भारत को गांवों का देश कहा जाता है. देश की लगभग 70% जनसँख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. देश के इन क्षेत्रों में सुख सुविधाएँ तो दूर मूलभूत सुविधाएँ तक मौजूद नहीं हैं. इन्ही गांवों का विकास करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में अपनी सबसे महत्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की थी, जिसका नाम दिया था सांसद आदर्श ग्राम योजना. यह योजना जय प्रकाश नारायण के जन्मदिन के दिन यानि 11 अक्टूबर को लागू हुई थी. यह योजना महात्मा गाँधी के आदर्श ग्राम के सामने से भी जुड़ी हुई थी.
इस योजना के तहत लोकसभा व राज्यसभा के सभी सांसदों को एक-एक गाँव को गोद ले कर उसका विकास करना था. 2019 तक हर को काम से काम 3 गांवों का विकास तो करना ही था. और 2024 तक 8 गांवों के विकास का जिम्मा हर सांसद के कंधे पर था. पीएम ने देश के हर सांसद से अपील किया इस योजना को सफल बनाने के लिए. लेकिन योजना शुरू करना और उसके एक सफल रूप देना 2 अलग अलग बातें थीं.
तीसरे चरण में सांसदों ने नहीं दिखाई गाँव गोद लेने में दिलचस्पी:
रिपोर्ट्स की माने तो दोनों सदनों के देश भर के 78% सांसदों ने अब तक एक गाँव भी गोद नहीं लिया है.
देश भर के कुल सांसदों की बात करें तो पहले चरण में लोकसभा के कुल 543 में से 500 सांसदों ने गाँव गोद लिया और राज्यसभा के 253 में से 203 ने गाँव गोद लिया. दुसरे चरण में लोकसभा के 549 में से केवल 354 ने ही इस योजना को आगे बढ़ाया. और राज्यसभा के 242 में से सिर्फ 129 सांसदों ने हियः बीड़ा उठाया. तीसरे चरण का हाल तो इससे भी बुरा रहा. इस बार 547 में से केवल 191 सांसदों ने एक एक गाँव गोद लिया और राज्यसभा के 242 सांसदों में से केवल 45 ने ही एक एक और गाँव की ज़िम्मेदारी ली.
उत्तर प्रदेश के आंकड़े चौंकाने वाले:
सिर्फ उत्तर प्रदेश की बात करें तो दोनों सदनों में कुल 108 सांसद हैं, जिसमें से कुछ छोड़ कर सभी ने पहले चरण में एक एक गाँव को गोद लिया. लेकिन क्रमशः दूसरे व तीसरे चरण में सांसदों की रूचि गाँव गोद लेने में घटती गयी. तीसरे चरण में 108 में से 60 ने एक भी गाँव को गोद नहीं लिया.
पहले चरण में यूपी लोकसभा के 80 सांसदों में से 79 ने गाँव को गोद लिया. और राज्यसभा के 34 सांसदों में से 25 गाँव गोद लिया था.
दूसरे चरण में यह आंकड़ा कुछ नीचे आ गया. इस बार लोकसभा के 81 सांसदों में से 74 ने ही केवल गाँव गोद लिया और राज्य सभा के 30 सांसदों में से केवल 23 ने.
तीसरे चरण का आंकड़ा तो और चौंकाने वाला था. इस चरण में लोकसभा के 80 में से केवल 57 सांसदों ने ही गाँव गोद लेने में दिलचस्पी दिखाई. और राज्यसभा के 30 में से केवल 4 सांसदों ने गाँव को गोद लिया है.