दिवंगत शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे की जंयती के मौके पर शिवसेना ने आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर एक बड़ा एलान किया.शिवसेना 2019 का लोकसभा और विधानसभा चुनाव एनडीए से अलग होकर लड़ेगी. इसका फैसला मंगलवार को सर्वसम्मति से पार्टी की हुई बैठक में लिया गया. इसी बैठक में युवा सेना के अध्यक्ष और ठाकरे परिवार की चौथी पीढ़ी के नेता आदित्य ठाकरे ‘शिवसेना नेता’ पद के लिए चुने गए. यहां बात प्री-पोल अलायंस की हो रही है. 2014 के विधानसभा चुनाव में भी दोनों का प्री-पोल अलायंस टूटा. बाद में दोनों ने मिलकर सरकार बनाई.

 

 

 

पीएम लाल चौक क्यों नहीं जाते-उद्धव 

शिवसेना अपना पार्टी अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों का आंतरिक चुनाव पार्टी संस्थापक बाल ठाकरे के जन्मदिन पर करती है.उद्धव ठाकरे ने कहा, “पीएम अपने आपको पंत प्रधान कहते हैं.वे विदेशों में घूमते हैं, कभी वे इजरायल के पीएम को अहमदाबाद ले जाते हैं. वे कभी श्रीनगर के लाल चौक क्यों नहीं जाते? उन्होंने अभी तक श्रीनगर में रोड शो क्यों नहीं किया? क्या उन्होंने लाल चौक पर तिरंगा फहराया? अगर वे कभी ऐसा कर पाएं तो हमें उन पर गर्व होगा.नितिन गडकरी महाराष्ट्र आए और बॉर्डर की सिक्युरिटी करने वाली नेवी का अपमान किया. सेना के लोगों का 56 इंच का सीना होता है, कोई उनकी आलोचना कैसे कर सकता है.

 

34 साल पुराने रिश्ते और 29 साल पुराने अलायंस पर फिर खतरा.

1984 में शिवसेना के नेताओं ने दो सीटों पर बीजेपी के इलेक्शन सिंबल पर चुनाव लड़ा था। लेकिन दोनों पार्टियों के बीच ऑफिशियल अलायंस 1989 में हुआ, कभी राज्य में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में शिवसेना को बीजेपी से ज्यादा सीटें मिलती थीं. 1995 में पहली बार यहां गैर-कांग्रेसी सरकार बनी तो बीजेपी, शिवसेना की सहयोगी थी.

 

पहली बार कब टूटा था अलायंस? क्या है सीटों का गणित?

-2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 48 में से 23 सीटें मिलीं, जो पिछले चुनाव से 14 ज्यादा थीं। शिवसेना को सिर्फ 18 सीटें मिलीं.2014 में ही महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर गठबंधन टूट गया. चुनाव में बीजेपी को 122 और शिवसेना को 63 सीटें मिलीं.बाद में दोनों में दोबारा गठबंधन हो गया और राज्य में देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनी.केंद्र सरकार में भी शिवसेना को मंत्री पद दिए गए. इसके बावजूद कई मुद्दों पर शिवसेना-बीजेपी के बीच मतभेद उभरकर सामने आते रहे.लोकसभा में अभी बीजेपी बहुमत में है. उसके पास 543 में से 282 सीटें हैं.

 

क्या राज्य सरकार को कोई खतरा है

बीजेपी-शिवसेना गठबंधन यदि टूटता है तो सीएम फड़णवीस को सरकार बचाने के लिए 145 विधायक चाहिए होंगे. बीजेपी के पास 122 विधायक हैं. एनसीपी के 41 विधायक हैं. कांग्रेस के पास 41 विधायक हैं. विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं.

 

पार्टी में इसलिए अहम है ‘शिवसेना नेता’ पद

 

बता दें कि बालासाहेब ठाकरे के कार्यकाल में शिवसेना प्रमुख के पद के बाद ‘शिवसेना नेता’ पद ही पार्टी में सबसे बड़ा पद रहा है। ‘शिवसेना नेता’ ही पार्टी की नीति निर्धारण में भाग लेते हैं.बालासाहेब के निधन के बाद पार्टी की कमान जब उद्धव ठाकरे ने संभाली, तो उन्होंने खुद को ‘शिवसेना प्रमुख’ कहलाने के बजाए ‘शिवसेना पार्टी प्रमुख’ कहलवाना शुरू किया. इसके पीछे उनका तर्क यह था कि ‘शिवसेना नेता’ सिर्फ बालासाहेब थे।

 

सोमवार को ही फाइनल हो गया था आदित्य का नाम

सोमवार को मातोश्री में हुई बैठक के दौरान ही आदित्य के नाम पर निर्णय हो गया था. इस बैठक में शिवसेना नेता मनोहर जोशी, सुभाष देसाई, दिवाकर रावते, संजय राऊत, अनिल परब, रामदास कदम समेत अन्य नेता उपस्थित थे.मंगलवार को जैसे ही कार्यकारणी की बैठक शुरू हुई सभी ने सर्वसम्मति से आदित्य ठाकरे को शिवसेना नेता के रूप में चुन लिया.

अगर शिवसेना बीजेपी का साथ मुम्बई में छोड़ती है तो बीजेपी के लिए मुश्किले खड़ी हो जाएगी.

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