देश में आजकल ट्रिपल तलाक और यूनिफार्म सिविल कोड को लेकर सियासत हो रही है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसकी खिलाफत कर रहा है वहीं केंद्र सरकार ट्रिपल तलाक के मुद्दे पर महिला सुरक्षा, उसके आत्मसम्मान और उसके हक़ की लड़ाई का वास्ता देकर सुप्रीम कोर्ट से इसे ख़त्म करने की दरख्वास्त कर रही है। इस मुद्दे को लेकर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सरकार पर निशाना साध रहा है और यूनिफार्म सिविल कोड को मुस्लिमों के प्रति साजिश बता रहा है। उनके अनुसार, तीन तलाक की व्यवस्था को चुनौती नही दी जा सकती है और अगर ऐसा किया जाता है तो ये इस्लाम के खिलाफ होगा। इस सूरत में वो किसी भी हद को पार करने की धमकी भी दे चूके हैं।
इस्लामी समाज में तलाक देने के तीन तरीके हैं. तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-अहसन और तलाक-ए-बिद्अत. लेकिन एक साथ 3 तलाक यानी तलाक-तलाक-तलाक का मामला तलाक-ए-बिद्अत की देन है. भारतीय मुस्लिमों में इस तलाक पर बहस 1765 के करीब शुरू हुई लेकिन ये तो मुस्लिम समाज में 1400 साल पुराना झगड़ा है जो चलता आ रहा है।
तलाक-ए-बिद्अत यानी तलाक-तलाक-तलाक:
- तलाक देने के सही तरीके पर शिया-सुन्नी को इत्तेफाक है.
- लेकिन झगड़े की वजह तलाक-ए-बिद्अत है.
- वहाबी समूह अहल-ए-हदीस तलाक-ए-बिद्अत को नहीं मानता.
- अगर मर्द तलाक के तरीके ना मानते हुए भी एक बार में तलाक-तलाक-तलाक कह देता है तो तलाक मान लिया जाएगा.
- यानि तलाक-ए-मुगल्लज़ा हो गई.
- इसके बाद अब पति और पत्नी साथ नहीं रह सकते हैं।
- इसमें तलाक वापस लेने का कोई जरिया भी नहीं है।
- यानी किसी भी सूरत में अब समझौते की जगह नही बचती है।
- भले ही मर्द ने गुस्से में ही तीन तलाक क्यों नहीं दिया हो.
- लेकिन अब मुस्लिम समाज के लिहाज से ये तलाक मान लिया जाएगा।
दुनिया भर में सुन्नी मुसलमानों के चार स्कूल ऑफ थॉट हैं और ये तलाक-ए-बिद्अत को मानते हैं। भारत सबसे बड़े स्कूल ऑफ थॉट हनफी स्कूल का केंद्र है. यहां मुसलमानों की करीब 90 फीसदी आबादी सुन्नी है. ये सब तीन तलाक को मानते हैं. अहल-ए-हदीस के अनुसार, ट्रिपल तलाक गलत है लेकिन इनकी संख्या भारत में बहुत ही कम है।