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इंकलाबी नारों से ओतप्रोत देश के सच्चे सपूत थे भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव

shaheed divas: india tribute to bhagat singh sukhdev and rajguru

shaheed divas: india tribute to bhagat singh sukhdev and rajguru

मेरे जज्बातों से इस क़दर वाकिफ है कलम मेरी, मैं इश्क भी लिखना चाहॅू तो इंकलाब लिख जाता है। देशभक्ति के प्रेम में सराबोर, मां भारती के आजादी के इंकलाबी नारों से ओतप्रोत एक सच्चे सपूत की ही पंक्तियां हो सकती है। जी हां देश के लिए मात्र 23 वर्ष की उम्र में इस प्रकार के इंकलाबी नारों से ओतप्रोत शहीद भगत सिंह को अंग्रेजों ने 23 मार्च को फांसी दे दी थी। इनके साथ राजगुरू व सुखदेव को भी फांसी दे दी गई थी। इनके दिए गए बलिदान से देशप्रेमियों में भारत की आजादी के लिए अनन्त ज्वाला फूट गई। इंकलाबी नारों से जलाई हुई चिंगारियां युवाओं दिलों तक पहुंची और अंग्रेजो के खिलाफ बगावती बिगुल तेज हो गई। इन वीर सपूतों की कुर्बानी के कारण देश में एक सुर में आजादी के नारे गूंजने लगे।

पाँच भाषाओं के विज्ञ थे भगत सिंह

भगत सिंह का लेखन तो 16-17 वर्ष की उम्र में ही शुरू हो गया था। घर में उन्होंने पंजाबी सीखी तो स्कूल में दादाजी की इच्छनुसार संस्कृत, हिंदी और उर्दू का ज्ञान मिला। अंग्रेजी का ज्ञान नेशनल कालेज व बाद में स्वाध्याय से हासिल किया। पाँच भाषाओं के विज्ञ भगत सिंह का सर्वाधिक लेखन हिंदी में, उसके बाद पंजाबी और अंग्रेजी में हुआ। परिवार को बचपन में उर्दू में पत्र लिखे व बाद में एकाध लेख भी उर्दू में लिखा, विशेषतः इस संकलन (चमनलाल द्वारा संपादित पुस्तक ‘भगत सिंह के राजनीतिक दस्तावेज़’) में शामिल पहला लेख लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित उर्दू अखबार ‘वन्दे मातरम’ में उर्दू में ही छापा था । 1924 में 17 वर्ष की आयु में भगत सिंह ने ‘पंजाब की भाषा और लिपि’ की समस्या पर लेख लिखकर पचास रुपये का प्रथम पुरस्कार हासिल किया । इसी समय उन्होंने ‘विश्व प्रेम’ और ‘युवक’ जैसे लेख भी लिखे, जो कोलकाता से प्रकाशित ‘मतवाला’ में छपे । पत्र उनके 11, 14 और 16 साल की उम्र में लिखे मिलते हैं।

लाला लाजपत राय की मौत का लिया था बदला

पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में अंग्रेज सहायक पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स को गोली मार दी थी और खुद ही गिरफ्तार हो गए थे। भगतसिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून-खराबा न हो तथा अंग्रेजों तक उनकी आवाज पहुंचे। निर्धारित योजना के अनुसार भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेम्बली में एक खाली स्थान पर बम फेंका था। इसके बाद उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना संदेश दुनिया के सामने रखा। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन पर एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी साण्डर्स की हत्या में भी शामिल होने के कारण देशद्रोह और हत्या का मुकदमा चला।

शहीद भगतसिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था और 23 मार्च 1931 को शाम 7.23 पर भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी दे दी गई।

शहीद सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907 को पंजाब को लायलपुर पाकिस्तान में हुआ। भगतसिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहने से इन दोनों वीरों में गहरी दोस्ती थी, साथ ही दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे। सांडर्स हत्याकांड में इन्होंने भगतसिंह तथा राजगुरु का साथ दिया था।

शहीद राजगुरु 24 अगस्त, 1908 को पुणे जिले के खेड़ा में राजगुरु का जन्म हुआ। शिवाजी की छापामार शैली के प्रशंसक राजगुरु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से भी प्रभावित थे।

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