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वायु प्रदूषण फेफड़े ही नहीं बल्कि गुर्दे को भी कर रहा प्रभावित

 

कपिल काजल

बेंगलुरु, कर्नाटक

वायु प्रदूषण फेफड़े और सांस की बीमारी ही नहीं बढ़ा रहा बल्कि गुर्दों पर भी इसका विपरीत असर पड़ रहा है। इस तरह से देखा जाए तो जिस तरह से

बेंगलुरु में वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, वह बड़ी चिंता का विषय है।

मिशिगन विश्वविद्यालय के एक अध्ययन ने प्रदूषण को लेकर चौंकाने वाली जानकारी दी है। इस अध्ययन के मुताबिक वायु प्रदूषण से क्रॉनिक किडनी रोग हो सकता है।

(क्रॉनिक किडनी रोग वह स्थिति है जब व्यक्ति की दोनों किडनियां धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती हैं। इस बीमारी का सबसे खतरनाक पक्ष यह है कि इससे पीड़ित व्यक्ति को तब तक इसके लक्षणों का एहसास तब होता है जब किडनी की कार्यक्षमता 25 प्रतिशत तक खत्म हो चुकी होती है)

इस स्थिति में आने के बाद किडनी खून को सही से फिल्टर नहीं कर पाती।

जेनिफरब्रैग-ग्रेशम ने अपने अध्ययन के बारे में प्रेस विज्ञप्ति से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि क्योंकि किडनी बड़ी मात्रा में खून को साफ करती है, इस दौरान खून में मिला प्रदूषण किडनी को प्रभावित करता है। जो लोग लंबे समय तक प्रदूषण में रहते हैं, उन्हें यह बीमारी होने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है। इसलिए उन्हें सावधानी बरतनीचाहिए। क्योंकि हवा में मौजूद सुक्ष्मकण सांस के माध्मय से रक्त में मिल जाते हैं, किडनी बड़ी मात्रा में रक्त को साफ करती है। इस तरह से यह कण किडनी को धीरे धीरे प्रभावित करते रहते हैं। एक स्टेज के बाद यह प्रदूषण क्रॉनिक किडनी रोग को जन्म दे सकते हैं।

इसी तरह की जानकारी

नेशनल सेंटर फॉर बायो टेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन के एक अन्य अध्ययन के हवाले से भी बतायी गयी है। इसमें बताया कि प्रदूषण भरे वातावरण में सांस लेने से हमारे गले, फेफड़े ही प्रभावित नहीं होते, बल्कि इसका असर दिल और गुर्दे जैसे अन्य अंगों को प्रभावित करता है।

अनुसंधान से यह भी पता चला कि कोयलों की खानो में काम करने वालों में पुरुषों में सीकेडी महिलाओं की तुलना में ज्यादा है। अध्ययन के मुताबिक 19% पुरुष सीकेडी की चपेट में आते हैं जबकि महिलाओं में यह प्रतिशत 13 है

सामान्य वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार सुक्ष्मकण, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर

ऑक्साइड, सीसा, ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड भी सीकेडी की वजह बन सकते हैं। इसके अलावा कैमिकलरिसाव और और यूरेनियम गुर्दे की बीमारी को बढ़ा सकते हैं।

https://datawrapper.dwcdn.net/5RFQP/1/ (फुलस्क्रीन)

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प्रेस विज्ञप्ति में यह भी बताया कि बीमा क्लेम और हवा की गुणवत्ता के आंकड़ों की जब समीक्षा की गयी तो पाया कि सुक्ष्म कणों का प्रदूषण सीकेडी की समस्या को बढ़ा रहा है।

अध्ययन के सहलेखक और नेफ्रोलॉजिस्ट(किडनी रोड विशेषज्ञ )

राजीव सरन ने बताया कि जो लोग भारी प्रदूषण में रह रहे

हैं, उन्हें मास्क पहनना चाहिए। उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि प्रदूषण में कम रहे।इसके लिए वह काम के घंटे कम कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि देखने में आया कि

बहुत से लोग वायु प्रदूषण की गंभीरता से नहीं लेते। उन्हें क्योंकि इसके खतरे प्रत्यक्ष रूप से दिखायी नहीं देते हैं। लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं कि जो प्रदूषण आपको दिखायी नहीं दे रहा है, वह आपके स्वास्थ्य पर इसका विपरीत असर नहीं डालेगा।

शहर के पर्यावरण प्रेमी संदीप अनिरुद्धन ने इस संवाददाता को बताया कि

क्योंकि किडनी रक्त को साफ करती है,इसलिए जो सुक्ष्मकण रक्त में मिल जाते हैं, इसका बहुत ज्यादा असर किडनी पर आता है। इससे किडनी के काम करने की क्षमता प्रभावित होती है। इसलिए हमें वायु प्रदूषण पर रोक लगानी चाहिए। इसके लिए सबसे पहला कदम तो यह है कि निजी वाहनों को कम किया जाए। इसकी जगह लोगों को साइकिल चलानी चाहिए, पैदल चलने प्रति भी लोगों को प्रेरित किया जाना चाहिए। पर्यावरण कानूनों को सख्त करना चाहिए। जो उद्योग प्रदूषण बढ़ा रहे हैं, उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही की जानी चाहिए।

(लेखक बेंगलुरु आधारित स्वतंत्र पत्रकार हैं । वह अखिलभारतीय ग्रासरूट रिपोर्टर्स नेटवर्क 101रिपोर्टर्स के सदस्य है। )

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