाह कर दिया था कि राजस्थान में हालात अच्छे नहीं हैं और नेतृत्व यानी मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने पर विचार करना चाहिए, लेकिन हिन्दूवादी छवि वाली वसुंधरा राजे को हटाना बीजेपी के लिए इतना आसान नहीं है क्योंकि इसके पहले भी बीजेपी ने इशारा किया था और तब वसुधंरा राजे के बगावती तेवरों के कारण शीर्ष नेतृत्व ने उनके आगे के लिए मौका दे दिया. लेकिन ये चुनाव कहीं न कहीं गुजरात चुनाव की तर्ज पर जाता दिखाई दे रहा है जहाँ पटेल आन्दोलन ने आनंदीबेन पटेल को नुकसान पहुँचाया और अब करणी सेना के उपद्रव के कारण वसुंधरा राजे मुश्किलों में हैं.
किन मुद्दों पर लड़ा गया चुनाव?
बीजेपी इसे स्थानीय मुद्दों पर लड़ा गया चुनाव बता रही है जबकि कांग्रेस इसे सीधे तौर पर मोदी सरकार की नोटबंदी और GST के साथ ही किसानों की आत्महत्या और महंगाई की बढ़ती मांग से जोड़कर बताने में लगी है. कांग्रेस का कहना है कि राज्य में भी बीजेपी की सरकार है और ऐसे में केंद्र की नीतियों का असर क्या और कितना पड़ा है, इसका सीधा आपस में है. बीजेपी का कोई नेता इसे बड़ा झटका मानने से इंकार कर रहा है लेकिन सच ये भी है कि 40 सालों में पहली बार ऐसा हुआ है सत्ताधारी दल उपचुनाव में लोकसभा की सीट से हाथ धो बैठा है.
सचिन पायलट ने राजस्थान में जगाई उम्मीद:
कांग्रेस सचिन पायलट के युवा नेतृत्व और अशोक गहलौत के रणनीति पर काम करती दिखाई दे रही है. ऐसे में कांग्रेस के लिए मुख्यमंत्री का चेहरा चुनना चुनौती हो सकता है. हालाँकि सचिन पायलट काफी समय से जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं और अशोक गहलौत केंद्र की राजनीति में जा चुके हैं. ऐसे में युवा चेहरा होने का लाभ सचिन पायलट को मिलने की संभावना जताई जा रही है.
तो क्या राजे-मोदी दोनों से राजस्थान नाखुश?
चुनाव परिणाम से सवाल सीधे उठता है कि क्या वसुंधरा राजे की नीतियाँ राज्य में इतनी भी प्रभावी नहीं कि उपचुनाव में एक विधानसभा सीट जीत सके. या फिर केंद्र की नीतियों के कारण जनता परेशान होकर विकल्प के रूप में कांग्रेस पर भरोसा जता रही है, ये ऐसे सवाल हैं जो बीजेपी को परेशान करने वाले हैं क्योंकि GST के कारण छोटे उद्योगों को जो नुकसान हुआ है और महंगाई ने कमर तोड़ी है, इसके लिए केंद्र अपना पल्ला झाड़ने में व्यस्त दिखाई दे रहा है. किसानों की आत्महत्या हो या MSP की बात हो, किसान परेशान है जबकि रोजगार के क्षेत्र में भी जनता को हाथ कुछ लगा नहीं है. ऐसे में बीजेपी को ये तय करने की जरुरत है कि चुनाव में कहाँ कमी हुई कि 163 सीटें जीतने वाली पार्टी उपचुनाव में एक विधानसभा सीट पर बड़े अंतर से हार गई.
सभी विधानसभा सीटों पर बीजेपी पिछड़ी:
अजमेर और अलवर की 17 विधानसभा सीटों पर बीजेपी पिछड़ गई और नतीजा ये हुआ कि एक बड़े अंतर से हार बीजेपी की झोली में अनचाहे रूप से आ गिरी. सचिन पायलट सहित तमाम कांग्रेस के नेता इसे बड़ी जीत मान रहे हैं क्योंकि त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में होने वाले चुनाव से पहले ये जीत मनोबल बढ़ाने का काम करेगी वहीँ पार्टी राहुल गाँधी के नेतृत्व के प्रति लोगों में विश्वास जगाने का काम भी कर रही है.
राजस्थान में मिली जीत का सेहरा राज बब्बर ने राहुल गाँधी के सर बांधा
राजे ने पद्मावत के लिए राजपूतों का दिया साथ लेकिन राजपूतों ने नहीं दिया साथ
राजपूत करणी सेना ने ‘पद्मावत’ के मुद्दे पर शुरू से लेकर अंत तक सख्त तेवर अपनाए रखा. राजपूत वोटरों को लुभाने के लिए करणी सेना के खिलाफ राज्य सरकार ने नरम रुख अपनाए रखा. यहाँ तक कि वसुंधरा राजे सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर भी पहुँच गईं. उसकी जड़ में सिर्फ यह उपचुनाव ही थे. मगर वहां की बीजेपी सरकार के इस हथकंडे को भी तीन सीटों की जनता ने नकार दिया और उपचुनाव में कांग्रेस के साथ जाना ही मुनासिब समझा. करणी सेना ने ऐलानिया तौर पर कहा था कि उपचुनाव में वो बीजेपी के खिलाफ वोट कर सबक सिखायेंगे और चुनाव परिणाम आने के बाद करणी सेना ने यही कहते हुए जश्न भी मनाया कि अगर बीजेपी संभली नहीं तो ऐसे परिणाम ही विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिलेंगे.
कांग्रेस के लिए जीत का कितना महत्व?
कांग्रेस के लिए यह जीत इसलिए भी खास है क्योंकि इसी साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं और ये तीनों सीटें बीजेपी के पास थीं. वहीँ पिछले विधानसभा चुनाव में महज 21 सीट और लोकसभा चुनाव में खाता न खुलने के बाद मिली ये जीत बड़ी मानी जा रही है. बता दें कि इसी साल मेघालय, त्रिपुरा और कई राज्यों में भी चुनाव होने हैं. गुजरात में जीत से कुछ कदम दूर रहने के बाद राजस्थान में मिली इस जीत ने कांग्रेस में जान फूंकने का काम किया है. कांग्रेस के पास अब इस जीत को भुनाने का बेहतर मौका है. कांग्रेस के लिए यह जीत इसलिए भी बेहद अहम है क्योंकि कुछ-एक जगह को छोड़ दें तो लोकसभा चुनाव के बाद अभी तक लगातार कांग्रेस हार का सामना ही कर रही है.