फसल काटने के बाद नए साल की शुरुआत के तौर पर मनाया जाने वाला पर्व बैसाखी 14 अप्रैल यानी आज मनाया जाएगा. ये त्योहार खास तौर से खेती से जुड़ा हुआ है. कहा जाता है कि बैसाखी के बाद ही गेहूं की फसल की कटाई शुरू होती है. सिखों के लिए इस त्योहार का खास महत्व है. सिख इसे सामूहिक जन्मदिवस के रूप में मनाते हैं. बताया जाता है कि वैशाख की षष्ठी तिथि को ही खालसा पंथ की स्थापना की गई थी. गुरू गोबिंद सिंह ने इस दिन अपने पंज प्यारों के हाथ से अमृत पीकर सिंह की उपाधी धारण की थी.
क्या है शुभ मुहर्त, कैसे मनाएं बैसाखी, जाने यहाँ:
आज बैसाखी का पर्व है. साल की शुरुआत में फसल कटने के साथ यह त्यौहार मनाया जाता है. पुरे देश में वैसाखी को अलग अलग तरीके से मनाया जाता है। लेकिन उत्तर भारत और विशेषकर पंजाब में इसका अलग ही क्रेज होता है।
बैसाखी का शुभ मुहर्त:
बैसाख संक्रांति में सूर्य मेष राशि में सुबह 08:10 पर प्रवेश करेंगे। बैसाख संक्रांति 14 अप्रैल 2018, शनिवार को 8: 45 पर मुहूर्त होगी। इस संक्रान्ति पर स्नान दान आदि का पुण्य़काल दोपहर 14:34 तक चलेगा।
इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व बताया जाता है। ऐसा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन अन्न, फल, वस्त्र, पंखा और घटदान की परंपरा चली आ रही है। माना जाता है कि इस दिन से ग्रीष्मकाल का आरंभ होता है। इसलिए शरीर को तर रखने वाली वस्तुओं के दान का काफी महत्व होता है।
बैसाखी मनाने के रोचक ऐतिहासिक कारण:
सिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में वर्ष 1699 में खालसा पंथ की नींव रखी थी. इसका ‘खालसा’ खालिस शब्द से बना है, जिसका अर्थ शुद्ध, पावन या पवित्र होता है. चूंकि दशम गुरु, गुरु गोविन्द सिंह ने इसी दिन खालसा पंथ की स्थापना की थी. इसलिए वैशाखी का पर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा. खालसा-पंथ की स्थापना के पीछे गुरु गोबिन्द सिंह का मुख्य लक्ष्य लोगों को तत्कालीन मुगल शासकों के अत्याचारों से मुक्त कर उनके धार्मिक, नैतिक और व्यावहारिक जीवन को श्रेष्ठ बनाना था.
प्रथम गुरु नानक देवजी ने की वैशाख माह की प्रशंसा:
सिख पंथ के प्रथम गुरु नानक देवजी ने भी वैशाख माह की आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से काफी प्रशंसा की है. इसलिए पंजाब और हरियाणा सहित कई क्षेत्रों में बैसाखी मनाने के आध्यात्मिक सहित तमाम कारण हैं. श्रद्धालु गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते हैं. दिनभर गुरु गोविंद सिंहजी और पंच-प्यारों के सम्मान में शबद और कीर्तन गाए जाते हैं.
कृषि उत्सव है बैसाखी:
बैसाखी का त्यौहार अप्रैल माह में तब मनाया जाता है, जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है. यह खगोलीय घटना 13 या 14 अप्रैल को होता है. इस समय सूर्य की किरणें तेज होने लगती हैं, जो गर्मी के मौसम का आगाज करती हैं. इन गर्म किरणों के प्रभाव से जहां रबी की फसल पक जाती हैं, वहीं गरमा और खरीफ फसलों का मौसम शुरू हो जाता है. अब जिस देश की बुनियाद ही खेती पर टिकी हो, वहां इसका एक उत्सव तो बनता है. यही कारण है कि इस तिथि के आसपास भारत में अनेक पर्व-त्यौहार मनाए जाते हैं, जो वस्तुतः कृषिगत त्यौहार ही हैं.
कैसे मनाई जाती है बैसाखी:
इस दिन मुख्य समारोह पंजाब के आनंदपुर साहिब में होता है जहां खालसा पंथ की नींव रखी गई थी. इस दिन भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है. इसके बाद शाम को आग जलाकर नई फसलों की खुशी मनाई जाती है. श्रद्धालु इस दिन कारसेवा भी करते है. इसके साथ गुरू गोबिंद और पंज प्यारों के सम्मान में कीर्तन किए जाते हैं.
अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम:
बैसाखी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से जानी जाती है. केरल में लोग इसे विशु के नाम से मनाते हैं. वही बंगाल में ये पोइला बैसाख (पहला बैसाख) के नाम से जाना जाता है. असम में इसे रोंगाली बिहु तो वहीं तमिलनाडु में पुथंडू के नाम से जाना जाता है.
इस साल बैसाखी का बन रहा है शुभ संयोग:
इस साल बैसाखी का शुभ संयोग बन रहा है. बताया जा रहा है कि इस साल बैसाख का महीना 60 दिनों का होगा. मतलब इस बार लगातार दो महीने बैसाख के महीने के तौर चलेंगे. पहला महीना 30 मार्च से शुरू हो चुका है जो 28 अप्रैल तक चलेगा वहीं दूसरा महीना 29 अप्रैल से 28 मई तक चलेगा.
इस दिन गंगा में स्नान करने का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि इस दिन पापमोचनी गंगा में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. इस दिन दान दक्षिणा करने का भी खास महत्व बताया गया है.