[nextpage title=”बाल मजदूरी ” ]
आज बाल श्रम निषेध दिवस है और इसे प्रत्येक वर्ष 12 जून को इसे वैश्विक तौर पर मनाया जाता है। लेकिन आज भी लाखों की संख्या में बच्चे अभी भी मजदूरी करते मिलेंगे। बच्चे मजदूरी करके अपना और परिवार का पेट पालते हैं। बाल मजदूरों के लिए बनी योजनाओं के नाम पर हर साल करोड़ों रुपयें खर्च होते हैं, लेकिन बच्चों के पास कुछ नहीं है। बाल मजदूरी को रोकने के लिये एक अलग विभाग है, लेकिन प्रशासनिक व्यवस्था की हकीकत कुछ और ही है।
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समाज के लिए अभिशाप बन चुकी बाल मजदूरी के कारण आज करोड़ों बच्चे पढाई-लिखाई से कोसों दूर है। अपने आस-पास ऐसे कई बच्चे दिखते हैं जो चाय की दुकान पर गिलास धोते हुए मिलेंगे या आपको समोसा परोसते हुए दिखाई देंगे। बस स्टैंड पर आपको पानी की बोतल खरीदने के लिए पीछे पड़े रहेंगे! क्या उनका बचपन यहीं तक है या फिर इनको भी अन्य बच्चों की तरह पढ़ने-लिखने, खेलने-कूदने की दिया जाना चाहिए।
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बहुत से अनाथ बच्चे ऐसे हैं जो कचरे का ढेर उठाकर अपने लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करते हैं। ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगते हैं। कुछ ऐसे बच्चे हैं जो अपने परिवार की जिम्मेदारियां उठाते हैं और वो बचपन में भी कब सयाने हो जाते हैं उनको अंदाजा भी नहीं होता। उनको दरअसल मालूम ही नहीं होता कि बचपन नाम की कोई चीज भी होती है।
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बाल श्रम को लेकर संविधान में भी कुछ बातें कहीं गयी हैं। संविधान लागू होने के 10 साल के भीतर राज्य 14 वर्ष तक की उम्र के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देने का प्रयास करेंगे (धारा 45)।
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बाल श्रम एक ऐसा विषय है, जिस पर संघीय व राज्य सरकारें, दोनों कानून बना सकती हैं। दोनों स्तरों पर कई कानून बनाये भी गये हैं। लेकिन फिर भी बाल मजदूरी रुक नहीं पा रही है।
सरकारी आंकड़ो के अनुसार, लगभग 2 करोड़ और अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 5 करोड़ बच्चे बाल मजदूरी करते हैं। ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में 80 फीसदी बच्चे काम करते हैं। बाल मजदूरों से 18 घंटे से अधिक का काम लिया जाता है।
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