तमिलनाडु के तूतीकोरिन में वेदांता ग्रुप के स्टरलाइट कॉपर प्लांट में विरोध प्रदर्शन के बाद 13 लोगों की मौत के साथ वेदांता ग्रुप एक बार फिर चर्चा में हैं. ब्रिटेन की इस कम्पनी के लिए ये पहला मामला नहीं है जब वह विवादों में खीरी हो. इससे पहले भी कई बार भारत में वेदांता विरोध और अन्य कई मामलों में फंस चुकी हैं.
वेदांता का सरकारी कम्पनी खरीदने पर बवाल:
पहला मामला शुरू होता है साल 2001 से, उस समय सरकारी कंपनी को वेदांता के द्वारा ख़रीदे जाने के बाद काफी विवाद हुआ था. वेदांता ने भारत एल्यूमीनियम कंपनी या बाल्को की रिफ़ाइनरी, समेलटर और खदानों को भारत सरकार से क़रीब 551 करोड़ रुपयों में ख़रीदा था. कंपनी को बेचे जाने के विरोध में कामगारों ने क़रीब 60 दिन तक हड़ताल कर दी थी.
छत्तीसगढ़ में 42 मजदूरों की मौत:
वेदांता की स्टरलाइट कॉपर प्लांट सबसे पहले सुर्ख़ियों में तब आई जब कंपनी में 42 मजदूरों की जान चली गयी थी. छतीसगढ़ के कोरबा में स्टरलाइट की एल्यूमीनियम कंपनी है जिसमें साल 2009 में एक चिमनी हादसे के दौरान 42 मज़दूरों की मौत हो गई थी.
पुलिस ने इस हादसे में बाल्को वेदांता, चीनी कंपनी शैनदोंग इलेक्ट्रिक पावर कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन और जीडीसीएल के ख़िलाफ़ रिपोर्ट दर्ज की थी.
इस मामले में राज्य सरकार ने बख़्शी आयोग भी बनाया था जिसकी रिपोर्ट केंद्र सरकार को भी सौंप दी गई थी. लेकिन सरकार ने उसे कभी सार्वजनिक नहीं किया.
सेसा गोवा:
शाह कमीशन ने साल 2012 में अवैध खनन के लिए जिन कंपनियों को दोषी ठहराया था. उसमें सेसा गोवा शामिल थी. सेसा गोवा भी वेदांता की ही कम्पनी है.
यह कम्पनी लौह अयस्क खनन कंपनी है. खबर के मुताबिक़ इस कम्पनी द्वारा अवैध खनन से राजकोष को 35,000 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ.
नियमगिरी, ओडिशा:
वेदांता ने लांजीगढ़ में 10 लाख टन की क्षमता वाली एक रिफ़ाइनरी का निर्माण किया था जिसकी क्षमता नियमगिरी में खनन के बलबूते छह गुना बढ़ा दी गई थी. हालांकि कंपनी के पास तब तक इसका औपचारिक आदेश नहीं आया था.
इसके अलावा आदिवासी बहुल इलाक़े में बॉक्साइट खनन को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा चुका हैं, कोर्ट ने डोंगरिया कोंड आदिवासियों को इस पर अपना मत ग्राम पंचायतों में रखने को कहा. जिसमे सभी 12 पल्ली सभाओं ने खनन के प्रस्ताव को एकमत से नकार दिया.
देश की सबसे ऊंची अदालत के आदेश पर ये सभाएं जुलाई-अगस्त के महीने में आयोजित हुई थीं.
तूतीकोरिन, तमिलनाडु:
तमिलनाडु में चार लाख तांबा उत्पादन की क्षमता वाले कारख़ाने पर प्रदुषण फ़ैलाने का आरोप लगाते हुए क्षेत्रीय लोग महीनों से आन्दोलन कर रहे थे. क्षेत्र में प्रदुषण इतना बढ़ चुका हैं कि पीने का पानी पीले रंग का हो गया.
स्थानीय नागरिक क़ारख़ाने की वजह से वहाँ फैल रहे प्रदूषण का विरोध कर रहे थे. जिसपर पुलिस ने गोलियां चलाई. इसमें 13 लोगों की मौत हो गई.
इससे पहले भी पर्यावरण संबंधी नियमों के उल्लंघन के चलते सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में स्टरलाइट इंडस्ट्रीज़ पर 100 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था.
वहीं साल 2010 में मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था कि प्लांट से ऐसे पदार्थ वातावरण में जा रहे हैं जिनका घातक असर हो रहा है.
बाद में हाई कोर्ट ने प्लांट को बंद करने का आदेश भी दिया था. लेकिन कंपनी इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट चली गई थी.