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बजट सत्र से पहले आमने-सामने सरकार और विपक्ष दल

sumrita mahajan

मोदी सरकार अपने कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट पेश करने जा रही है. इसके लिए संसद के बजट सत्र का पहला चरण 29 जनवरी से 9 फरवरी तक बुलाया गया है. इस दौरान सरकार 29 जनवरी को आर्थिक सर्वेक्षण पेश करेगी और फिर एक फरवरी को केंद्रीय बजट पेश किया जाएगा. लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों की संयुक्त बैठक के साथ सत्र शुरू होगा. वित्त मंत्री अरुण जेटली मोदी सरकार के कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट पेश करेंगे.

बजट के राजनीतिक मायने

लोकसभा स्पीकर ने संयुक्त सत्र की बैठक बुलाई है जिसमें सरकार और विपक्ष के बीच कई मुद्दों पर टकराव देखने को मिल सकता है. पेट्रोल-डीजल की कीमतों के अलावा ट्रिपल तलाक बिल का मुद्दा भी गर्म रहने के आसार हैं. ऐसा माना जा रहा है कि मोदी सरकार का आखिरी बजट राजनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है. आगामी चुनाव को देखते हुए कई लुभावने घोषणाओं के जरिये सरकार अपनी स्थिति मजबूत करने में कोई कसर नहीं बाकी रखना चाहेगी.

बजट के प्रारूप को लेकर लगाये जा रहे कयास

बजट पेश होने में सिर्फ 9 दिन बाकी हैं और दिनोंदिन इस बात की चर्चा बढ़ती जा रही है कि आने वाले बजट में क्या होगा. अब इसको लेकर सरकार की तरफ से एक बड़ी खबर आई है. चीनी विकास कोष को इस बजट में मायूसी हाथ लग सकती है. ऐसा माना जा रहा है कि सरकार आने वाले बजट 2018-19 में चीनी विकास कोष-शुगर डेवलपमेंट फंड (एसडीएफ) के लिए 500 करोड़ रुपये का प्रावधान कर सकती है जो इस साल के बजट की तुलना में नाम मात्र का इजाफा होगा. साल 2017-18 में एसडीएफ के लिए 496 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया था.

एसडीएफ को कम बजट का अनुमान

एसडीएफ का प्रबंधन खाद्य मंत्रालय करता है जिसका इस्तेमाल मिलों को कम ब्याज दर पर कर्ज उपलब्ध कराने में इस्तेमाल किया जाता है. पिछले वित्त वर्ष तक यह कोष चीनी मिलों पर सेस लगा कर जुटाया जाता था. पिछले साल जुलाई में जीएसटी लागू होने के बाद चीनी सेस खत्म कर दिया गया था. साल 2017-18 में एसडीएफ के लिए 496 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया.

पेट्रोल-डीजल पर होंगी सभी की नजरें

फिलहाल तेल पर एक्साइज ड्यूटी की दर तय है. वर्तमान में पेट्रोल पर 19 रुपये 48 पैसे और डीजल पर 15 रुपये 33 पेसे एक्साइज ड्यूटी वसूली जाती है. गौर करने वाली बात यह है कि कच्चे तेल के दाम कितने भी बढ़ जाएं, केंद्र सरकार को अतिरिक्त कमाई नहीं होती. राज्यों में कीमत का एक फीसदी टैक्स के रूप में लगता है. ऐसे में जब भी कच्चे तेल की कीमत बढ़ती है तो राज्य सरकारों को ज्यादा कमाई होती है.

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