टाइगर हिल- जिसे वापस जीतने के लिए भारत के अनेकों सैनिकों ने अपनी कुर्बानी देकर घुसपैठियों के कब्जे से इस चोटी पर तिरंगा लहराया।
ये वो समय था जब जज्बे और बहादुरी के अनोखे मेल से भारतीय सेना ने घुसपैठियों को टाइगर हिल से खदेड़ने में सफलता प्राप्त कर ली और इसके साथ भी ‘कारगिल युद्ध’ में भारत की जीत हुई।
पाकिस्तानी सेना और घुसपैठियों के साथ मिलकर इस ऊँची चोटी पर दुश्मनों ने कब्ज़ा जमा रखा था और उस ऊंचाई पर चढ़ना और उन्हें चुनौती देना आसान काम नहीं था।
तीन जुलाई की शाम को खराब मौसम और अंधेरे में 18 ग्रेनेडियर्स के चार दलों ने टाइगर हिल पर चढ़ना प्रारम्भ किया। पीछे से तोप और मोर्टार से गोले दागकर उनका सहयोग किया जा रहा था। एक दल ने रात को डेढ़ बजे उसके एक भाग पर कब्जा कर लिया।
आठ माउण्टेन डिवीजन को शत्रु की आपूर्ति रोकने को कहा गया, क्योंकि इसके बिना पूरी चोटी को खाली कराना सम्भव नहीं था। मोहिन्दर पुरी और एम.पी.एस.बाजवा के नेतृत्व में सैनिकों ने यह काम कर दिखाया। सिख बटालियन के मेजर रविन्द्र सिंह, लेफ्टिनेण्ट सहरावत और सूबेदार निर्मल सिंह के नेतृत्व में सैनिकों ने पश्चिमी भाग पर कब्जा कर लिया। जिसके बाद दुश्मनों का दुबारा टाइगर हिल के आस-पास भी आना नामुमकिन हो गया।
इस चोटी पर तिरंगा लहराता देख कर पाकिस्तानी सैनिकों के पांव उखड़ गए और उसके बाद देखते ही देखते उन्हें भारत की सेना के आगे पीठ दिखानी पड़ी।
1999 के कारगिल युद्ध के दौरान इस चोटी को इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण माना जाता था क्योंकि ये पुरे क्षेत्र में ये सबसे ऊँची चोटी थी और जो भी इस पर कब्ज़ा करेगा उसे वापस हटाना मुमकिन नही होगा लेकिन भारतीय जवानों ने अपनी बहादुरी से पाकिस्तान के सैनिकों को मार गिराने के साथ ही वहां भारत का झंडा फहराकर इस बात की पुष्टि कर दी थी कि एक बार फिर पाकिस्तान को भारत के हाथों हार झेलनी पड़ेगी।