वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम-2018 (WEF) में मंगलवार को पीएम नरेंद्र मोदी ने इनॉगरल स्पीच दी. मोदी ने WEF के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन प्रो. क्लॉज श्वाब से मुलाकात की.मोदी ने कहा कि उन्होंने फोरम का बहुत अच्छे से तैयार किया है. 1997 में भारत के प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा दावोस समिट में आए थे. तब भारत की जीडीपी करीब 400 बिलियन डॉलर थी, जो अब 6 गुना तक ज्यादा हो गई है. मोदी फोरम में अब तक का सबसे बड़ा भारतीय दल ले गए हैं. इसमें 6 कैबिनेट मंत्री, 2 सीएम, 100 सीईओ समेत 130 लोग शामिल हैं. भारत की ओर से 21 साल बाद कोई प्रधानमंत्री इस फोरम में शामिल हो रहा है.
WEF का मकसद दुनिया के हालात सुधारना
मोदी ने कहा, “मैं प्रो. श्वाब को वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम को सशक्त और व्यापक मंच बनाने पर साधुवाद देता हूं.उनके विजन में महत्वाकांक्षी एजेंडा है, जिसका मकसद दुनिया के हालात सुधारना है. उन्होंने इस एजेंडा को राजनीतिक और आर्थिक विजन से जोड़ा है.हमारे गर्मजोशी भरे स्वागत-सत्कार के लिए स्विटजरलैंड की सरकार और नागरिकों के लिए अपनी कृतज्ञता व्यक्त करना चाहता हूं.दावोस में भारत के प्रधानमंत्री की आखिरी यात्रा 1997 में हुई थी जब देवेगौड़ा जी यहां आए थे. तब भारत की जीडीपी 400 बिलियन डॉलर्स से थोड़ी ज्यादा थी. दो दशकों के बाद जीडीपी छह गुना ज्यादा हो चुकी है. उस वक्त इस फोरम का विषय बिल्डिंग द नेटवर्क सोसाइटी था.
पीएम ने कहा दुनिया काफी बदल चुकी है
मोदी ने कहा, “आज 21 साल बाद टेक्नोलॉजी और डिजिटल एज की उपलब्धियां देखें तो 1997 वाला विषय सदियों पुराने युग की चर्चा लगती है.आज नेटवर्क सोसाइटी ही नहीं, बल्कि बिग डेटा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में जी रहे हैं.1997 में यूरो प्रचलित नहीं था, एशियन फाइनेंशियल क्राइसिस का पता नहीं था और न ही ब्रेग्जिट के आसार थे.तब बहुत कम लोगों ने ओसामा बिन लादेन के बारे में सुना था और हैरी पॉटर का नाम भी अंजाना था. तब शतरंज के खिलाड़ियों को कम्प्यूटर से हारने का गंभीर खतरा भी नहीं था.तब साइबर स्पेस में गूगल का अवतरण नहीं हुआ था
1997 में आप इंटरनेट पर अमेजन शब्द ढूंढते तो आपको नदियां और घने जंगलों के बारे में सूचना मिलती.उस जमाने में ट्वीट करना चिड़ियों का काम था, मनुष्य का नहीं था. वो पिछली शताब्दी थी.आज दो दशकों के बाद हमारा विश्व और हमारा समाज जटिल नेटवर्क का हिस्सा है.आज भी दावोस अपने समय से आगे हैं.
शक्ति का संतुलन बदल रहा है
मोदी ने कहा, “आज दरारों से भरे विश्व में साझा भविष्य का निर्माण विषय है। आर्थिक क्षमता और राजनीतिक शक्ति का संतुलन बदल रहा है। इससे विश्व के स्वरूप में दूरगामी परिवर्तनों की छवि दिखाई दे रही है.विश्व के सामने शांति, स्थिरता,सुरक्षा जैसे विषयों को लेकर नई और गंभीर चुनौतियां हम अनुभव कर रहे हैं। टेक्नोलॉजी ड्रिवन ट्रांसफर्मेशन हमारे रहने और काम करने के व्यवहार और बातचीत और अंतरराष्ट्रीय समूहों को टेक्नोलॉजी की दुनिया ने प्रभावित कर दिया है.टेक्नोलॉजी को जोड़ने, मोड़ने और तोड़ने का उदाहरण सोशल मीडिया में मिलता है.डाटा बहुत बड़ी संपदा है.डेटा से सबसे बड़े अवसर मिल रहे हैं और सबसे बड़ी चुनौतियां भी.डाटा के पहाड़ बन रहे हैं और उन पर नियंत्रण की होड़ लगी है.ऐसा माना जा रहा है कि जो डाटा पर नियंत्रण रखेगा, वही भविष्य पर नियंत्रण करेगा.
अब मानवता के लिए खतरा भी है
पीएम मोदी ने कहा, “विज्ञान तकनीक और आर्थिक प्रगति के नए आयामों में मानव को नए रास्ते दिखाने की क्षमता है। इन परिवर्तनों से ऐसी दरारें भी पैदा हुई हैं, जो दर्दभरी चोटें भी पहुंचा सकती हैं। ये ऐसी दरारें पैदा कर रहे हैं, जिन्होंने पूरी मानवता के लिए शांति और समृद्धि के रास्ते को दुर्गम और दुसाध्य बना दिया है.ये डिवाइस, ये बैरियर्स विकास के अभाव, गरीबी, बेरोजगारी, अवसरों के अभाव और प्राकृतिक और तकनीकी संसाधनों पर आधिपत्य की हैं। इस परिवेश में हमारे सामने कई महत्वपूर्ण सवाल हैं, जो मानवता के भविष्य और भावी पीढ़ियों की विरासत के लिए समुचित जवाब मांगते हैं.
क्या हमारी विश्व व्यवस्था इन दरारों को और दूरियों को बढ़ावा तो नहीं दे रही हैं. ये कौन सी शक्तियां हैं, जो सामंजस्य के ऊपर अलगाव को तरजीह देती है, जो सहयोग के ऊपर संघर्ष को हावी करती हैं.हमारे पास कौन से साधन हैं, रास्ते हैं, जिनके जरिए हम इन दरारों और दूरियों को मिटाकर एक सुहाने और साझा भविष्य के सपने को साकार कर सकते हैं,भारत, भारतीयता और भारतीय विरासत का प्रतिनिधि होने के नाते मेरे लिए इस फोरम का विषय जितना समकालीन है, उतना ही समयातीत भी है.समयातीत इसलिए, क्योंकि भारत में अनादि काल से हम मानव मात्र को जोड़ने में विश्वास करते आए हैं, उसे तोड़ने और बांटने में नहीं.
पूरी दुनिया एक परिवार है
मोदी ने कहा, “हजारों साल पहले संस्कृत भाषा में लिखे गए ग्रंथों में भारतीय चिंतकों ने जो लिखा है, वो है वसुधैव कुटुंबकम यानी पूरी दुनिया एक परिवार है.हम सब एक परिवार की तरह बंधे हुए हैं. हमारी नियतियों में एक साझा सूत्र हमें जोड़ता है.ये धारणा निश्चित तौर पर आज दरारों और दूरियों को मिटाने के लिए और ज्यादा सार्थक और रेलेवेंट है.लेकिन, आज एक गंभीर बात ये है कि इस काल की विकट चुनौतियों से निपटने के लिए हमारे बीच सहमति का अभाव है.परिवार में भी जहां सौहार्द होता है, तो कुछ ना कुछ मनमुटाव और मतभेद भी होते रहते हैं। लेकिन, परिवार का प्राण और प्रेरणा यही भावना होती है
कि जब साझा चुनौतियां सामने आएं तो सब लोग एकजुट होकर उनका सामना करते हैं और एकजुट होकर उलब्धियों और आनंद के हिस्सेदार बनते हैं.चिंता का विषय है कि हमारे विभाजन और दरारों ने इन चुुनौतियों के खिलाफ मानव जाति के संघर्ष को कठिन बना दिया है,जिन चुनौतियों की तरफ मैं इशारा कर रहा हूं, उनकी संख्या भी बहुत है और विस्तार भी बहुत व्यापक है.
मोदी ने बताई 3 चुनौतियां
मोदी ने कहा, “तीन चुनौतियां मानव सभ्यता के लिए खतरा पैदा कर रही हैं.पहला क्लाइमेट चेंज का है. ग्लेशियर्स पीछे हटते जा रहे हैं. आर्कटिक की बर्फ पिघल रही है.कई द्वीप डूब चुके हैं या डूबते जा रहे हैं. एक्स्ट्रीम वेदर का प्रभाव दिन ब दिन बढ़ रहा है. कल भी आदरणीय राष्ट्रपति जी कह रहे थे कि इस समय जो बर्फ पड़ रही है, वो पिछले 20 साल से नहीं देखी गई. होना ये चाहिए था कि हमें एकजुट होना था. लेकिन, हम ईमानदारी से पूछें कि क्या ऐसा हुआ,और अगर नहीं हुआ तो क्यों नहीं हुआ.हर कोई कहता है कि कार्बन एमिशन को कम करना चाहिए. लेकिन, ऐसे कितने देश या लोग हैं
अच्छे-बुरे आतंकी में अंतर न करें
मोदी ने कहा कि दूसरी बड़ी चुनौती आतंकवाद है. इस संबंध में विश्व भर में पूरी मानवता के लिए बने खतरे से सभी सरकारें अवगत हैं.आतंकवाद जितना खतरनाक है, उससे भी खतरनाक है गुड टेररिस्ट और बैड टेररिस्ट के बीच बनाया गया आर्टिफिशियल भेद. दूसरी बात समकालीन गंभीर पहलू है पढ़े लिखे और संपन्न युवाओं का आतंकवाद में लिप्त होना.मुझे आशा है कि इस फोरम में आतंकवाद और हिंसा की दरारों से हमारे सामने मौजूद गंभीर चुनौतियों पर और उनके समाधान पर हर वक्ता कुछ न कुछ कहेगा.तीसरी चुनौती ये है कि बहुत से समाज और देश आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं.ग्लोबलाइजेशन अपने नाम के विपरीत सिकुड़ता चला जा रहा है.इस तरह की मनोवृत्ति को हम कम नहीं आंक सकते हैं.
हर कोई इंटरकनेक्टेड विश्व की बात करता है
हर कोई इंटरकनेक्टेड विश्व की बात करता है, लेकिन हमें ये स्वीकार करना होगा कि ग्लोबलाइजेशन की चमक धीरे-धीरे कम होती जा रही है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के आदर्श अभी भी मान्य हैं.वर्ल्ड ट्रेड ऑर्गनाइजेशन भी व्यापक है. लेकिन, दूसरे विश्व युद्ध के बाद बने संगठनों की व्यवस्था और कार्यपद्यति क्या आज के मानव की अपेक्षाओं, सपनों और वास्तविकता को परलक्षित करते हैं क्या.आज के विश्व में खासतौर पर बहुतायत के विकासमान देशों की आवश्यकताओं के बीच एक बहुत बड़ी खाई दिखाई देती है। उनकी मंशा है कि वे ना सिर्फ ग्लोबलाइजेशन से बचें, बल्कि उसका प्रवाह भी बदल दें.
महात्मा गांधी ने कहा था कि मैं नहीं चाहता कि मेरे घर की दीवारें और खिड़कियां सभी तरह से बंद हों.मैं चाहता हूं कि सभी देशों की संस्कृतियों की हवा मेरे घर में पूरी आजादी से आ-जा सकें.लेकिन, इस हवा से मेरे पैर उखड़ जाएं, ये मुझे मंजूर नहीं होगा.आज का भारत गांधी के इसी दर्शन और चिंतन को अपनाते हुए.
पूरे आत्मविश्वास और निर्भीकता के साथ पूरे विश्व से जीवनदायिनी तरंगों का स्वागत कर रहा है.भारत का लोकतंत्र देश की स्थिरता और निश्चितता और सतत विकास का मूल आधार है.लोकतंत्र महज राजनीतिक ढांचा नहीं जीवनदर्शन है.भारतीय जानते हैं कि विविधता की एकता को संकल्प और सौहार्द की एकता में बदलने के लिए लोकतांत्रिक परिवेश का कितना महत्व होता है.लोकतंत्र सिर्फ विविधता का पालन नहीं करता. बल्कि सवा सौ करोड़ भारतीयों की आशाओं, सपनों को पूरा करने के लिए. सम्पूर्ण विकास के लिए रोडमैप और परिवेश देता है.