कपिल काजल
बेंगलुरु कर्नाटक
बेंगलुरु महानगर पालिक (बीबीएमपी) ने शहर के बिगड़ती हवा की गुणवत्ता को संवारने के लिए सॉफ्टवेयर कंपनी एटैकट्रोन के साथ एक समझौता कर एक एयरप्यूरफायी लगवाया।
एयरप्यूरीफाई में हवा साफ होने के बाद जो कण बचे, जब उनका अध्ययन किया तो पाया कि यह सीसा और कई धातुओं के कण मिले हैं। कंपनी के संस्थापक राजीव कृष्णा ने भी स्वीकार किया कि एयर प्यूरीफायर में भारी धातु जिसमें सीसा,
धूल कण , जस्ता, लोहा, मैंगनीज आदि का पता चला है। यह सब हवा में मौजूद है, जो सांस के माध्यम से शहर के लोगों के शरीर में प्रवेश कर उनके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रहा है।
एयरप्यूरीफाई से निकले कचरे की जब प्रयोगशाला में जांच की तो पाया कि हडसन सर्कल के सिस्टम के पहले फिल्टर ने आठ घंटे में 19 ग्राम धूल एकत्र की। औमतौर पर हवा में धूल कण होते हैं, लेकिन यहां कार्बन और भारी धातुएं मिली है।
इस तरह से यह उपकरण हर रोज 800 ग्राम से लेकर एक किलोग्राम तक हवा से धूल निकाल रहा है।
जांच रिपोर्ट में सामने आया कि अति व्यस्त आठ घंटे में सुक्ष्मकण (पीएम 2.5 ) 48 µद्द/द्व3 (1µद्द=10 लाख ग्राम) मिली, जबकि
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इसकी मात्रा तय मात्रा 10 µद्द/द्व3 होनी चाहिये।
इसी तरह से इस अवधि में पीएम 10 की मात्रा 90
µद्द/द्व3 के आस पास रही, जबकि विश्वस्वास्थ्य संगठन के अनुसार इसकी तय मात्रा 20 µद्द/द्व3 तक होनी चाहिये।
भारतीय विज्ञान संस्थान के इकोलॉजी केंद्र के प्रोफेसर
डॉक्टर टीवी रामचंद्र ने बताया कि कचरा को जलाना, यातायात और औद्योगिक से निकलने वाला कचरा, जिसमें आमतौर पर धातु, प्लास्टिक शामिल होते हैं, हवा में मिलते रहते हैं। रही सही कसर तांबा, पारा और सीसा जैसे धातु हवा में मिल कर इसकी गुणवत्ता को और ज्यादा खराब कर देती है। तभी तो शहर में पीएम 2.5 और पीएम 10 की मात्रा विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से तय मात्रा से आठ गुणा है। इससे स्वयं अंदाजा लगाया जा सकता कि हवा की गुणवत्ता कितनी खराब हो गयी है, यह हवा स्वास्थ्य के लिए क्या क्या दिक्कत पैदा कर सकती है?
एयरप्यूरफाई से निकले कण कर्नाटक राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़ा कर रहे हैं। इससे यह भी साबित हो रहा है कि बोर्ड आंकड़ों में हेराफेरी कर प्रदूषण कम होने के नाम पर भ्रम पैदा कर रहा है।
विज्ञान अध्यात्म केंद्र के बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर शशिधर गंगैया ने बताया कि हवा में सीसा, जस्ता, पारा, आर्सेनिक और क्रोमियम जैसी भारी धातुओं के शामिल कण बच्चों के
आनुवंशिक गुणों को प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि जब कचरे को जलाया जाता है तो इससे डाइऑक्सिन जैसी जहरीली गैस निकलती है। यदि कचरे में भारी धातु भी है, और वह जल रही है तो इससे हवा और ज्यादा प्रदूषित हो जाती है, इस तरह की हवा में सांस लेने से कैंसर जैसी बीमारी भी हो सकती है।
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ प्योर एंड एप्लाइड रिसर्च (आईजेपीएआर ) ने अपने अध्ययन में बताया कि शहर की हवा में
धातुओं के कण मिले हुए हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक साबित हो सकते हैं।
क्योंकि हमारे शरीर में पहले ही जिंक होता है, जो प्राकृतिक तरीके से और भोजन से हमारे शरीर में आता है। अब यदि हवा में उपस्थित लोहकण शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, यह जस्ते के साथ प्रतिक्रिया कर शरीर को नुकसान करने वाले रसायन में तब्दील कर देता है।
इसी तरह से कैडमियम(ऐसा जहरीला तत्व जो हवा और पानी को दूषित कर देता है) यदि इसकी मात्रा हवा में बढ़ जाती है तो सांस के माध्यम से यह शरीर में प्रवेश कर जाता है। इस वजह से शरीर का मेटाबॉलिज्म पाथवे (शरीर में कोशिकाओं के निर्माण, भोजन को पचाने जैसी क्रियाएं को बोलते हैं )बिगड़ सकता है। मेटाबॉलिज्म पाथवे एक सिस्टम में काम करते है, तो शरीर के लिये सही रहता है, लेकिन यदि इसके काम करने का तरीका किसी भी वजह से बिगड़ जाता है तो यह कई तरह की बीमारियों को पैदा कर देता है।
फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी ऑफ इंडिया के गवर्निंग काउंसिल के सदस्य
डॉक्टर येलापा रेड्डी ने बताया कि एयर प्यूरिफायर ने तो सारी स्थिति को साफ कर दिया है। प्रदूषण को लेकर इससे पता चल रहा है कि हम कितनी खराब हवा में सांस ले रहे हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी डाटा में गड़बड़ी कर जैसे तैसे वास्तु स्थिति को छुपाने की कोशिश में लगा रहता है।
उन्होंने कहा कि हवा में तेजी से बढ़ रहा प्रदूषण , शहर में इंसान, पौधों, जानवरों, पानी के स्त्रोत और मिट्टी को भी प्रभावित करता है। अब वक्त आ गय है कि हमें इस ओर ध्यान देना होगा। इसका सबसे अच्छा उाय यही है कि प्रदूषण के लिए जिम्मेदार उद्योगों को अब बंद कर देना चाहिये। इसके अलावा अब कोई चारा बचा ही नहीं है।
(लेखक बेंगलुरू के स्वतंत्र पत्रकार है, वह 101Reporters.com, अखिल भारतीय ग्रासरूट रिपोटर्स नेटवर्क के सदस्य है)