सुप्रीम कोर्ट ने उज्जैन के महाकाल ज्योतिर्लिंग को नुकसान से बचाने के लिए मंदिर प्रबंधन की तरफ से दिए गए सुझावों पर मुहर लगाते हुए आदेश दिया है कि शिवलिंग पर RO का ही पानी चढ़े. इसके साथ ही अदालत ने प्रति श्रद्धालु दूध और दूसरी पूजन सामग्री की सीमा सीमित करने का फैसला सुनाया है.
किस तरह से पूजा हो यह तय करना काम नही: SC
उज्जैन के महाकाल मंदिर से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि शिवलिंग पर केवल RO का पानी ही चढ़ाया जाएगा। यह आदेश शिवलिंग के घिसने की वजह से दिया गया है। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में किस तरह से पूजा अर्चना हो यह तय करना हमारा काम नहीं है। हम केवल शिवलिंग को सुरक्षित रखने के लिए चिंतित हैं।
प्रति श्रद्धालु दूध और दूसरी पूजन सामग्री की सीमा भी तय:
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने अपना आदेश सुरक्षित रखते समय साफ किया था कि पूजा कैसे हो, ये तय करना कोर्ट का काम नहीं है. बल्कि अदालत ने सिर्फ शिवलिंग को नुकसान से बचाने पर सुनवाई की.
गौरतलब है कि पिछले साल अक्टूबर में कोर्ट ने मंदिर प्रबंधन के तरफ से सुझाए गए कुछ उपायों पर सहमति जताई थी. इसके बाद से शिवलिंग पर RO पानी चढ़ाया जा रहा है. प्रति श्रद्धालु दूध और दूसरी पूजन सामग्री की सीमा भी तय की गई है. कोर्ट ने पिछली सुनवाई में साफ़ किया था कि सभी पक्षों को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाएगा. इसके बाद ही वो कोई आदेश पारित किया जाएगा.
SC के पिछले निर्देश:
-अगर संभव हो तो पुजारियों के अलावा बाकी लोगों को गर्भ गृह में न जाने दिया जाए. अगर ऐसा नहीं हो सकता तो लोगों की संख्या सीमित कर दी जाए.
-पूरा दिन ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाने से नुकसान पहुंच सकता है, इसे सीमित किया जाए.
-दूध और दूध से बनी चीज़ों, घी और शहद का सिर्फ प्रतीकात्मक इस्तेमाल हो. यानी सुबह होने वाली भस्म आरती के दौरान पुजारी इन्हें अर्पित करें. बाकी समय इस पर रोक लगे.
-शिवलिंग पर गुड़, शक्कर जैसी चीज़ों का लेप न लगाया जाए. अगर धार्मिक कारणों से इनका इस्तेमाल ज़रूरी है तो इसे बेहद सीमित कर दिया जाए.
-फूल और बेल पत्र का भी सीमित इस्तेमाल हो. शिवलिंग के लगातार इनसे ढंके रहने से नमी हो जाती है. साथ ही पत्थर तक हवा का सही प्रवाह भी नहीं होता.
-धातु की बाल्टी और लोटों की जगह लकड़ी या बढ़िया प्लास्टिक के बर्तन इस्तेमाल हों. इससे मंदिर के अंदर फर्श और दीवारों को नुकसान पहुंचने का खतरा कम होगा.
-मंदिर परिसर को मूल स्वरूप में लाने के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाएं. मरम्मत के काम के लिए टाइल्स जैसी आधुनिक चीज़ों का इस्तेमाल न किया जाए.
-तमाम मूर्तियों और पुरातात्विक महत्व की चीज़ों का संरक्षण वैज्ञानिक तरीके से किया जाए.